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Kumar Bhritya

Pranpratyagman (प्राणप्रत्यागमन) – Resuscitation Process

विभिन्न आचार्यों ने अपने-अपने मत अनुसार अपरा (placenta) गिराने के बाद किए जाने वाले उपयुक्त कार्यों का वर्णन किया है।

आचार्य चरक का मत = प्रसूता स्त्री की अपरा गिराने लिए कार्य होने के बाद कुमार लिए निम्नाङ्कित कार्य करने चाहिए।

  • दो पत्थरों के टुकड़े को लेकर बालक के कान के मूल अर्थात् कान के पास बजाना चाहिए और गरम या शीतल जल बालक के मुख पर सिंचन करना चाहिए।
  • इन क्रियाओं से प्रसव उत्पन्न हुए कष्टों से पीडित प्राण पुन: बलिष्ठ हो जाते हैं।
  • बालक के भूमिष्ठ होने पर उसमें चेष्टा का अभाव हो तो, सींक से निर्मित पंखे से तब तक वायु करें जब तक कि श्वास-प्रश्वास एवं अन्य चेष्टाएँ सामान्य ना हो जायें।

आचार्य सुश्रुत = जन्मोपरान्त केवल जरायु हटाने का उल्लेख किया है।

अष्टांग हृदय अनुसार = बालक के उल्वा को सेंधव एवम् घृत से साफ़ करना प्रथम कहा है। फिर बालक के शरीर पर तेल लगा दे।

अष्टाङ्गसंग्रहकार =

  • प्राय: चरक के ही तथ्यों की पुन: निरुक्ती की है।
  • तदुपरान्त प्रबल मोह एवं ज्वर के कारण सम्पूर्ण शरीर के पीड़ित होने पर पीड़ा के अनुसार, रोने में असमर्थ होने पर, सम्पूर्ण शरीर के धातुओं के अस्थिर होने से, यौवन आदि अवस्थाओं का अनुभव होने से, शय्या के स्पर्श को आरीवत अनुभव करते हुए, सम्पूर्ण अंगों को इधर-उधर फेंकते हुए, मानो फिर से मृत्यु के दुःख अनुभव कर रहा हो।
  • प्रसवकाल में योनिभित्तियों के खिंचाव से बेहोश हो जाने कारण फिर चेतना-संज्ञा सञ्चार के लिए बला तैल के परिषेक, कर्णमूल पर पत्थरों का बजाना बताया है ।

यहाँ दर्शनीय है कि अष्टांग संग्रह ने अत्यन्त संकुचित पथ से गर्भस्थ शिशु के निकलने से हुए कष्ट कारण विक्षिप्त शिशु लक्षण कहे हैं :-

  • अति प्रबल मोह
  • क्लेशानुरूप रोदन में असमर्थ
  • शरीर की धातुएँ अव्यवस्थित
  • हाथ, वस्त्र एवम शय्या के स्पर्श को भी आरीवत अनुभव होना (सुकुमारता)
  • पुनः मृत्यु के कष्ट का अनुभव करना

इस काल में प्राणप्रत्यागमन विधि की अत्यन्त आवश्यकता होती है। जिसके लिए शास्त्रों निम्नलिखित उपाय बताये गये हैं।

कान में मंत्र पढ़ना आदि।

  • जैसे ही शिशु माता के गर्भ से बाहर आता है त्यों ही उसमें कई परिवर्तन होते हैं, जिसमें सर्वप्रथम शिशु का स्वत: श्वसन क्रिया का प्रारम्भ करना है ।
  • गर्भस्थ शिशु जब तक गर्भ में रहता है तब तक अपरा के द्वारा रक्त-परिभ्रमण से श्वसन कार्य पूरा होता रहता है, किन्तु जैसे ही शिशु बाहर आता है तो यह कार्य उसे स्वयं करना पड़ता है अतः चिकित्सक का सर्वप्रथम ध्यान इसी तरफ आकृष्ट होता है ।
  • श्वसन क्रिया के उपक्रम में सर्वप्रथम फुफ्फुस का विस्फार होगा- इसके लिए रोना आवश्यक है। रोने के लिए एवं श्वसन क्रिया प्रारम्भ करने के लिए बाहरी उत्ततेजना ही प्रमुख साधन हैं, यथा- कान के पास आवाज करना, शीतोष्ण जल-परिषेक आदि ।

