पारद के 25 बंध (Parad bandh) का वर्णन आयुर्वेद संहिताओं में मिलता है और उसके अलावा एक विशेष जलुका बंध जो की केवल स्त्री के उपयोग के लिए होता है। आज हम इसे याद करने के लिए ट्रिक बताएंगे जो कि इस प्रकार है :-
Trick to Learn :-
कल महान काजल दत्त और श्रृंखला कुमार मूर्ति के सामने क्षारीय अखरोट खाकर अपनी क्रिया से अपने बीज से संस्कारी जीव उत्पन्न किया था। पता नहीं कब उनका हठी (जिद्दी) बालक पीयूष तरूणावस्था में लौट – पोट होकर खेलकर कब वृद्ध होकर जल व अग्नि में समा गया इसका आभास किसी को नहीं हुआ।
- कल – कल्क
- महान – महा
- काजल – कज्जली
- दत्त – द्रुती
- श्रृंखला – श्रृंखला
- कुमार – कुमार
- मूर्ति – मूर्ति
- क्षारीय – क्षार
- अखरोट – आरोट
- क्रिया – क्रियाहीन
- बीज – सबीज व निर्बीज
- संस्कारी – सुसंकृत
- जीव – सजीव व निर्जीव
- हठी – हठ
- पीयूष – पिष्ठिका
- तरूणावस्था – तरुण
- लौट – खोट
- पोट – पोटली
- वृद्ध – वृद्ध
- अग्नि – अग्नि
- जल – जल
- आभास – आभास
Details :-
बंध | विधि | फल |
हठ | जो पारद की सम्यक् प्रकार से शुद्धि न हो | मृत्यु जनक व भयानक रोग उत्पन्न करता है |
आरोठ | सम्यक् विशुद्ध पारद | क्षेत्री कर्ण ने श्रेष्ठ व धीरे धीरे रोगों का क्षमन करता है |
आभास | धातुओं व वनस्पतियों के योग से पुट देने के करना पारद अपनी चंचलता, दुर्ग्रहता, स्वाभाविकता छोड़ कर बंध हाे जाए | स्वाभाविक गुण में परिवर्तन |
क्रियाहीन | शुद्ध पराद का अशुद्ध धातु से सिद्धि करने पर | सेवन काल में अपथ्य सेवन से हानि होती है |
पिष्टिका | सूर्य की किरणों के सहचर्या से खल्व में अच्छी प्रकार से मर्दन करके मखन के समान पिष्टी बनाने पर | सेवन से दीपन व पाचन होता है |
क्षार | शंख, शुक्ति, वराटिका, प्रवाल, मुक्ता आदि क्षारीय द्रव्यों की भस्मों के साथ पारद का मर्दन करने पर | पारद की अग्नि में वृद्धि, उदर शूल व शरीर को पुष्ट करता है |
खोट | जिस बन्धन से पारद गोलाकार बन जाता है तथा पुनः पुनः तीव्र अग्नि द्वारा धमन करने पर धीरे-धीरे नष्ट होता है | अल्प समय में ही रोगों का शमन करता है |
पर्पटी | पारद और शुद्ध गन्धक की बनी हुई कज्जली को अग्नि द्वारा द्रवित करके शीघ्र कदली पत्रों के मध्य फैलाकर गोबर की पोट्टली से दबाकर चपटी पपड़ी सदृश बना लेने | बालको के रोग का शमन |
कल्क | स्वेदन, मर्दन आदि क्रियाओं से पारद को कीचड़ के समान बना लेने को | जिस योग में डालता है उसके अनुसार कार्य |
कज्जली | शुद्ध पारद और शुद्ध गंधक को खल्व में मर्दन करके काजल के समान कृष्ण वर्ण के समान बनाने को | यह जिन जिन योगों में डालते है वह सब कज्जली बंध ही होता है |
सजीव | भस्म किया हुआ पारद जब अग्नि संयोग से उड़ जाता है वह | वृद्धावस्था, रोग आदि को दूर करता है |
निर्जीव | पारद का गंधक व अभ्रक से जारण करने के बाद वनस्पतियों से भस्म बनाने को | सम्पूर्ण रोग नाशक |
