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कस्तूरी (Kasturi):-
कपिला, पिंगला, कृष्णा कस्तूरी त्रिविधा क्रमात।
नेपालॆऽपि च कश्मीरॆ कामरूपॆ च जयते ।। ( राज नीघंटू)
कस्तूरीका रसे तिकता कटु: शालेशमनिलापहा ।
उषणा बलया तथा वृष्या शीतदोर्गंद्यानाशनी । ( यादव जी)
मृग नाभिमृगमद: कथितास्तू सस्त्रभित् ।
कस्तूरीका च कस्तूरी वेडमुख्या च सा समृता।। कामरूपॊद्धवा कृष्णा नेपाली नीलवर्णयुक् ।
काश्मीर कपिलाच्छाया कस्तूरी त्रिविधा सामृता ।।
कामरूपॊद्धवा श्रेष्ठा नैपाली मध्यमा भवेत् ।
काश्मीरदेशसम्भूता कस्तूरी हाधमा मता ।।
कस्तूरीका कतितिक्ता क्षारोष्णा शुक्रला गुरु:।
कफवात विषच्छृदिशीतडॉर्गंद्या शोषहृत् ।। (भाव प्रकाश कपुरादी वर्ग )
हिंदी नाम: कस्तूरी (Kasturi), मृगनाभी, सस्त्रभित्, वेधमुखिया
संस्कृत नाम: मृगमद, मृगनाभी, सस्त्रभिद, कस्तुरिका, कस्तूरी।
Latin name: Moskus
English name: Musk
यह कस्तूरीमृग (Moschus moschiferous ) विशेष हिरण की जाती है। जो मध्य एशिया, हिमालया, उत्तरी भारत, कश्मीर, नेपाल, भूटान, चीन, तीबात, आदि पर्वती चेत्रो के घने जंगलों में 8-12 हजार फीट की ऊंचई पर पाया जाता है। युवा अवस्था या मदकाल में कस्तूरी स्त्राव बनना प्राराब होता है। यह थैली लिंगाकर और नाभि के मध्य में होता है। इस काल में उष्मे कस्तूरी की गंध आती है।
यह मृग अन्य पदार्थ की गंध समाज कर उसके पीछे जंगल में इधर-उधर घूमता रहता है। वह झाड़ियों एवं वृषो को सूंघता है। इसी अवस्था में शिकारी लोग मृग को मारकर या कभी-कभी जीवित को पकड़कर कर्तुरी कोष्ट को निकाल सूखते है। इसके बाद मेह कस्तूरी खुरच कर अलग की जाती है , कस्तूरी 1 से 2 वर्ष के मृग की आयु में सफ़ेद वर्ण के पेस्ट के रूप में होती है, परन्तु धीरे-धीरे रक्त वर्ण के बड़े-बड़े गोल दानो के रूप में एवं तीव्र गंदी कस्तूरी प्राप्त होती है। बालक, वृद्ध, क्षीण अवस्था वाले मृग से कस्तूरी अल्प मात्रा में एवं स्वलप गंधवाली मिलती है।
तीन प्रकार की कस्तूरी (Kasturi):-
- कामरूप कामदेश (कृषणवर्ण कली)- उत्तम
- नेपाल देश (नीली)- माध्यम
- कश्मीर (कपिल वर्ण)- अधम
शुद्ध कस्तूरी (Pure Kasturi):-
रक्ताब, कृष्ण वर्ण, पिंगलाब, मृदु, लघु, गोल बड़े दानों वाली, झिल्ली रहित तथा;
केवड़े के समान तेशन गंध वाली होती है। घोटने पर मृदु हो जाती है। स्वाद में तिक्त, कटु होती है। जल में नहीं घुलती, जलाने पर चमड़े के समान गंध आती है।
अशुद्ध कस्तूरी (Impure Kasturi):-
पानी में घुलने वाली पीला रंग यायप्त करती है व थोड़े समय बाद गंध रहित हो जाती है।
कस्तूरी परीक्षा :-
- जल में डालने पर यदि वैसे ही रहे तोह असली होती है।
- अग्नि पर दना डालने पर वह पिगल जाए तोह उषमे बुदबुदे निकले तोह असली होती है।
- गढ़ने पर भी गंध में परिवर्तन नहीं होता है।
- असली कस्तूरी मुलायम होती है।
- कागज पर रख कर कागज पीला हो जाता है व जलाने पर मूत्र गंध आती है।
गुण कर्म :-
रस – कटु
गुण – तीक्षण, गुरु
वीर्य – उष्ण
विपाक – कटु, तिक्त
दोष-कर्म– कफ-वात शामक।
प्रभाव – नाड़ी दौर्बल्यता , हृद्या, शीतप्रशमक, वाजीकर
उपयोग – हृद्यरोग, सनिपताज ज्वार, दौर्बल्यता, अपस्मार, मूर्च्छा, अपस्मार, शीघ्रपतन, पक्षाघात,उन्माद (वातिक),दुर्गंध, शीत, वामन, विष।
योग :-
कस्तूरी भैरव रस, मृग नाभी आदि वटी, हिंगु कपूर वटी।
मात्रा :-
½-1 रत्ती
वीर्य काल – दीर्घ काल
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