आज भी इसके लिए यही किया जाता है, बच्चे को थपथपाते हैं। आचार्यों ने कहा है कि यदि बालक निश्चेष्ट एवं मूर्छित रहे तो उसकी अच्छी तरह से परीक्षा करें और प्राणप्रत्यागमनार्थ समुचित उपाय करें ।

आधुनिक काल में भी शिशु के पैदा होते ही शिशु के जीवन की परिस्थितियों का अवलोकन किया जाता है। जैसे ही शिशु जन्म लेता है नाभिनाल को पकड़कर बाँधकर काट देते हैं। बच्चे को अलग लाकर समतल स्थान पर शिर का भाग कुछ नीचे करके रखते है। मुख, गला एवं नाक को तुरन्त साफ करते है श्लेष्माचूषण यन्त्र का भी प्रयोग करते हैं। प्राय: सभी बच्चे इस क्रिया के दौरान रोने लगते हैं। शरीर की शाखाएं हिलने लगती हैं। आवश्यकतानुसार निम्न चित्र में प्रदर्शित विधि के अनुसार बच्चे को थपथपाने पर बच्चे सामान्य हो जाते हैं।

जिसके लिए तालु पर पिचु धारण करना एवं कृत्रिम श्वसन (कृष्णकपालिका सूप का प्रयोग) उपाय बताया है। जिसका कृष्ण वर्ण शिशु के नेत्र के लिए हितकर है। अधिक चमकीला वर्ण हानिकर होता है। उपरोक्त समस्त कर्म शिशु में पुन: चेतना लाने हेतु किये जाते हैं। हृदय मन, आत्मा तथा चेतना का स्थान है।

श्वसन नहीं करते है या अनियमित धीमा श्वसन करते हैं, उनका परीक्षण अपगार स्कोर विधि से 1 मिनट के बाद करते हैं ।

जिन बच्चों में श्वासावरोध रहा हो (Neonatal Asphyxia) उनमें 5 एवं 10 मिनट पर अपगार स्कोर पुन: करना चाहिए।

प्रथम बार 1 मिनट पर किये गये स्कोर का परिणाम एवं तदनुरूप व्यवस्था निम्नवत् की जानी चाहिए।

स्कोर परिणाम

8-10 सामान्य शिशु

5-7 हल्का श्वासावरोध (+)

3-4 मध्यम श्वासावरोध (++)

0-2 तीव्र श्वासावरोध (+++)

प्राण-प्रत्यागमन विधि

  1. जन्म के तुरन्त बाद शीघ्रता से उसे सुखाकर (पोंछकर) गर्म स्थान पर ले जाएं।
  2. शिशु को पीठ के बल लिटायें। शिर हल्का-सा नीचे हो तथा चिकित्सक की तरफ हो।
  3. श्लेष्मा-चूषण द्वारा अथवा चूषण यन्त्र (Suction machine) द्वारा आसानी से प्रथम मुख की फिर नाक की सफाई करें । चूषण यन्त्र में दाबमापक (Manometer) अवश्य लगा हो । तथा 10-12 सेकेण्ड से अधिक यन्त्र का प्रयोग न हो । श्लेष्मा निकालने के बीच ऑक्सीजन अवश्य दें।

Tracheal tube

A Tracheal tube is a catheter that is inserted into trachea for primary purpose of establishing and maintaining a patient airway to ensure the adequate exchange of oxygen and carbon dioxide.