निर्बीज | शुद्ध पारद में उसके ¼ मात्रा में सुवर्ण, समान भाग गन्धक डालकर मर्दन कर पिष्टी बनाएं। इसके पश्चात् समान भाग गन्धक के साथ इस पिष्टी को सम्पुट में रख क्रमाग्नि से उसकी भस्म बनावें। | सम्पूर्ण रोग नाशक |
सबीज | पारद में अभ्रक सत्व, स्वर्ण, रजत, ताम्र एवं कान्त लौह को जारण करके उसकी पिष्टी बनाकर षड्गुण गन्धक के योग से भस्म बनाने को | विपुल प्रभाव |
श्रृंखला | हीरा, वैक्रान्त आदि रत्नों के संयोग से किया हुआ भस्म व पारद और धातु, गन्धक, वनस्पतियों के संयोग से भस्म किया हआ पारद दोनों प्रकार के भस्मीकरण पारद को समान मात्रा में लेकर मर्दन किए हुआ मिश्रण | पारद के सामन दृढ़ करता है, शीघ्र प्रभावकारी |
द्रुती | पारद के बाह्यद्रुती संस्कार के पश्चात् पारद का किसी शास्त्रीय विधि से बन्धन या मारण करना | ¼ रत्ती की मात्रा में दुख साध्य रोगों का शमन करता है |
बालक | सम भाग अभ्रक को पारद में जीर्ण करके जो पारद भस्म बनाया | रोग, उपद्रव, अरिष्ट का नाशक |
कुमार | द्विगुण अभ्रक जारण करने के बाद पारद की जो भस्म बनायी जावे | कुष्ठ आदि पाप रोग, रसायन, चावल की मात्रा में |
तरुण | पारद में चतुर्गुण अभ्रक जीर्ण करने के पश्चात् पारद को जो भस्म बनाया जाए | श्रेष्ठ रसायन, 7 रात्रि में सम्पूर्ण रोग नाशक, बल वीर्य देता है |
वृद्ध | पारद में षड्गुण अभ्रक जारण के पश्चात् पारद की भस्म बनाना | देह सिद्धि व लौह सिद्धि में उपयोगी, अत्यन्त प्रभाव शाली |
मूर्ति | अभ्रक जारण के बिना ही सोमवल्ली, ब्राह्मी आदि दिव्य वनस्पतियों के सहयोग से तीव्राम्नि को सहन करने वाली पारद भस्म की प्रक्रिया | सभी रोग व योग के प्रभाव शाली प्रभाव होता है |
जल | शिलातोयादि कुछ विशेष जलों से पारद का बन्धन | वृद्धावस्था, रोग, मृत्युनाशक, योगों में डालने पर शस्त्रोत गुण मिलते है |
अग्नि | पारद को पृथक् अथवा किसी अन्य योग के साथ संयुक्त करके अग्नि में धमन करने से उसकी गुटिका जैसी आकृति बन जाये तो पर क्षय नहीं होता | खेचरी शक्ति देने वाला है |
सुसंस्कृत | सोमलता, जलकुंभी, थोरात इन्द्रवारुणी, लक्ष्मणाकन्द, व्याघ्र पदी, पियासा, वृश्चिकाली, हस्तिशुण्डी, हंसा मुद्गपणी और राजिका इन औषधियों को पारद के षोडशी मात्रा में लेकर गोमूत्र के साथ पीसकर केक बनावें, इस काक का पारद के साथ मर्द्न कर गोला बना चालुका यन्त्र में पाक करें। इस पारद भस्म को अन्य धातुओं की भस्म के साथ बालुका यंत्र में मर्दन करते है | |
महा | सोने या चांदी के साथ धमन करने पर पारद इकिभूट हो जाए, जिसका क्षय न हो, देखने में ठोस हो, भारी एवं गुटिकर हो, अधिक समय तक चमकदार न हो आघात करने पर चुरा हो जाये, धमन करने पर द्रवित हो जाए। |
इसके आलावा जलूका बंध विशेष प्रकार से स्त्रियों में उपयोग होता है।