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Ras Shastra Syllabus

Kampilak (कम्पिल्लक) : Mallotus philippinensis

हिन्दीकबीला
संस्कृतकम्पिल्लक
लेटिनMallotus philippinensis muell arg

पर्याय:-

कम्पिल्लक, रक्तचूर्णक, रेचन, कर्कश, रोचन, रक्ताङ्ग, चन्द्र।

इतिहास-

भारतीय चिकित्सा के प्राचीनतम ग्रन्थ चरक, सुश्रुत एवं अष्टांग हृदय आदि ग्रंथों में अनेक रोगों की चिकित्सा में प्रयोग करने का निर्देश है।

रसशास्त्र के ग्रन्थों में साधारण रस वर्ग के अन्तर्गत वर्णन किया गया है इससे सिद्ध होता।

Habitat:-

वर्तमान समय में भारत के अनेक स्थानों विशेषकर हिमालय, पूर्वी बंगाल, कर्नाटक, मालाबार एवं मद्रास तथा विदेशों में वर्मा, सिंगापुर एवं मलाया आदि देशों में मिलता है।

वानस्पतिक परिचय-

●कम्पिल्लक का वृक्ष 25 से 30 फीट ऊँचा होता है।

●इसकी पत्तियाँ 3″ से 4″ इंच लम्बगोल एवं ऊपर से चमकदार होती है।

●इसका नीचे का भाग फीका होता है।

● वर्षा ऋतु के अन्त में पुष्प एवं शीत ऋतु में फल लगता है।

●फूल छोटा एवं गुच्छों के रूप में होता है।

●फल छोटे बेर के आकार के होते हैं, जो बसन्त के प्रारंभ में पकता है।

●फल के छिलके पर रक्तवर्ण का चमकीला महीन रजः कण चिपका रहता है।

● फल पक जाने पर इसे तोड कर सुखा लेते है। और सूखने पर छिलकों को रगड़कर रजकण प्राप्त किया जाता है।

★ इसे ही कम्पिल्लक कहा जाता है।

कम्पिल्लक परीक्षा :

  1. यह ठण्डे जल में अविलेय होता है। गर्मजल में अत्यल्प घुलनशील होता है।
  2. इसके चूर्ण को जल के ऊपर डालने पर तैरता रहता है।
  3. आग पर डालने पर बारूद की तरह विस्फोट करके जलता है।
  4. इस को भीगी अंगुली से चिपकाकर सफेद कागज पर घिसने से कागज को पीला कर देता है। यह स्पर्श में मृदु होता है।

कम्पिल्लक में मिलावट:-

फलरज होने के कारण इसमें किसी प्रकार की अशुद्धि नहीं होती है। यह स्पर्श में मृदु एवं अत्यन्त लघु होता है ।

■लेकिन व्यापारी लोग अधिक मुनाफा कमाने के लिए इसमें ईंट का चूर्ण मिलाकर बेचते है।

■अतः मिलावटी कम्पिल्लक स्पर्श में कठिन, रूक्ष और भारी होता है।

शोधनः

◆इष्टिका चूर्ण आदि कृत्रिम बुद्धि को दूर करने के लिए बाल्टी भरे हुए जल में डाल देते है।

जिससे कम्पिल्लक ऊपर तैरता रहता है एवं इष्टिका चूर्ण जल में नीचे बैठकर जम जाता है।

फिर ऊपर तैरते हुए कम्पिल्लक को छानकर सुखाने से शुद्ध हो जाता है।

Chemical constituents:-

●Roletine yellow crystalline substance mainly

●Resins of red yellow colour

●volatileoils ,sugar ●tannin

●oxalic acid and citric acid in low quantity.

शास्त्रीय परिचयः-

कम्पिल्लक ईंट के चूर्ण के सदृश रक्तवर्ण का चमकीला होता है। कम्पिल्ल (सौराष्ट्र) देश में उत्पन्न होने के कारण ही इसे कम्पिल्लक कहा जाता है।

कम्पिल्लक के गुण :-

यह दूषित ●पित्त, व्रण, ●आध्मान,● विबन्ध, ●दूषित कफ, ●उदर रोग, ●कृमिरोग, ●गुल्म, ●शोथ, ●आमदोष, ●ज्वर, ●शूलहर तथा विरेचन से शान्त होने वाले सम्पूर्ण रोगों का नाश करता है।

★कम्पिल्लक उत्तम कृमिघ्न, त्वग्दोषनाशक और व्रणरोपक है।

मात्रा:-

4-6 गुञ्जा, ◆रेचन के लिए 3-6 माशा।

प्रमुख योग-

( 1) कम्पिल्लक मल्हार

(2) कृमिघातिनी गुटिका

(3) त्रिफलादि घृत

(4) पटोलादि चूर्ण

(5) बिंदु घृत

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