गुग्गुलु–रास्नामृतैरण्डसुराविधं तुल्येन गाढं च पुरेण मद्यं | खादेत्समीरी सशिरोगदी च नाडीव्रणी चापि भगन्दरी च ।। ( योगरत्नाकर वात व्याधि )
सामग्री-
- रास्ना (Pluchea lanceolata)
- गिलोय (Tinospora cordifolia)
- एरण्डमूल (Ricinus communis)
- देवदारु (Deodar cedar)
- सोंठ (Zingiber officinale)
- शुद्ध गुग्गुलु (Commiphora wightii)
विधि-
- रास्ना, गिलोय, एरण्डमूल, देवदारु, सोंठ- प्रत्येक 1-1 भाग लेकर कपड़छन चूर्ण करें।
- अब शुद्ध गुग्गुलु 5 भाग लेकर, सब द्रव्यों को मिश्रित कर दें।
- आवश्यकतानुसार घी डालकर कूट लें।
- 4-4 रत्ती की गोलियां बना लें।
◾मात्रा व अनुपान- 1-1 गोली प्रातः सायं दशमूल क्वाथ अथवा रास्नादि क्वाथ अथवा गर्म जल के साथ लेें।
गुण व उपयोग-
- इस गुग्गुलु के सेवन से गृध्रसी, आमवात, गठिया, संधिवात आदि अनेक वात विकार नष्ट हो जाते हैं।
- इसके सेवन से कर्णरोग, शिरोरोग, नाड़ी व्रण और भगन्दर आदि में लाभ होता है।