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Bhaishajya kalpana Syllabus

Difference between Aushadh and Bhaisaj(औषध एवं भैषज)

●औषध एवं भैषज्य दोनों का प्रयोजन रोग को दूर करना है। इसलिए औषध एवं भेषज पर्यायवाची है।

●आचार्य चरक ने भेषज एवं औषध को पर्याय माना है। अर्थात

1.चिकित्सित 2. व्याधिहर

3.पथ्य 4. साधन

5. औषध। 6.प्रायश्चित

7. प्रशमन 8. प्रकृतिस्थापन और

9. हित ये 9 पर्याय भेषज के हैं।

■परन्तु आचार्य काश्यप ने औषध तथा भेषज में अन्तर बताया है । यद्यपि दोनों ही चिकित्सा से संबंधित है।

अर्थात् चिकित्सा दो प्रकार की होती है :-

1. औषध 2. भेषज

औषधभेषज
1.दीपन, पाचन आदि द्रव्यों का संयोग करके रोगों का शमन किया जाता है, उसे औषध कहते हैं। चरक के अनुसार यह युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा है।1.स्वस्ति,बलि,होम,व्रत,तप, शान्तिकर्म द्वारा रोगों का शमन करना भैषज कहलाता है। यह चरकोक्त दैवव्यपाश्रय, अद्रव्यभूत चिकित्सा (अप्रत्यक्ष)है ।
2.it can be used to treat both शारीरिक& मानसिक व्याधियां2.it is used only in mental disorder.
3.जिसमें ओष (रस) होता है, वह औषधि कहलाती है। इसी ओष
(रस) से आरोग्य प्राप्त होता है। इसलिए उसे औषधि और औषध कहते हैं।
3.जो चिकित्सा भिषक् विज्ञान को जानता है और जो रोगियों के लिए हितकारी हो, उसे भेषज या भैषज्य कहते हैं।
4.औषधियाँ व्याधि में हितकर होती है।4.जिसके द्वारा रोग भय को जीता जाता है, उसे भेषज कहते हैं, उसके
भाव या कर्म ही भैषज्य कहलाता है।
5.अर्थात् ओष (रस) से पीड़ा को दूर किया जाता है, अतः उसे औषधि कहते हैं।5.जिस औषध की कार्ययोनि, प्रवृत्ति, देश आदि शारीरिक, मानसिक
एवं भूतात्मा के रोगों को दूर करने वाली हो तथा जिसका कोई प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न
नहीं हो, उसे भेषज कहते हैं।
★जिसके द्वारा रोगों की चिकित्सा की जाती है या रोगों को हटाया जाता
है, उन सब उपायों को भेषज कहते हैं। भेषज ही भैषज्य है।

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