रसग्रन्थों में गुणों के आधार पर रत्न (Ratn) के दो वर्ग:-
- रत्न (Precious stones)
- उपरत्न (Semi Precious Stones)
Name :-
संस्कृत | रत्नम् |
हिन्दी | रत्न |
English | Precious stone |
पर्याय :-
- रत्न
- मणि
- वरपाषाण
Definition :-
- जो द्रव्य अपने ही वर्ग के दूसरे द्रव्यों की तुलना में अधिक सुन्दर और अधिक गुण युक्त होते हैं, इनको रत्न (Ratn) कहते हैं।
- मूल्यवान होने के हेतु मनुष्य को अतिप्रिय होते हैं।
रत्न की श्रेष्ठता :-
- देह धारण
- जरावस्था (बुढ़ापा) और रोग का निवारण करते
- पारद का बन्धन
8 मणियाँ :-
- वैक्रान्त
- सूर्यकान्त
- हीरक
- मोती
- मणि
- चन्द्रकान्त
- लाजवर्त
- पन्ना
रत्नों की संख्या :-
There are 9 gems (Ratn) or precious stones in Ayurveda=
“माणिक्यमुक्ताफलविद्रुमाणि तार्क्ष्यञ्चपुष्पं भिदुरञ्चनीलम्। गोमेदकञ्चाथ विदूरकञ्च क्रमेण रत्नानि नवग्रहाणाम्।। ” (रसे. चू. 12/1, र. र. स.4/6)
- माणिक्य
- मुक्ता
- प्रवाल
- तार्क्ष्य
- पुष्पराग
- वज्र
- इन्द्रनील
- गोमेद
- वैदूर्य
रत्न एवं ग्रह का सम्बन्ध :-
रत्न | हिन्दी नाम | ग्रह |
१.माणिक्य : ruby | माणिक्य | सूर्य |
२.मुक्ता : pearl | मोती | चन्द्र |
३.प्रवाल : coral | मूंगा | मंगल |
४. तार्क्ष्य : emerald | पन्ना | बुध |
५. पुष्पराग : topaz | पोखराज | गुरु |
६. वज्र : diamond | हीरा | शुक्र |
७. इन्द्रनील : sapphire | नीलम | शनि |
८. गोमेद : zircon | गोमेद | राहु |
९. वैदूर्य : cat’s eye | लहसुनिया | केतु |
रत्न की जातियाँ :-
3 जातियाँ:-
- खनिज :- (Obtained from earth ) or natural माणिक्य, तार्क्ष्य, पुष्पराग, वज्रा, नीलम, गोमेद, वैदूर्य।
- प्राणिज :- (Obtained from sea animal or molluscs) मुक्ता, प्रवाल।
- वानस्पतिक :- (Obtained from plants) तृणकान्त, संगेमूषा
रत्न के गुण :-
- दुर्लभता:- (i .e. जो आसानी से न मिले) यदि कोई पदार्थ असनिबसे मिल जाता है, तो वः अपना अकर्षक खो देता है। जैसे- रक्तमणि अति सुुुुंदर है, आकर्षक है, कीन्तु सुलभ एवं सस्ता होंने से सभी को प्राप्त है। हीरा सर्वत्र उपलब्ध नही और सर्वसुलभ नहीं होने से रत्नों में प्रमुख है।
- सुन्दरता
- टिकाउपन:- किसी भी प्रकार का प्रहार, रगड़ या धूप, जल, अम्ल के सम्पर्क में आने पर भी जिस पर कोई प्रभाव ना पड़े।
- कठोरता:- रत्न (Ratn) कठोर होता है यदि मृदुु होता तो वह ज्यादा दिनों तक टिकाउ नहींं हो सकता।
- आकर्षक रंग:- रत्नों की पहचान का एक मापदण्ड उसका रंग ही है। रत्नों की पारदर्शकता एवं आकर्षक मध्यम रंग होना चाहिए।
- मूल्यवान:- रत्न मूल्यवान भी होना चाइए।
रत्नों के दोष :-
रत्नों में क्षेत्रीय एवं जलीय दोष नहीं होते।
- ग्रास:- रत्न जब काला और अपार दर्शक (opaque) हो।
- त्रास दोष:- जब रत्न के कुुुछ भाग में प्राकृत वर्ण कुुुछ भाग में अन्य वर्ण मिले ।
- बिन्दु:– विभिन्न वर्ण के छोटे छोटे बिंदु या कण दिखाई देता हो रत्न में।
- रेखा दोष:- जब रत्न में अकेलिन्य परस्पर काटती हुई कोई रेखा दिखाई दे।
