पारदम्लेच्छ स्मार्च गन्धकं च मनश्शिला। पाषाणद्वितयं चाथ भूङ्गीनीरेण मर्दयेत्॥
द्विदिनं वालुकायन्त्रे चण्डाग्नौ च द्वियामकम्। द्विगुञ्जं भक्षयेक्रित्यमार्द्रकं चानुपानकम् ॥
पाशुपतास्त्रनामायं सार्वाहिकंज्वरं हरेत्।
Ingredients :- पारद, ताम्र, गंधक, मन: शिला, पाषण द्वितीय ( सभी सम भाग )
Bhawna Dravya :- भृंगराज स्वरस
Yatra :- बालुका यंत्र
Dose :- 250 mg ( 2 रती ) आद्रक स्वरस के साथ में नित्य सेवन किया जाता है
Usage :- सब प्रकार के आहिक ज्वर, शीत ज्वर।
शीत ज्वर के लक्षण :- शीत देह, कम्पन, मूर्च्छा, भ्रम, रोम हर्ष, तंद्रा ( सबसे पहले शीत/ ठंड लगती है उसके बाद में बुखार / ज्वर आता है।
आहिक ज्वर के लक्षण :- शीत देह, शिर शूल, हृदय शूल, पार्श्व शूल, देह संताप , अप्थय खाने की इच्छा, तंद्रा, पडूर देह, अतिसार, पीले नेत्र, शरीर स्तंभता, रक्त के बिना कंधे ( शरीर में ज्वर के साथ स्पूर्ण शरीर में पीड़ा होती है विशेष करके हृदय, पार्श्व, शिर में अधिक पीड़ा होती है उसके साथ में शरीर, नेत्र पीले हो जाते है और ज्वर के साथ अतिसार होता है )
Reference :- बसवराजीयम् ( प्रथम प्रस्नकरण ) , आयुर्वेदे