रसं गन्धं विषं तानं मर्दयेदेकयामकम्। आर्द्रकस्य रसेनैव मर्दयेत्सप्तवारकम्॥ निर्गुण्ड्या: स्वरसे पञ्चान्मर्दयेत्सप्तवारकम्। गुजैकारसेनैव दत्त्वा हन्ति ज्वरं क्षणात्। वातजं पित्तजं श्लेष्मद्विदोषजमपि क्षणात्॥ सुशीतलजले स्नानं तृष्णार्ते क्षीरभोजनम्। आनं च पनसं चैव चन्दनागरुलेपनम्॥ एतत्समो रसो नास्ति वैद्यानां हृदयङ्गमः। एष चण्डेश्वरो नाम सर्वज्वरकुलान्तकृत्॥ (बसवराजीयम् 1 प्रकरणम् )
द्रव्य :- पारद, गंधक, वत्सनाभ, ताम्र भस्म ( सभी सम मात्रा में )
भावना द्रव्य :- निर्गुंडी स्वरस की 7 भावना
मात्रा :- 1 गूंजा ( 125 mg )
अनुपान :- आदरक स्वरस
उपयोग :- ज्वर, वात, पित्त, कफ ज्वर, द्वंद्व ज्वर, समस्त ज्वर कुल नाशक
पथ्य :- उष्ण जल स्नान, तृष्णा लगने पर क्षीर सेवन, भोजन में आम, पनस व शरीर पर चंदन का लेप
Praise :- इस रस योग के समान चिकित्सकों का हृदयङ्गम ,चिकित्सा कार्य हेतु अति प्रभावशाली होने से प्राथमिकता से प्रिय औषधि योग अन्य नहीं है।