नाम:-
हिन्दी | अम्बर |
संस्कृत | अग्निजार |
English | Ambergis |
पर्याय:-
अग्निगर्भ, अग्निनिर्यास, अग्निज, वह्निजार, सिन्धुफला।
परिचयः–
अग्निजार स्पर्म वेल मछली की आंतों में स्रवित होने वाला मोम सदृश द्रव्य है।
●ताजा अम्बर दुर्गन्ध युक्त होता है, लेकिन सूखने पर सुगन्ध युक्त हो जाता है।
●यह अग्नि नामक मछली समुद्र में उद्भूत एक घास विशेष को खा जाती है।
◆जिससे मलबद्धता के कारण आन्त्र में धीरे धीरे अवरोध होने से सड़न पैदा होकर कालान्तर में मछली मर जाती है।
● फिर आंत्र का वह भाग मछली के शरीर से अलग होकर समुद्री सतह पर तैरता हुआ पानी के किनारे आ जाता है।
जिसे मछुआरों द्वारा एकत्र कर सुखाया जाता है। सूर्य की किरणों से शुष्क होकर यह विशिष्ट उत्तेजक सुगन्ध युक्त हो जाता है। इसे ही अग्निजार कहते है।
●प्राचीनमतानुसार अग्निजार “अग्निचक्र” नामक समुद्री प्राणी का जरायु (गर्भकोष) है। जो सूर्य की किरणों से शुष्क होकर समुद्र के किनारे पर मछुआरों को प्राप्त होता है। इसे अग्निजार कहते है।
अग्निजार प्राप्ति स्थान:-
यह पृथ्वी के उष्णकटिबंधीय समुद्री भागों में विशेषकर मन्नार (श्रीलंका), अरब सागर, अफ्रीका एवं भारतीय समुद्री तट-लक्षद्वीप और निकोबार द्वीप के किनारों पर प्राप्त होता है।
अग्निजार शोधनः-
★अग्निजार के शोधन, मारण का शास्त्रों में वर्णन नहीं मिलता है। क्योंकि यह सुगन्धित द्रव्य है। तथा समुद्र के क्षारीय जल में कई दिन तक पड़े रहने के कारण यह प्रकृतितः शुद्ध हो जाता है।
अग्निजार के गुण:-
●अग्निजार रस में कटु, वीर्य में उष्ण होता है। ● यह मेदोरोगहर, ●कफवात नाशक, ●पितवर्द्धक, ●रक्तरोग, ●सन्निपातजरोग, ●शूल आदि सम्पूर्ण वात व्याधि नाशक होता है।
★यह त्रिदोषनाशक, धनुर्वात आदि वातरोग, पारद के वीर्योत्कर्ष एवं बुभुक्षा को बढाने वाला एवं जारण कर्म में उपयोगी होता है।
★इसके संयोग से पारद स्पर्शवेधी हो जाता है।
अग्निजार मात्रा:- 1/4रत्ती से 1/2 रत्ती तक।
अनुपान :-
मधु, घृत, मक्खन आदि।
प्रमुख योग:
(1) वृहत वात चिन्तामणि रस
(2) चिन्तामणि रस
(3) जहरमोहरा वटी
(4) रत्नेश्वर रस
(5) याकूती रस
One reply on “Agnijaar (अग्निजार ) – Ambergis : साधारण रस”
[…] गौरीपाषाण नवसादर – नवसादर अग्नि – अग्निजार सिंदूर – गिरि सिंदूर कपड़े – कपर्द […]