History :-
मृत संजीवनी विद्या की शुरूवात भगवान शिव से हुई थी उन्होंने इस विद्या का उपयोग अपने पुत्र श्री गणेश पर किया था। जब वह लड़ाई में उनका शिर कट गया था तब उनके सिर पर गज राज का मस्तक लगाया था।
उन्होंने इस विद्या को दैत्य गुरु शुक्राचार्य को दिया था (शिव जी के पेट के अंदर जब वह रह रहे थे तब )। वैसे तोह दोनों दैत्य और दानव काश्यप के पुत्र थे। परन्तु एक समय ऐसा आया कि दानव, अपने देव भाइयों की तुलना में ज्यादा ताकतवर थे। वे दोनों सदैव ही आपस में युद्ध किया करते थे।युद्ध के दौरान देवता और असुर दोनों ही अपने प्राण गंवाते थे, लेकिन असुरों के गुरु शुक्राचार्य के पास एक ऐसी विद्या थी जिसकी सहायता से वे मृत असुरों को फिर से जीवित कर दिया करते थे।दानव मरते और फिर जीवित हो उठते, इससे उनकी ताकत बढ़ती और देवताओं की क्षीण होती जा रही थी। देवता शुक्राचार्य से किसी भी हाल में संजीवनी विद्या हासिल करना चाहते थे लेकिन यह कार्य इतना भी आसान नहीं था। शुक्राचार्य ने इस विद्या के उपयोग से राहु और केतु को भी जीवित किया था वह दोनों का शरीर आपस में आधा आधा करके जोड़ा था।
देवताओं के गुरु बृहस्पति ने एक युक्ति सोची, उन्होंने अपने पुत्र कच को शुक्राचार्य के पास भेजा। कच को असुरों के बीच भेजने का उद्देश्य था अपनी सेवा भावना, श्रद्धा और गुरु-भक्ति से शुक्राचार्य को प्रसन्न कर संजीवनी विद्या हासिल करना, ताकि देवताओं की सहायता की जा सके।शुक्राचार्य की रूपवान बेटी देवयानी, कच के यौवन पर मोहित हो उठीं और किसी भी कीमत पर उनसे विवाह करने के स्वप्न देखने लगींलेकिन असुर ये जान गए थे कि देवताओं की ओर से कच आचार्य के पास अध्ययन करने के लिए आए हुए हैं। वे भयभीत हो गए कि कहीं शुक्राचार्य, संजीवनी मंत्र कच को ना सौंप दें। क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो देवताओं पर विजय हासिल करना मुश्किल हो जाएगा।वे जब भी कच की हत्या करते, शुक्राचार्य उन्हें फिर से जीवित कर देते। एक दिन शुक्राचार्य से छिपाकर वे कच को मारने में सफल हो गए और उन्होंने कच के अवशेषों को पानी में मिलाकर शुक्राचार्य को पिला दिया। वे इस बात से आश्वस्त थे कि अब तो किसी भी तरह कच जीवित नहीं हो सकता।अब जब शुक्राचार्य को पता चला कि उनके शिष्यों यानि असुरों ने कच की हत्या कर दी है तो फिर से उसे जीवित करने का प्रयास करने लगे। इस प्रक्रिया के दौरान उन्हें पता चला कि कच उनके पेट में हैं।अब शुक्राचार्य, कच को संजीवनी विद्या सिखाने के लिए विवश हो गए थे। संजीवनी विद्या सीखने के बाद कच उनका पेट चीरकर बाहर निकल आए।कच, संजीवनी मंत्रों को भली-भांति सीख चुके थे और अब वह इस विद्या का प्रयोग कर भी सकते थे। उन्होंने इस विद्या की सहायता से सर्वप्रथम शुक्राचार्य को जीवित किया।शुक्राचार्य की पुत्री देवयानी जो हृदय से कच को अपना बनाना चाहती थी, कच के पास विवाह प्रस्ताव लेकर पहुंची। लेकिन कच ने इस प्रस्ताव को यह कहकर ठुकरा दिया कि वह शुक्राचार्य के शरीर से उत्पन्न हुए हैं, इसलिए देवयानी उनकी बहन जैसी हुईं।देवयानी ने कच को श्राप दिया कि वे कभी भी संजीवनी विद्या का प्रयोग नहीं कर पाएंगे।इस पर कच ने उन्हें उत्तर दिया कि भले ही वह इस विद्या का प्रयोग नहीं कर पाएंगे लेकिन इसे देवताओं को सिखा तो अवश्य देंगे।
