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Role of Darshan in Ayurveda ( आयुर्वेद व दर्शन )

आयुर्वेद में न ही केवल ‘दर्शन’ शास्त्रों से प्रभावित हुआ है अपितु वह खुद भी एक मौलिक आस्तिक दर्शन भी है। आचार्य चरक ने इसी को प्रतिपादित भी किया है और कहा है कि आयुर्वेद का ज्ञान उसे ही देना चाहिए जिसकी ईश्वर में आस्था हो, उसके साथ साथ में आयुर्वेद को अथर्व वेद का उपवेद भी कहा जाता है और जितने भी दर्शन है, वह भी वेदों से ही उत्पन्न हुए है। आज हम इसी विषय (Darshan in Ayurveda) के बारे में विस्तार से बात करेंगे।

आयुर्वेद के ऊपर अन्य दर्शनों का प्रभाव :-

यहां हम आयुर्वेद पर दर्शन का प्रभाव दिखाने के लिए कुछ विषय बातेंगे परंतु यह ओर भी हो सकते है जैसे जैसे आप आयुर्वेद व दर्शन के आपार समुद्र में जाए तो कुछ विषय इस प्रकार है :-

  • पंच महाभूत सिद्धांत दर्शनों से आयुर्वेद में आया है। (वेदांत दर्शन)
  • षड् पदार्थ को आयुर्वेद भी मानता है (वैशेषक दर्शन)
  • सृष्टि उत्पत्ति कर्म (सांख्य दर्शन)
  • 4 प्रमाण (प्रत्यक्ष, अनुमान, आप्तोपदेश, उपमान) (न्याय दर्शन)
  • संभाषा परिषद चरक विमान स्थान (न्याय दर्शन)
  • 25 तत्वात्मक पुरुष (कर्म पुरुष) इसे ही चिकित्सा का अधिकार है (सांख्य दर्शन)
  • योग व मोक्ष का प्रतिपादन (चरक शरीर) (योग दर्शन)
  • चरक व पतंजलि को कुछ व्यक्ति एक ही मानते है।
  • वेदांत दर्शन का आध्यात्म वाद आयुर्वेद में भरा हुआ है जैसे ज्वर की उत्पत्ति आदि।
  • मीमांसा दर्शन से मंत्र, होम, यज्ञ आदि विषय आयुर्वेद में वर्णित है।

इस प्रकार आस्तिक दर्शनों का प्रभाव आयुर्वेद शास्त्र पर पड़ा है।

आयुर्वेद खुद भी एक मौलिक दर्शन है इससे धर्म अर्थ, कर्म, मोक्ष चारों पुरुषार्थ की प्राप्ति होती है। जब एक ही शास्त्र से चारो पुरुषार्थ की प्राप्ति हो जाएं तो किसी अन्य पर क्यू जाना ?

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