औटाये हुआ जल :- धीरे – धीरे औटाते हुए फेन रहित एवं निर्मल होने पर उसे क्वाथित या औटाया हुआ समक्षे । यह दोषों को दूर करने वाला, लघु, पाचक, वात – कफ ज्वर संबंधित ज्वर रोगी के हितकर होता है। ( भावप्रकाश संहिता ) यह अग्नि दीपक, जमे हुए कफ को खण्ड- खण्ड करने […]
Author: rohitgera1999
भूतघ्नीस्वरसं प्रस्थमजाक्षीरं च तत्समम्। भृङ्गीनिर्गुण्डिका चैव तक्कारी तुलसीद्वयम्॥ अश्वगन्धी काकजंघी हस्तिकर्णी शतावरी। लाक्षारसं प्रयोज्यं तु बलातैलाढकं तथा॥ एतेषां स्वरसं ग्राह्यं प्रस्थंप्रस्थं पृथक्पृथक् । शनैर्मृग्निना पक्त्वा कल्कद्रव्याणि दापयेत् ॥ कटुकोशीरलशुनं चन्दनं देवदारु च। क्रिमिन मरिचं मुस्ता पञ्चकोलं त्रिजातकम्॥ एतेषां कर्षमात्राणि तैलयुक्तेन योजयेत्। द्विदण्डान्नरव्यवस्त्रेण पिष्टस्याद्वहुपीडयेत्।॥ पानलेपननस्येन पुराणज्वरनाशनम्। एकाहिकं द्व्याहिकं त्र्याहिकं च चतुर्थकम्॥ पक्षान्तज्वरमासान्तं वर्षान्तेऽतिज्वरं हरम्। सर्वं ते […]
रसं गन्धं विषं तानं मर्दयेदेकयामकम्। आर्द्रकस्य रसेनैव मर्दयेत्सप्तवारकम्॥ निर्गुण्ड्या: स्वरसे पञ्चान्मर्दयेत्सप्तवारकम्। गुजैकारसेनैव दत्त्वा हन्ति ज्वरं क्षणात्। वातजं पित्तजं श्लेष्मद्विदोषजमपि क्षणात्॥ सुशीतलजले स्नानं तृष्णार्ते क्षीरभोजनम्। आनं च पनसं चैव चन्दनागरुलेपनम्॥ एतत्समो रसो नास्ति वैद्यानां हृदयङ्गमः। एष चण्डेश्वरो नाम सर्वज्वरकुलान्तकृत्॥ (बसवराजीयम् 1 प्रकरणम् ) द्रव्य :- पारद, गंधक, वत्सनाभ, ताम्र भस्म ( सभी सम मात्रा में ) […]
हिंगूलसम्भवं सूतं समं गन्धकं टङ्कणं तथा। तानं बर्ष माक्षिकं च सैन्धवं मरिचं तथा॥ सर्व समाहत्य द्विगुणं स्वर्णभस्मकम्। तदर्धं कान्तलौहं च रूप्यभस्मापि तत्समम्॥ एतत्सर्व विजूण्यंच धावयेत्कनकहवै। । शेफालीदलजै धापि दशमूलरसेन च ॥ किराततिक्तककाचैरिव्षवारे भावयेत्सुधीः भावयित्वा ततः कुर्याद्ुा्ादवयमितां वटीम्॥ अपाचे प्रयोक्ती जीरके मधुसंयुतम्। जीर्णज्वरं महाघोरं चिरकालसमुद्भवम्॥ অংমविधं हन्ति साध्यासाध्यमधापि वा। पृधग्दोपां श्च विविधान् समस्तान्विषमज्वरान्।। भेदोगले मांसगतमस्थिमज्जागते तथा […]
विषस्यैकं तथा भागं मरिचं पिप्पली कणा । गन्धकस्य तथा भागं भागं स्याट्टङ्कणस्य वै।। सर्वत्र समभागं स्याद्विभागं हिंगुलं भवेत्। जम्बीरस्य रसेनात्र भाव्यं हिंगुलशोधितम्॥ रसश्चेत्समभागं स्याद्धिंगुलं नेष्यते तदा। गोमूत्रशोधितं चात्र विषं सौरविशोधितम्॥ चूर्णयेत्खल्वमध्ये तु मुद्रमात्रां वटीं चरेत्। मधुना लेहना प्रोक्तं सर्वज्वरनिवृत्तये॥ दध्युदकानुपानेन वातज्वरनिबर्हणः। आईकस्वरसे पानं दारुणे सान्निपातिके॥ जम्बीररसयोगेन अजीर्णज्वरनाशनः। अजाजीगुडसंयुक्तो विषमज्वरनाशनः ॥ जीर्णज्वरे महाघोरे पुरुषे यौवनान्विते। पूर्णमात्रा […]
अर्धनारीश्वर रस प्रथम :- गौरी शिला हिंगुलमभ्रकं च तारं च तानं च बलिं च सूतम्। विषं च नेपालमदोत्कटं च वल्लीफलं कर्परिमैलतुत्थम्। सर्वं च चूर्णं शिखिमत्स्यपित्ते सम्भावयेत्त्वग्निभवेन्द्रवारिणा। हलाहलादन्ति च मज्जतोयैः दिनेन मधू परिभावशोषयेत्। अजोत्तरस्तस्य पयोमिलित्वा यामार्धवामाङ्गज्वरं निहन्यात्। अर्धं शरीरं वपुभव्यमन्ये महाद्भुतं वैद्यविवादकाले। तथामजो दक्षिणदुग्धमिश्रे उभे च पक्षागतये ज्वरं हरेत्। कथित ह्राजनाथेन रहस्यं चित्रकारिणा॥ अर्धनारीश्वरो नाम रसः […]
मंत्र प्रभाव से कार्य करते है और उनका प्रभाव शब्दों में कहने योग्य नहीं है, आर्ष संहिताओं में विभिन्न जगाओ पर मंत्रो के उपयोग व रोग निवारण का वर्णन मिलता है उसी प्रकार से आज हम ज्वर नाशक मंत्रो को आपको बताते है, मंत्रो को बताने से पहले आपको ज्वर की उत्पति के बारे में […]
Raksha karm/ रक्षा कर्म= आयुर्वेद में जात कर्म संस्कार के बाद में रक्षा विधान का वर्णन है। इसका उपयोग बालको की भूत, राक्षस आदि से रक्षा से होता था, आज आधुनिक भूत को Pathogen (Bacteria, virus etc.) मानते है, तो आज भी हम इसका (Raksha karm) उपयोग अपने घर को इनसे मुक्त व सुरक्षा कर […]
धूप की उत्पति :- जब उत्पन्न हुए ऋषियों के पुत्रों को राक्षसों ने सताना प्रारंभ किया तब होम, जाप एवं तप से युक्त हुए सब महर्षि अग्नि देवता के शरण में पहुंचे। इससे प्रसन्न होकर अग्नि ने कहा- मेरे द्वारा अर्पित किये गये इन धूपों का तुम ग्रहण करो तथा प्रयोग करो । इससे तुम्हें […]
काश्यप संहिता में भगवान काश्यप के वचनों को वृद्ध जीवक ने संहिता के रूप में लिखा ओर वह इसी कारण यह वृद्ध जीवकिय तंत्र व काश्यप संहिता कहलाती है। वचन भगवान काश्यप लेखक वृद्ध जीवक प्रति संस्करण कर्ता वात्सायन समय :- इसका समय 6 शताब्दी माना जाता है। परंतु यह उससे भी पुरानी होने की […]