रसं विषं चाभ्रगन्धं तालकं हिंगुलं विषम् शुल्बभस्मसमं तुल्यं मर्दितं भृङ्गवारिणा।।
काचकुप्यां विनिक्षिप्य मृत्तिका लेपयेद्वहिः। वालुकायन्त्रके पाच्यं दिनैकं मन्द वन्हिना ॥
साङ्गशीतलमुद्धृत्य दातव्यं चणमात्रकम्। अनुपानविशेषेण चातुर्थिकज्वरं हरेत्॥
सन्निपातं निहन्त्याशु सर्वज्वरहरं परम्। महदग्निकुमारोऽय सर्वव्याधि विदारण ॥
Ingredients :- पारद, वत्सनाभ, अभ्रक, गंधक, हरताल, हिंगुल, ताम्र सभी द्रव्य एक समान मात्रा में।
Bhawana Dravya :- भृंग राज स्वरस
Vidhi :- मिश्रण को कांच कुपी में भरकर कूपी पक्व कल्पना बनाने की विधि के अनुसार बनाए, बालुका यंत्र में मंद अग्नि पर पाक करते है। शीत होने पर औषधि मिलती है।
Dossage :- 1 चणक गर्म पानी के साथ
Ussage :- सर्व ज्वर, सन्निपातज ज्वर, चतुर्थिक ज्वर
चतुर्थक ज्वर के लक्ष्ण :- वात व पित्त का जंघा पर प्रभाव, शिर पर वात पहले होता हैं, मज्जा आदि का दूषण होना, मल, मेद, मज्जा, अस्थि में स्थिति होना।
Refrence :- बसवराजीयम् ( प्रथम प्रकरणम् ), चिंतामणौ