इसमें शूक धान्य (Shukh Dhanya) और शमी धान्य (Shami Dhanya) का वर्णन दिया गया है।
शूकधान्यवर्ग (Shukh Dhanya) :-
- महाशालि
- कलम (जो उखाड़ कर पुनः प्रतिरोपित जाता है, जैसे रोपा धान)
- शकुनाहृत
- तूर्णक
- दीर्घशूक
- गौर धान्य (गौरिया)
- पाण्डुक,पाल
- सुगन्धिक (बासमती)
- लोहवाल
- सारिका
- प्रमोदक
- पतंग तथा जपनीय
- रक्तशाली (लाल धान)
● ये सभी प्रकार के चावल होते हैं और भी जो अन्य श्रेष्ठ धान्य होते हैं, वे सभी रस और विपाक में मधुर एवं शीतवीर्य होते है। यें कुछ वातकारक, मल को बांधने वाले, अल्प मल लाने वाले, शुक्र और मूत्र को लाने वाले होते हैं। इन सभी धान्यों में लाल शाली चावल सबसे श्रेष्ठ होता है। प्यास को बढ़ाता है और त्रिदोषशामक है।
उसके बाद महाशालि, फिर कलम धान का स्थान है और उत्तरोत्तर आगे कहे गये है, धान्य गुणों में कम होते जाते हैं। यवकधान्य, हायनधान्य, पांशुधान्य, वाप्यधान्य नेपघ्क आदि शालिधान्य रक्तशालि आदि धान्यों के समान ही गुण-दोष वाले होते हैं।
रक्तशालि आदि के गुण :-
तृष्णाघ्न, त्रिदोषघ्न कहे गये हैं। उनके विपरीत तृष्णा कारक, त्रिदोषकारक आदि विपरीत गुणों से यवक आदि धान्य आदि का अनावरण करते हैं। अतः यवक आदि प्यास और त्रिदोष को बढ़ाने वाले होते हैं।
- षष्टिकधान्य के गुण साठी का चावल शीतवीर्य, स्निग्ध, हलका मधुर और त्रिदोषनाशक है और शरीर को स्थिर बनाता है।
- इसके दो भेद होते हैं- १. गौर और २. कृष्ण। इनमें गौर प्रवर (श्रेष्ठ ) और कृष्ण उससे कुछ न्यून गुण का होता है। वर्क (टोकन), उद्दालक (कोदो), चीन (चीना), शारद।
- ब्रीहि धान्य:- ये धान्य (शारद धान्य) रस में मधुर और विपाक में अम्ल होते हैं, पित्तकारक और भारी होते हैं।
- पाटिल धान्य:- ये मूत्र, पुरीष और ऊष्मा को बढ़ाने वाला एवं त्रिदोष को कुपित करने वाला होता है।
- गेहूं के गुण:- स्तनों का सन्धान करने वाला, वातनाशक, रस में मधुर, वीर्य में शीत।
- जीवनीय, वृष्य, सलिग् और शरीर को स्थिर बनाता है एवं भारी होता है।
- दोनों मधुर, स्निग्ध और शीतवीर्य होते हैं; इस प्रकार शूकधान्यों का यह पहला वर्ग समाप्त होता है ॥
शमी धान्यवर्ग (Shami Dhanya):-
शमीधान्य | गुण व कर्म |
मूंग | मूंग रस में कषाय-मधुर, रुक्ष, शीत और पाक में कटु एवं लघु होता है। यह विशद, पिपासानाशक और सभी दालों में श्रेष्ठ होता है। |
उड़द | उड़द अत्यन्त वृष्य, वातनाशक, स्निग्ध, उष्णवीर्य, मधुर रस, गुरु, बलवर्धक, मल-मूत्र अधिक उत्पन्न करने वाला और पौरुष शक्ति को शीघ्र बढ़ाने वाला होता है। |
राजमाष | बड़ा उहद विरेचक, रुचिकारक, कफ-वीर्यहर एवं अम्लपित्तनाशक है। यह मधुर, वातनाशक, रुक्ष, कषाय, विशद और गुरु होता है । |
कुलथी | उष्ण, कषाय, विपाक में अम्ल, कफ-शुक्रहर, वातनाशक, संग्राहक; कास, हिकका, श्वास और अर्श रोगनाशक है । |
मोठ | मोठ मधुर रस और मधुर विपाक वाला होता है। यह ग्राह्यी, रूक्ष और शीतवीर्य होता है। रक्तपित्त और ज्वर आदि रोगों में उत्तम पथ्य होता है। |
चना | चना, मसूर, खेसारी और मटर की दाल लघु, शीतवीर्य, मधुर, कषाय होती हैं। ये पित्तश्लेष्मज रोगों में दाल के लिए और चने की दाल संग्रही है और मटर की दाल वातवर्धक है। |
तिल | तिल स्निध, उष्णवीर्य और मधुर, तिक्त, कषाय तथा कटु रस वाला होता है। व और केश के लिए हितकर, बलवर्धक, वातनाशक और कफ एवं पित्त को बढ़ाने वाला होता है |
शिम्बीधान्य | मधुर, शीतल, कलाकार और देर में रूक्षता जनक होते हैं। बलवान पुरुष का नह (धान्तल) के साथ प्रयोग करना चाहिए। कोष्ठ में वात को प्रकुपित करने वाली होती है और कब्ज के साथ पचने वाली होती है। |
अरहर | अरहर की दाल कफ तथा पित्त नाशक होती है तथा वातकारक है। बाकुची ओर चकवड़ के बीज- ये कफ और वात का नाश करते हैं। सेम के बीज वात-कफ को बढ़ाते हैं। |
शूक शिम्बी और केवाच :- इन दोनों के गण उड़द के समान है। इस प्रकार शमीधान्य की वर्ग का महर्षि ने उपदेश किया है।
One reply on “Shukh and Shami Dhanya Varg / शूक एवं शमीधान्य वर्ग”
[…] After Reading this post, read sukH and shami dhanya varg. […]