मंत्र प्रभाव से कार्य करते है और उनका प्रभाव शब्दों में कहने योग्य नहीं है, आर्ष संहिताओं में विभिन्न जगाओ पर मंत्रो के उपयोग व रोग निवारण का वर्णन मिलता है उसी प्रकार से आज हम ज्वर नाशक मंत्रो को आपको बताते है, मंत्रो को बताने से पहले आपको ज्वर की उत्पति के बारे में बताते है।
ज्वर की उत्पति :-
ज्वर की सर्व प्रथम उत्पति शिव के कोप के कारण सर्व प्रथम ज्वर की उत्पति हुई इसके लिए एक पुराणिक गाथा है जो कि आर्ष संहिताओं में भी मिलती है एक बार शिव जी ने दक्ष के यज्ञ को विद्वांश करने के लिए क्रोध के कारण वीरभीद्र को उत्पन्न किया और कार्य पूर्ण होने के बाद में जब वीरभीद्र ने पूछा कि अब आगे क्या करे तब भगवान शिव ने क्रोध रूपी ज्वर को आज्ञा दी कि तुम मनवो में जन्म, मरण आदि में होना इस प्रकार भगवान शिव ने ज्वर की योनि उत्पन्न करी।
शीत ज्वर की उत्पति :-
एक बार जब भगवान शिव से सुरकक्षित बाणासुर नामक दानव ने भगवान श्री कृष्ण के पुत्र को उठा लिया था तब भगवान शिव ने भगवान कृष्ण पर ज्वर को भेजा तब उससे मुक्ति के लिए भगवान कृष्ण ने शीत ज्वर उत्पन किया।
मंत्र :-
ओं नमो भगवते परमार्थिनि सर्वज्वर रक्षस्वाहा। हरिणा सारङ्गसारङ्गस्वामिर्निप्रसादम्। ( बसवराजीयम् 1 प्रकरणम् )
सोमं सानुचरं देवं समातृगणमीश्वरम् ॥३१० ॥ पूजयन् प्रयतः शीघ्रं मुच्यते विषमज्वरात्। विष्णुं सहस्रमूर्धानं चराचरपतिं विभुम् ।। ३११ ॥ स्तुवन्नामसहस्रेण ज्वरान् सर्वानपोहति । ब्रह्माणमश्विनाविन्द्रं हुतभक्षं हिमाचलम् ॥ ३१२|| गङ्गां मरुद्गणांश्चेष्ट्या पूजयञ्जयति ज्वरान् । भक्त्या मातुः पितुश्चैव गुरूणां पूजनेन च॥ ब्रह्मचर्येण तपसा सत्येन नियमेन च। जपहोमप्रदानेन वेदानां श्रवणेन च ॥३१४॥ ज्वराद्विमुच्यते शीघ्रं साधूनां दर्शनेन च । ( च. संहिता चिकित्सा 3/310-312 )
- उमा एवं नन्दी आदि अनुचरों और कृत्तिका आदि मातृगणों के साथ शिव की जितेन्द्रिय होकर पूजा करने से मनुष्य विषमज्वर से मुक्त हो जाता है।
- सहस्र शिरोंवाले, चर-अचर के स्वामी, सर्वत्र व्यापक भगवान विष्णु के सहस्रनाम का पाठ करता हुआ मनुष्य सभी तरह के ज्वरों को नष्ट कर देता है।
- ब्रह्मा, दोनों अश्विनीकुमार, इन्द्र, अग्नि, हिमालय, गङ्गा और मरुद्गण इन सबकी यज्ञ के द्वारा पूजा करने वाला मनुष्य सभी प्रकार के ज्वरों पर विजय प्राप्त कर लेता है।
- इसी प्रकार भक्तिश्रद्धापूर्वक माता-पिता और गुरुजनों की पूजा करने से, ब्रह्मचर्य धारण करने से, तप करने, सत्य बोलने और नियमों के पालन करने से, जप करने, हवन करने, दान देने, वेदों का श्रवण करने, सजन्न पुरुष के दर्शन से रोगी मनुष्य शीघ्र ही ज्वर मुक्त हो जाता है।
- ज्वर में सर्व प्रथम उपवास करने के लिए कहा गया है।
इहापहाय व्रतमुष्णवारि ज्वरारियूषादि गदापहारि ।ज्वरच्छिदं जीवितदञ्च नित्यं मृत्युञ्जयं चेतसि चिन्तयस्व ॥६६५॥ ( भा. प्रकाश चिकित्सा 1/665 )
- अंतक ज्वर में भगवान शिव के ध्यान के अलावा अन्य कोई चिकित्सा नहीं वैद्य को औषध के स्थान पर गंगा जल का सेवन कराना चाहिए और अगर रोगी भगवान शिव का ध्यान न करे तोह वैद्य को करना चाहिए।
अन्य मंत्र :-
ॐ नमो भगवते रुद्राय छिन्धि छिन्धि ज्वरं ज्वराय ज्वरोज्वलित कपाल पाणये हुं फट् स्वाहा। ( रावण संहिता )
अप्रयुक्त मंत्र को भोज पत्र पर लिख कर दाहिने हाथ पर बांदे व 108 बार जाप करने से सब प्रकार के ज्वर का नाश होता है।