वह रावण संहिता में भी नागार्जुन वाली विधि जो के तोह बताई गई है और उसमे भी कहा गया है कि यह विधि रावण को भगवान शिव ने दी थी।
उसके बाद में यह विद्या मनुषयों के पास आयी ( सिद्ध पुरुष ) नागार्जुन के पास उन्होंने इसे अपने तंत्र में गुटिका सिद्ध के अन्तर्गत बताया है । और इस विद्या को बताया है कि यह ज्ञान शिव जी ने उन्हें दिया है।
आयुर्वेद में मृत संजीवनी विद्या :-
चरक संहिता के चिकित्सा स्थान के 23 वे विष चिकित्सा अध्याय में 24 अपकर्म का वर्णन किया है उसमे अंतिम ( 24 वा ) उपकर्म को मृत संजीवनी बताई है परंतु उसमे मृत संजीवनी विद्या का पूर्ण वर्ण ना होकर अध्याय के अंतिम में संजीवनी अगद का वर्णन किया गया है जिससे अगद और विद्या में अंतर स्पष्ट करना मुश्किल है।
आज हम इस पोस्ट में मृत संजीवनी विद्या जो की सिद्ध नागार्जुन तंत्र के अन्तर्गत बताया गया है उसका वर्णन यहां करेंगे।
Ingredients :-
- अंकोल वृक्ष
- शिवलिंग
- मटका ( घड़ा )
- धागा ( मोली )
- 4 साधक
- फूल
- बड़े मुख का पात्र
- तांबे का पात्र
- कुम्हार की मिट्टी ( clay )
- सुहागा चूर्ण
- अघोर मंत्र
अघोर मंत्र :-
ॐ अघोरेभ्योऽय घोरेभ्यो घोर घोरतरेभ्यः । नमोऽस्तु सर्वसर्वेभ्यो नमोऽस्तु रुद्ररूपेभ्यः ।।
विधि :-
अंकोल वृक्ष की जड़ के पास में एक शिवलिंग स्थापित करे और उसके साथ साथ में शिवलिंग के साथ में मटका ( घङा ) स्थापित करे और उसे शिवलिंग के साथ में शिवलिंग और मटके को आपस में धागे से बांद दे। इसके बाद में 4 साधक बारी बारी से शिवलिंग और मटके की पूजा करे 1-1 प्रहर ( 3 घंटे ) दिन व रात ( 24 hours 4×3 = 24) हर व्यक्ति दिन में 1 प्रहर व रात में एक प्रहर अघोर मंत्र से पूजा करे। यह पूजा तब तक करनी है जब तक कि वृक्ष पर फूल व फल नहीं लग जाते।
पके हुए फल को उस मटके में भर दे। उसके बाद में मटके की पूजा करे व फूल आदि से अर्चना करे उसके बाद में फलो के बीजों को निकाल लें और बीजों को थोड़ा सा काट दे और उसमे सुहागे का चूर्ण भर दे। इसके पश्चात किसी बड़े मुख वाले पात्र में कुमार के यहां से लाई हुई मिट्टी लगाए और उसमे बीजों को इसे लगाए उसके बाद में बीजों को इसे लगाए की वो ऊपर की तरफ हो ओर बीज उस clay में चिपक जाए ओर उसके बाद में उसे उल्टा करके धूप में रखे और उल्टा करने से पहले तांबे का पात्र उसके नीचे रखदे, और तैल इख्टा करले।
यह तैल ही मृत संजीवनी विद्या है।
उपयोग :-
Ingredients to be Added | मात्रा | उपयोग | केसे |
तिल तैल | आधा माशा | सर्प के कटने पर, चोट लगने पर | मालिश |
Sperm + पारद | सम भाग | कालसर्प से काटा हुआ | मालिश |
गुडुची की जड़ | 2 तोला ( 24 gm) | अप मृत्यु से बचाता है | गर्म पानी के साथ सेवन |
2 replies on “Mrit Sanjeevni Vidya ( मृत संजीवनी विद्या ) – In Ayurveda”
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