(4) अपगार स्कोर का अध्ययन 1 मिनट पर करें ।

  • यदि स्कोर 5 से 7 के मध्य है तो मुख मास्क के द्वारा शिशु को आक्सीजन दें।
  • यदि स्कोर 3-4 के मध्य है तो;

(क) Laryngoscope का प्रयोग करते हुए गले की सफाई करें।

Laryngoscope

It is an endoscopy of larynx, a part of thorax. It is a medical procedure used in obtaining a view for eg. of vocal folds and glottis.

(ख) बैग एवं मास्क की सहायता से अथवा मशीन से बच्चे को आक्सीजन दें।

Ambu bag

A bag valve mask,sometimes known by the name ambu bag or generically as a Manual resuscitator or Self inflanting bag. It is a hand held device commonly used to provide positive pressure ventilation to patients who are not breathing.

यहाँ प्रथम 3 बार श्वसन हेतु दाब 25 से 30 से.मी. ऑफ वाटर होना चाहिए। बाद में घटाकर 15 से 20 से.मी. आफ वाटर कर देना चाहिए।

श्वसन गति 20 से 40 बार / मिनट देनी चाहिए। यन्त्राभाव में कृत्रिम श्वसन विधि अपनानी चाहिए।

यदि इनसे भी श्वसन नियमित न हो तथा शिशु की माता को Pethidine दी गयी हो तो शिशु को Naloxone 0.1 मि.ग्रा./ कि. गा.शरीर भार की मात्रा में शिर गात सूचीवेध द्वारा दें

तथा हृदय गति का भी अवलोकन करें । गति सही हो तो Naloxone 0.01 मि.ग्रा./ कि. गा. शिरागत सूचीवेध से दें। आवश्यकतानुसार इसे 5 मिनट के अन्तराल पर 2-3 बार दिया जा सकता है।

यदि स्कोर 0 से 2 के मध्य हो/अथवा उपर्युक्त अवस्था में सुधार न हो रहा हो तथा स्थिति खराब हो रही हो तो बैग एवं मास्क के स्थान पर Intubation करना चाहिए। इसमें tube का आकार बच्चे के वजन पर निर्भर है।

Intubation

Intubation is the process of inserting a tube called endotracheal ,through mouth and then into the airway .this is done so that patient can be placed on a ventilation to assist with breathing during anesthesia, sedation.

Procedure of Laryngoscope इस विधि में समतल स्थल पर पड़े शिशु के कन्धे को कुछ उठाते हैं जिससे ग्रीवा लटक कर कुछ तन जाती है। बायें हाथ से Laryngoscope को पकड़ कर मुख में डालते है जब तक उसकी प्लेट गलशुण्डि (Epiglottis) तक न पहुंच जाये, बायें हाथ की छोटी अंगुली से Cricoid उपास्थि को दबाते हैं, अब इस भाग को साफ करके मुख द्वारा Endotrachel tube को श्वसन नलिका में डालते हैं ।

इसके द्वारा पतली रबर नलिका डालकर श्वसन नलिका की सफाई कर लेते हैं। अब उपरोक्त विधि से ओषजन देते हैं। प्रारम्भ में ओषजन का दबाव 40-50 से.मी. आव जल होता है जिससे फुप्फुस कोश (Alveoli) फैल जायें। तदुपरान्त दाब घटाकर 12 से 15 से.मी. आव वाटर कर देते है।

हृदय अभ्यंग (Massage) यदि स्कोर 0 से 2 हो तथा हृदयगति 60 प्रति मिनट से कम हो अथवा न हो तब तुरन्त हृदय अभ्यंग करें। इस क्रिया में अंगूठा जो वक्ष के मध्य में सामने की ओर चूचुक से नीचे हो, रखकर प्रति मिनट 2 बार दबाव देना चाइए।

औषधि-व्यवस्था

श्वसन व्यवस्था बनाने के बाद ही औषधि व्यवस्था पर जाना चाहिए; यथा

) यदि हृदय गति 60/मि. से कम हो त Adrenaline 1:10000 की सुई शिरागत (नाभिनाल से) अथवा श्वसन ट्यूब से देवें । हृदय में सीधे देने पर न्यूमोथोरेक्स ,एरिदिमिया आदि उपद्रव की सम्भावना रहती है।

