पारदं गन्धकं तानं हिंगुलं तालमेव च| लौहं व माक्षिकं च खर्परं च मनश्शिला॥
मृताभ्रकं गैरिकं च टङ्कणं दन्तिबीजकम्। सर्वाण्येतानि तुल्यानि चूर्णयित्वा विभावयेत्॥
जम्बीरतुलसीचित्रविजयातिंतिडीरसैः। एभिर्दिनत्रयं रौद्रे निर्जने खल्बगहवरे ।।
चणमात्रां वटीं कृत्वा छायाशुष्कां च कारयेत्। महाग्निजननी चैषा सर्वज्वरविनाशिनी।।
एकजं द्वन्द्वजं चैव चिरकालसमुद्भवम्। ऐकाहिक द्व्याहिकं च तथा त्रिदिवसज्वरम्।।
चातुर्थिकं तथात्युग्रं जलदोषसमुद्भवम्। सर्वान्ज्वरान्निहन्त्याशु भास्करस्तिमिरं यथा॥
नातः परं किञ्चिदस्ति ज्वरनाशनभेषजम्। महाज्वरांकुशो नाम रसोऽयं मुनिभाषितः॥
Ingredients :- पारद, गंधक, ताम्र, हिंगुल, हरताल, लौह, वंङ्ग, माक्षिक ( स्वर्ण ), खर्पर, मन: शिला, अभ्रक, गैरिक, टङ्कण, दंती बीज इन सबको समान मात्रा में लेकर चूर्ण करले
Bhawna Dravya :- जंबीर, तुलसी, चित्रक, विजया ( भांगा) तिंतिडीक
Vidhi :- प्रत्येक की भावना देकर खरल में तीन दिन तक निर्जन जगाह में मर्दन ( 24 घंटे रोज के 8 घंटे) करे उसके बाद में छाया में सुखा कर वटी बनाकर उपयोग में ले ले।
Yantra :- खलव
Dossage :- चणक के समान की वटी
Ussage :- सर्वज्वर नाशक, अग्निदीपक, ऐकाहिक, द्वयाहिक, चातुर्थिक, अत्युग्र, जलदोषज।
Praise :- जैसे सूर्य अंधकार को दूर कर देता है उसी प्रकार यह औषधि सर्व प्रकार के ज्वर का नाश कर देती है । ज्वर का नाश करने में इसे अच्छा और कोई भैषज नहीं हो सकता।
Refrence :- बसवराजीयम् ( प्रथम प्रकरणम् )