चपल (Chapal) के नाम :-
संस्कृत | चपल: |
हिंदी | चपल |
English | Bismuth ore |
काठिन्य :- 2 – 2.5
विशिष्ट गुरुत्व :- 9.7
घनत्व :- 7.8
उत्पति :–
पौराणिक मान्यता के अनुसार चपल (Chapal) ईश्वर के नासारंध्र का मल है। माक्षिक की खानों से इसकी प्राप्ति होती है।
जहां पर नाग वंग उतपन्न होता है, वहां पर चपल भी मिलता है।
निरुक्ति :–
वंग की तरह अग्नि पर द्रवित करने पर शीघ्रता से पिघलने ले कारण इसे चपल (Chapal) कहते हैं।
Types :-
प्रथम भेद | द्वितीय भेद | ||
1.गौर | हेमाभ | 1.सित | रसबन्धकर , देर से द्रवितभोने वला गुणवान |
2.श्वेत | ताराभ | 2.असित | रसबन्धकर ,देर से द्रवित होने वाला,गुणवान |
3.अरुण | 3.हरित | शीघ्र द्रवित होने वाला निष्फल | |
4.कृष्ण | 4.शोण | शीध्र द्रवित निष्फल |
ग्राह्य चपल :-
स्फटिक आभा वाला, षट्कोण युक्त, चिकना, भारी होता है।
विविध वर्ण गन्धक, एंटीमनी, लौह, ताम्र तथा आर्सेनिक तत्वों के अल्पमात्रा में पाय जाने के कारण होते है।
चपल शोधन :–
सर्वप्रथम चपल (Chapal) चूर्ण करके जम्बीरी नींबू, तथा अदरक स्वरस की 7 – 7 भावना देने से चपल शुद्ध हो जाता है।
मारण :-
शुद्ध चपल में समान भाग गिरिसिंदूर या गन्धक डालकर निर्गुण्डी स्वरस की भावना देकर, बालुका यन्त्र विधि से पाक क्र सुंदर रक्तवर्ण की भस्म बन जाती है।
सत्वपातन :-
चपल का चूर्ण करके उसमे विष, उपविषों के क्वाथ, एवं धान्याम्ल की भावना देकर पिंड बनाये।
फिर पिंडों को सुखाकर अंधमूषा में रखकर धमन करने पर चपल का सत्व निकल जाता है।
गुण :-
लेखन, स्निग्ध, पारद के गुणों को बढ़ाने वाले, रस में तिक्त, वीर्य में उष्ण, विपाक में मधुर।
यह त्रिदोषनाशक, अतिवृष्य तथा पारद का बन्धन करने वाला होता है।
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