() सोडाबाइकाबोनेट (NaHCO) 7.5% का घोल 1 से 3 सी.सी./कि.ग्रा. शरीर भार से 1:1 का जल 10% ग्लूकोज घोल से बनाकर नाभिनाल शिरा से दे। (यदि स्कोर 5 मिनट का 5 से कम हो तथा हृदयगति सामान्य न हो रही हो)

() प्लाज्मा वर्धक-यदि शिशु शॉक की अवस्था में हो या नाड़ी गति धीमी हो तो रक्त प्लाज्मा O-ve रक्त, Haemacel या Ringer Lactate 10 सी.सी./कि.ग्रा. शिरागत की मात्रा में देखें ।

() यदि प्रसव के पूर्व 6 घण्टे में माता को Pethidine दी गयी हो तथा शिशु नीला, अनियमित श्वसन परन्तु हृदय गति सामान्य हो तो Naloxone 0.01 मि.ली./कि.ग्रा. शिरागत सूचीवेध से लें । आवश्यकतानुसार इसे 5 मिनट के अन्तराल पर 2-3 बाद दिया जा सकता है।

यदि 5 मिनट के बाद स्कोर 7 या इससे अधिक हो जाता है तो शिशु को मां के पास रखते हैं। यदि स्कोर कम रहता है तो बच्चे को विशिष्ट परिचर्या कक्ष में रखकर व्यवस्था करते हैं।

नवजात शिशु के धासावरोध (Asphyxia) का कारण

इसे निम्न 4 वर्गों में विभाजित करते है

(1) प्रसव विषयक कारण-

  • नाभिनाल का प्रसव पूर्व या प्रसव मध्य योनि से बाहर निकल आना तथा/ अथवा शरीर में लिपटा (विशेष रूप से गले में) होना। अपरा के कार्यक्षमत्त में कमी।
  • गर्भाशय का असामान्य (Abnormal) संकोच ।
  • कंधों के प्रसव में कठिनाइयाँ, गर्भ का असामान्य प्रसव
  • गर्भिणी को रक्त खाव (Antepartum hemorrhage)

(2) मातृज कारण

  • माता की वय 35 वर्ष से अधिक हो ।
  • अति मातृत्व (Grand multipara)
  • प्रसव काल का लम्बा होना।
  • जरायु (membrane) का लम्बे समय से फटा होना ।
  • माता की व्याधियाँ-मधुमेह, गर्भविषमयता, रक्तविषमयता (Rhesus iso immunization)

(3) गर्भज कारण

  • गर्भाशय में ही मलत्याग
  • हृदय गति का बढ़ना (160/मिनट से अधिक) या कम (100/मिनट में कम)हो जाना ।यमल सन्तान में विशेष रूप से दूसरे को।

(4) ओषधि

  • प्रसव काल में माता को दी जाने वाली औषधि।

प्राणप्रत्यागमन कार्य : क्या न करें !

  1. आसन्न प्रसव को अति मात्रा में अवसादी औषधि न दें।
  2. बच्चे का सिर लम्बे समय तक नीचे न करें।
  3. बार-बार लगातार चूषण (Suction) न करे।
  4. शिशु का शरीर तापक्रम कम न हो।
  5. आवश्यकता पड़ने पर Intubation में देर न करें।
  6. बैग एवं मास्क श्वसन में पूरी हथेली का प्रयोग न करें।
  7. जब तक श्वसन स्थिर न हो NaHC03 का प्रयोग न करें
  8. अवसन-उत्तेजक औषधियों का प्रयोग न करें ।

By Bhawna Tourani

Belonging to Ajmer, Rajasthan. Currently persuading B.A.M.S. 3rd Prof. From Gaur Brahman Ayurvedic College. My Strong point is in Ayurvedic Portion so will help you in that. While Studying Ayurveda for last 2 years i developed hobby about learning about Ayurvedic medicines, also good at reading.

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