नाम :-
संस्कृत | कांस्य |
हिन्दी | कांसा |
English | White copper |
Latin | Bronze |
पर्याय :-
- कांस्य
- घोष
- कंसक
- सौराष्ट्रज
- कंसीय
- वह्निलौह
- घोषपुष्प
- ताम्रत्रपुज
History :-
Charak Samhita = बर्तन, घण्टी, मुर्तियाँ आदि के निर्माण में कांस्य (Kaansya) का वर्णन मिलता है।
Sushrut Samhita Kaal = अनेक स्थानों पर इसके पात्रों का वर्णन मिलता है।
परिचय :-
- 8 part Copper (Cu) + 2 part Tin (Sn)➡ (melt )➡ White Copper (कांस्य)
- A shiny metal of white gold.
Types :-
- पुष्प कांस्य= श्वेतवर्ण, श्रेष्ठ माना जाता है।
- तैलिक कांस्य= कपिश वर्ण
ग्राह्य कांस्य लक्षण :-
- जो कांस्य (Kaansya) तीक्ष्ण शब्द युक्त,
- मृदु, चिकना,
- थोड़ा श्याव श्वेत वर्ण, स्वच्छ, चमकीला और
- तपाने पर रक्तवर्ण का श्रेष्ठ होता है।
अग्राह्य कांस्य लक्षण :-
- जो कांस्य पीलावर्ण,
- अग्नि पर तपाने पर – ताम्र रंग का होने वाला,
- खुरदरा, रूक्ष, आघात को न सहने वाला (भंगुर ) ,
- आघात करने पर – धीरे से ध्वनि उत्पन्न करने वाला और
- चमक रहित हो, वह कांस्य (Kaansya) त्याज्य होता है।
कांस्य का शोधन :-
एक बर्तन में ➡ गोमूत्र + सैंधव लवण
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उसमें कांस्य पत्र को रखें
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गैस पर चढ़ाकर एक प्रहर (48 min) तक अग्नि पर पकाने पर शुद्ध हो जाता है।
कांस्य का मारण :-
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निम्बू स्वरस में पीसकर
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कांस्य पत्र पर लेप कर सुखाएं
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शराव सम्पुट में बन्दकर अर्धगज पुट की अग्नि में पकाये
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5 पुट देने पर भस्म हो जाती है।
कांस्य भस्म वर्ण :-
कृष्ण वर्ण
भस्म मात्रा :-
1/2 – 1 रत्ती तक
अनुपान :-
मधु
कांस्य भस्म गुण :-
- रस – तिक्त
- गुण – लघु
- वीर्य – उष्ण
- लेखन, दीपन, कृमि हर, वात पित्त शामक होता है।
प्रमुख योग :-
- क्षयकेशरी रस
- नित्यानन्द रस
- लक्ष्मीविलास रस
- चिन्तामणि रस
- वातविध्वंसन रस