- जलगर्भता दोष:- रत्न के मध्य शून्य या बुदबुद जैसा दिखाई दे ।
रत्नों पर काल का प्रभाव :-
- खनिज रत्नों पर जल, हवा, और काल का प्रभाव नहीं होता ।
- मुक्ता एवं प्रवाल पर काल का प्रभाव होने के कारण वृद्ध एवं मलिन हो जाते हैं।
रत्न | आपेक्षिक घनत्व(relative density ) | काठिन्य (hardness) | Chemical formula |
१.माणिक्य : Ruby | 4 | 9 | Al2O3 |
२. मुक्ताफल : Pearl | 2.65 – 2.89 | 3.5 | CaCO3 |
३.प्रवाल : Coral | 2.60- 2.70 | 3.5 | CaCO3 |
४. तार्क्ष्य : Emerald | 2.71 | 7.50 | Be3Al2 (SiO3)6 |
५. पुष्पराग:Topaz | 3.53 | 8 | Al(FOH)2SiO4 |
६ हीरक.: Diamond | 3.52 | 10 | C |
७.नीलम :Sapphire | 4 | 9 | Al2O3 |
८. गोमेद: Zircon | 4.65- 4.71 | 7.50 | ZrSiO4 |
९.वैदूर्य: Cat’s eye | 3.5-3.8 | 8.50 | BeOAl2O3 |
रत्न शोधन का प्रयोजन :-
- मुक्त आदि रत्नों का बिना शोधन उपयोग करने पर – दोष नहीं होते। गुण में वृद्धि होती है- शोधन के बाद।
- अशुद्ध रत्न गुणों की वृद्धि नहीं- रोग उत्पन्न करते हैं।
सामान्य शोधन :-
रत्नों को पोटली में बांधकर
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दोला यन्त्र में
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जयन्ती स्वरस द्वारा
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एक प्रहर तक स्वेदन करने पर शुद्ध हो जाता है।
विशेष शोधन :-
“अ ज क्षा गोदू कातनी गो त्री “
रत्न | शोधन द्रव्य |
माणिक्य | जम्बीरी नींबू रस – अम्ल द्रव |
मुक्ता | जयन्ती स्वरस |
प्रवाल | क्षार वर्ग क द्रव |
तार्क्ष्य(पन्ना) | गोदुग्ध |
पुखराज | कांजी और कुलत्थ क्वाथ |
हीरा | तण्डुलीय स्वरस |
नीलम | नीली स्वरस |
गोमेद | गोरेचनयुक्त जल |
वैदूर्य | त्रिफला क्वाथ |
रत्नों का मारण :-
मनःशिला + गन्धक + हरताल in equal parts
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लकुच स्वरस के साथ मर्दन ➡ कल्क बनाकर
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माणिक्य, पन्ना, पुखराज, नीलम, गोमेद, वैदूर्य किसी एक रत्न का चूर्ण कर
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शराव सम्पुट कर 8 बार गजपुट में पकाने पर भस्म हो जाती है।
मुक्ता मारण:-
मुक्ता का सिमाक पत्थर के खल्व में सूक्ष्म चूर्ण
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भावना- गुलाबजल ➡टिकिया बनाकर सूखा दें
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शराव सम्पुट कर कुक्कुट पुट में पाक , 3 बार ऐसा करने से भस्म बन जाती है।
प्रवाल मारण:-
प्रवाल का सिमाक पत्थर के खल्व में सूक्ष्म चूर्ण कर
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भावना -घृतकुमारी स्वरस ➡टिकिया बना कर सूखा दें
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शराव सम्पुट कर गजपुट में पाक, 3 बार करने से भस्म बन जाती है।
2 replies on “Ratn ( रत्न ) – मणि, Gemstone”
Nice keep it up
[…] व सत्वावजय– मन्त्र, जप, मणि धारण आदि द्वारा चिकित्सा करना […]