आचार्य सुश्रुत ने बाह्य कारण से (Bahya roga) 2 प्रकार के लिंगनाश का वर्णन किया है।
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सनिमित्त नेत्र रोग | सिर के अभिताप से उत्पन्न, अभिष्यंद समान लक्षण | Optic neuritis- it is inflammation of optic nerve |
अनिमित्त नेत्र रोग | देवता, ऋषि, गंधर्व, बडे़ सर्प को देखने से तथा प्रकाशवान पदार्थ देखने से दृष्टि नष्ट, स्पष्ट दिखता है, प्राकृत वर्ण एवं विमल होता है | Optic atrophy- it refers to degeneration of optic nerve |
अभिघातज लिंगनाश | अभिघात से दृष्टि विदीर्ण, दब जाती है बिल्कुल नष्ट हो जाता है |
असाध्य नेत्र रोग :-
17 नेत्र रोग असाध्य बताए हैं जो की
- 4 वातज रोग (हताधिमंथ, निमेष, गंभारिका, वातहत)
- 2 पित्तज रोग (पित्तज स्त्राव, हृस्वजाडय)
- 1 कफज रोग (कफज स्त्राव)
- 4 त्रिदोषज रोग (पूय स्त्राव, अलजी, नकुलांध्य, अक्षिपाकात्य)
- 4 रक्तज रोग (रक्तज स्त्राव, शोणितार्श, अजकाजात, सव्रण शुक्र)
- 2 बाह्य रोग/Bahya roga ( सनिमित, अनिमित्त लिङ्नाश)