सन्निपातज शिरोराेग (Sannipataja Shiroroga) वातादि तीनों दोषों के प्रकोप के कारण होता है।
लक्षण/ Symptoms :-
वाताच्छूल भ्रम: कम्पः पित्ताददाहो मदस्तृषा । कफादगुरुत्वं तन्द्रा व शिरोरोगे त्रिदोषजे ।। (च. सू. 17/26)
सर्वे: स्यात्सर्वलक्षणः ।। (अ. उ. 23/11)
- वात के कारण शूल, भ्रम व कम्प
- पित्त के कारण फिर में दाह, मद, प्यास
- कफ के कारण शिरोगुरूत्व व तन्द्रा आदि लक्षण होते हैं।
- निरंतर खांसी बनी रहे व दोषों का पाक चिरकाल से हो। (हंसराज निदान 60/5)
चिकित्सा/ Treatment :-
सन्निपातभेव कार्या सन्निपातहिता क्रिया ।। (च.चि. 26/184) सर्पिः पानं विशेषेण पुराणं वा दिशन्ति हि। ( सु. उ. 26/24) “सन्निपातसमुत्थेऽत्र घृततैलं च बल्तयः। घूमनस्य शिरोरेकलेपस्वेदाद्यमाचरेत् ।। (योगरत्नाकर)
- सन्निपात (त्रिदोषज) चिकित्सा प्रशस्त है।
- वस्तिकर्म, धूम्रपान, नस्य, शिरोविरेचन व लेपन कर्म।
- घृत, तैल प्रयोग।
- स्वेदादिकर्म
- स्मरफलादि प्रधमन नस्य ।
Modern co- relation of Sannipataja Shiroroga:-
According to above description it can be compared with Transformed migraine/ evolution migrane as :-
- Dull moderate headache, always with intermittent migrainous attack episodes
- Previous history of migraine (or constant headache)
- Have symptoms of both tension and regular headache.
- Occures daily, and for months to years.
Management :-
Similar to tension type headache and addition of Acetazolamide or frusemide.