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Dravya Guna Syllabus

Jal Varg / जल वर्ग – According to B.A.M.S.

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जल के संस्कृत नाम :-

पनिय, सलिल, नीर, कीलाल, जल, अंबु, आप:, वार्, वारि, क, पाय:, उदक, जीवन, वन, अंभ:, अर्ण:, अमृत, तथा घनरस ।

जल के कार्य :-

श्रम को दूर करने वाला, कांटिनाशक, मुर्षा, पायस को दूर करने वाला, वमन व विबंध को हटाने वाला, बलकारक, निद्रा दूर करने वाला, तृप्तिदायक, हृद्या के लिए हितकर, एक्वाक्त रस वाला, अजीर्ण का शमन करने वाला, सदा हितकर, लघु, सवच, शीतल, सम्पूर्ण मधुरादि रस के कारण एवं अमृत के समान गुण वाला।

जल के भेद :-

  1. दिव्य जल
    a) धारज (अधिक गुणकारी)
    •गाङ्ग
    •सामुद्र
    b) करकाभव
    c) तौषार
    d) हैम
  2. भौम जल
    • देश भेद से
      • जाङ्गल
      • आनूप
      • साधारण
    • नदी आदि भेद से
      • नादेय
        • a) शीघ्र चलने वाली – लघु एवं स्वच्छ
        • b) मंद गति से चलने वाली – गुरु
        • c) हिमालया से निकलने वाली – पथ्या
        • d) सहायपर्वत से निकलने वाली
      • औद्धिद
      • सारस
      • तड़ाग
      • चौण्ड
      • प्रास्तवण
      • वाक्य
      • कौप
jal varg
Types of Jal Varg
धारज (Rain water) के लक्षण :-

धारा के रूप में आकाश से गिरा हुए जल यदि धुले हुए साफ बर्तन या जमीन पर गिरे या जमीन पर गिरे हुए जल को सवछ मोटे वस्त्र से छान कर रख ले।

गुण :- त्रिदोषनाशक , अनिर्देशिया रस वाला, लघु, सौम्या, रसायन, बलकारक, तृप्तिदायक, जीवन सवरूप, पाचक, बुद्धि वर्धक, तंद्रा, दाह, श्रम, मूर्च्छा,पायस को दूर करने वाला होता है। वर्षा ऋतु में विशेष पथ्या।

  • गाङ्गजल:- वह जल जिष्मे भिगोया हुआ शालि धन्या / चावल वैशा ही बना रहे व इस जल को सम्पूर्ण दोषों को दूर करने वाला समझना चाहिए।
  • सामुद्र लक्षण:- यदि उक्त क्रम से भिगोया हुआ चावल अन्यथा अर्थात् क्लिन हो जाय (फूल जाने से रंग बदल जाय) तो उसे सामुद्र (धाराजल) समझना चाहिये। क्षार तथा लवण रस युक्त, शुक्र तथा दृष्टिशक्ति नाशक, दुर्गन्ध युक्त, दोषकारक तथा तीक्ष्ण होता है । एवम् यह सम्पूर्ण कार्यों में अहितकर होता है। किन्तु यदि यही सामुद्रसंज्ञक धाराजल आश्विन मास का बरसा हुआ संगृहीत हो तो गुणों में गंगाजल के तुल्य ही हितकर होता है ऐसा समझना चाहिये ।
Hail stone (करका) :-

कर काजल के लक्षण-आकाशस्थ वायु तथा अग्नि के संयोग से घन होकर जो पत्थर के टुकड़े की भाँति जल (ओला) गिरता है वह करका य़ा कारकी कहलाता है तथा वह अमृत के समान् स्वादिष्ट होता है।
गुण:- रूक्ष, विशद, गुरु, स्थिर, शीतल तथा सान्द्र पित्तनाशक तथा कफ और वात को उत्पन्न करने वाला होता है।

तौषार (River flowing Water):-

नदी से लेकर समुद्र पर्यन्त तक के जल को तौषार कहते है|जल प्राणी मात्र के लिये अपथ्य है किन्तु केवल वृक्षों के लिये हितकर होता है|

गुण :- शीतल, रूक्ष, वातजनक, किञ्चित् पित्तकारक एवम्-कफ, ऊरुस्तम्म, कण्ठ तथा अग्नि सम्बन्धी रोग, प्रमेह तथा गलगण्डादि रोग को दूर करने वाला होता है।

हेम (Snow) :-

हिमालय के शिखर आदि स्थानों से द्रवीभूत होकर (बर्फ) बरसता है। शीतल तथा रूक्ष ,कठिन तथा सूक्ष्म होता है और न ही किसी दोष की दूषित करता है।

देश भेद से :-
  1. जांगल जल= रूक्ष, लवण संयुक्त, लघु, पित्त नाशक, अग्निवर्धक, कफनाशक, पथ्य एवम् अनेक प्रकार के विकारों को नष्ट करने वाला होता है।
  2. अनूप जल= रूक्ष, लवण रसयुक्त, लघु, पित्त नाशक, अग्निवर्धक, कफनाशक, पथ्य एवं अनेक प्रकार के विकारों को नष्ट करने वाला होता है।
  3. साधारण जल= मधुर रसयुक्त, अग्निदीपक, शीतल, लघु, तृप्तिकारक, रोचक एवम् प्यास, दाह तथा त्रिदोष को दूर वाला होता है|
नदी आदि भेद से :-
  1. नादेय के लक्षण= रूक्ष, वातजनक, लघु, अग्निदीपक, ईषत् अभिष्यन्दी, विशद ,कटु रस युक्त एवम्-कफ तथा पित्त को दूर करने वाला होता है। a) शीघ्र चलने वाली – लघु एवं स्वच्छ b) मंद गति से चलने वाली – गुरु c) हिमालया से निकलने वाली – पथ्या d) सहायपर्वत से निकलने वाली – कुष्ठ रोग कारक, वात कफ कारक।
  2. औद्धिद (Hot water spring)= जल के लक्षण- नीची जमीन को फोड़कर जो बड़ी धारा से निकल कर बहे। पित्तनाशक, अविदाही, अतिशीतल, तृप्तिकारक, मधुररसयुक्त, बलकारक, एवम् किञ्त वातकारक होता है|
  3. सारस = झील का जल मधुर एवं लघु, कृपा नाशक वातवर्धक।
  4. तड़ाग = तालाब का जल वातवर्धक, मधुर, कषाय एवं कटु पानी होता है।
  5. चौण्ड = पित्तवर्धक, अग्निदीपक, रूक्ष, मधुर होते हुये भी कफकारक नहीं होता।
  6. प्रास्तवण = झरने का पानी दोष शामक, कफनाशक हृदय और लघु होता है।
  7. वाक्य = बावली का पानी मधुर एवं लघु होता है।
  8. कौप = कूप का जल, खारा, पित्तकारक, मीठा जल अग्नि दीपक, शीतल होने पर भी वातकारक नहीं होता तथा लघु भी होता है।
गुणकारक जल :-

गन्धरहित, स्वादरहित, अत्यंत शीतल, तृष्णा शमन करने वाला, स्वच्छ लघु एवं गुणकारक होता है इन गुणों से अतिरिक्त हानिकारक होता है।

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