Syllabus Meh 3 Jangham dravya diye hue hai, ushme se Mrigshring Ras Shastra meh bhi hai * In teeno ka ras panchak same hota hai (Katu- vipak , Ushan- virya, Dosh Karm- vaat kaff shamak, Ras- tikat, kashay)
मृगश्रृंग (Mrigshring):-
हिंदी नाम: संभर, बारह सिंगा
संस्कृत नाम: श्रृंग, बहुश्रृंग, विषान
English name: Horn of stag
गृह्य लक्षण : जो वजन में गुरु, स्थूल, अंदर से श्वेत, ठोस, सनिग्ध रहित हो।
भास्म विधि : छोटे-छोटे टुकड़े करके कोयले के तीव्र अग्नि के ऊपर रख दिया जाता है, इससे यह चूर चूर हो जाता है।इसके बाद में इसमें घृत कुमारी स्वरस के साथ;
मर्दन करके टिकिया बनाई जाती है। सुखाने के बाद में संपुट में बंद करके पुट देते है।
रस : मधुर, कषाय
गुण : स्निग्ध, गुरु
वीर्य : उष्ण
विपक : मधुर
दोषकर्म : वात-कफ शामक।
प्रभाव : दीपन, वेदनस्थापन, शोथहर, लेखन, श्वस कास में उपयोगी, पाशर्व शूल।
योग : विषाण भस्म, क्षय केशरी रस
मात्रा : 2-4 रती
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