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Ras Shastra Syllabus

Murdashankh (मुर्दाशंख) – Litharge: साधारण रस

नाम:-

संस्कृतमृद्दारश्रृंगम्
हिन्दीमुर्दाशंख
EnglishLitharge
chemical namelead oxide
chemical formulaPbO

पर्याय:-

मृद्दारश्रृंगक, बोदारश्रृंग, मुर्दाशंख, मुद्राशंखक।

इतिहासः-

आठवीं शताब्दी के बाद के रसग्रन्थों में उसका उल्लेख मिलता है।

प्राप्ति स्थान-

राजस्थान में आबू पर्वतमाला, गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखण्ड (बिहार) एवं विदेशों में वर्मा आदि देशों में मिलता है।

परिचय:-

  • combination of lead and oxygen.
  • यह पीताभ रक्तवर्ण का होता है।
  • जो खनिज और कृत्रिम दोनों अवस्थाओं में मिलता है।

मुर्दाशंख भेद:-

आयुर्वेद प्रकाश में मुर्दाशंख के दो भेद माने है:

(1) पीतवर्ण : सदल : खनिज

(2) पाण्डुवर्ण वर्ण : निर्दल : कृत्रिम

मुर्दाशंख शोधन-

  • मुर्दाशंख को पीसकर बारीक कपडछान चूर्ण बनायें।
  • फिर इस को 15 दिन तक स्वच्छ जल से प्रक्षालित करके धूप में सुखायें।
  • इस प्रकार शुद्ध हुए मुर्दाशंख के चूर्ण को क्षत आदि में अवचूर्णन के लिए उपयोग कर सकते है।

मुर्दाशंख गुण:-

  • यह शीत, गुरु, वातकफदोषनाशक,
  • फिरंगजव्रण,
  • केश्य,
  • व्रणरोपक,
  • भग्नसंधानजनन,
  • पामा,
  • कण्डू आदि त्वग्दोषहर एवं संकोचकर होता है।
  • इसको रसबन्धन में उत्कृष्ट एवं नाग का सत्त्व भी कहा गया है।
  • इसका केवल बाह्य प्रयोग ही किया जाता है।

साधारण रसों का सामान्य शोधन:-

साधारण रस के किसी भी द्रव्य को मातुलुङ्ग एवं आर्द्रक स्वरस की 3-3 भावना तीन दिनों तक देने से शुद्ध हो जाते है।

● सभी तत्वों का शोधन भी इसी तरह किया जाता है।

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