नाम: –
संस्कृत | गिरिसिन्दूर |
हिन्दी | गिरिसिन्दूर |
Chemical name | Red oxide of mercury |
पर्याय:-
सिन्दूर, गिरिसिन्दूर, महिलाभालभूषण, गणेशभूषण, माङ्गल्य, भालसौभाग्य, रक्तरेणु, नागगर्भ, नागज।
इतिहास:-
8वीं शताब्दी के बाद के रसग्रन्थों में इसका उल्लेख मिलता है।
प्राप्ति स्थान:-
पर्वत से।
परिचय:-
- बड़े बड़े पर्वतों के अंदर जो पारद शुष्क और रक्तवर्ण पदार्थ के स्वरूप में मिलता है, इसे ही गिरिसिन्दूर कहते है।
- यह सिन्दूर के समान रक्तवर्ण का चमक दार होता है।
- It is combination of Hg and OXygen.
- बाजार में सिंदूर नाम से पदार्थ मिलता है – lead proxide .
गिरिसिन्दूर गुण:-
- यह त्रिदोषशामक,
- मल का भेदन करने वाला,
- देहसिद्धि लौह सिद्धि कराने वाला,
- रसबन्धन करने में अग्रगण्य तथा
- नेत्र के लिए हितकर होता है।
- इसका अन्तः प्रयोग निर्दिष्ट है।
सिन्दूर के गुण :-
- यह त्वचा के लिए हितकर,
- क्षुद्रकुष्ठनाशक,
- भग्नसंधान करने वाला,
- व्रणरोपक,
- व्रणशोधक,
- पामा, विचर्चिका, सिध्म, विसर्प एवं अन्य कदोष जन्य रोग एवं
- जीवाणु नाशक होता है।
- इसका बाह्य प्रयोग ही किया जाता है।
रसजलनिधिकार ने सिन्दूर के दो भेद माने है:
(1) गिरिसिन्दूर : स्वभाव
(2) नागसिन्दूर (कृत्रिम)
★नागसिन्दूर (Red Oxide of Lead) कृत्रिम रूप से बनाया जाता है। आचार्य कुलकर्णी जी ने पारद के खनिज Montroydite को गिरिसिन्दूर मानने का विचार प्रकट किया है।
One reply on “Giri Sindoor (गिरी सिन्दूर)- Red oxide of mercury : साधारण रस”
[…] नवसादर अग्नि – अग्निजार सिंदूर – गिरि सिंदूर कपड़े – कपर्द ही – हिंगूल मुख से […]