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Ras Shastra Syllabus

Sasyak ( सस्यक ) : Copper Sulphate – Maharas

सस्यक (Sasyak) के नाम:-

संस्कृतसस्यक
हिंदीतूतिया (तुत्थ)
EnglishCopper sulphate

Chemical formula:- Cu So4 .7 H2 O

पर्याय :-

तुत्थ, ताम्रगर्भ, शिखिग्रीव, अमृतासंग, तुत्थक।

Sasyak
उत्पत्ति :-

गरुड़ ने पहले अमृत को पीने के बाद विष का भी पान किया, जिससे मरकत (नीलगिरि) पर्वत पर अमृत्युक्त विष का वमन कर दिया, कुछ समय के बाद वमित द्रव्य ठोस होकर सस्यक (Sasyak) की उत्पत्ति हुई।

प्राप्ति स्थान :-

स्वर्णमाक्षिक की खानों में झारखण्ड के सिंहभूमि एवं राजस्थान में भी इसके खनिज अल्पमात्रा में मिलते है।

विदेशों में Germany, France, England, etc.

Types:-
  1. स्वाभाविक
  2. कृत्रिम
Artificial tuth (तूत्थ) Formation :-
  1. एक फ्लास्क में थोड़ा सा ताम्र का बुरादा लेकर उसमें सांद्र गंधकाम्ल डालकर डुबो दें।
  2. कांच की शलाका से चलाते रहें।
  3. फिर स्प्रिंटलैम्प पर रखकर गंधकाम्ल का वाष्पन करें। जलीयांश सूखने पर ठण्डा किया जाता है।
  4. इस प्रकार फ्लास्क में नील वर्ण के तूत्थ मणिभाकृति होने पर इकट्ठा कर लिया जाता है।
  5. इस विधि द्वारा बड़े पैमाने पर भी तुत्थ बनाया जाता है।
ग्राह्य तूत्थ :

मयूरकंठ सदृश विभिन्न रंगों के मिश्रण युक्त, बहुत भारी, स्निग्ध, अत्यंत चमकीला तुत्थ औषध कार्य के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।

तुत्थ शोधन की आवश्यकता :-

अशुद्ध तुत्थ वमन एवं भ्रम उत्पन्न करता है।

शोधन विधि :

तुत्थ को नींबू स्वरस की तीन भावना देने पर शुद्ध हो जाता है।

शुद्ध तुत्थ के लक्षण :

जिस तूत्थ में वमन एवं भ्रम आदि दोष नहीं रहे, उसे शुद्ध समझना चाहिए।

Sasyak
गुण :-

फिरंग, उपदंश, कुष्ठ, नेत्ररोग, व्रण, त्वकविकार, कृमिविकार एवं वमन को दूर करता है।

तुत्थ मारण :

शुद्ध तुत्थ, शुद्ध गन्धक, शुद्ध टंकण तीनों को समान मात्रा में लेकर बड़हल स्वरस से मर्दनकर मूषा में बन्द करके तीन कुक्कुट पुट में पाक करने पर तुत्थ (Sasyak) की भस्म बन जाती है।

भस्म गुण :-

लेखन, भेदन, कषाय, मधुर, लघु, कृमिघ्न, चक्षुष्य, प्रमेह हर, रसायन, रुचिकारक, त्वकदोषहर, अम्लपित्तहर,।

तुत्थ भस्म की मात्रा:-

1/8 – 1/4 रत्ती

विकार एवं शमनोपाय:-

अशुद्ध तूत्थ वान्ति-भ्रान्ति उत्पन्न करता है ।

अतः 3 दिन तक जम्बीरी नींबू का रस या धान का लाजमण्ड पीने से विकार का शमन हो जाता है।

सत्वपातन :-

तुत्थ में 1/4 भाग टंकण को मिलाकर नींबू स्वरस की भावना दें।

सुखाकर मूषा में रखकर तीव्राग्नि में धमन करने पर तुत्थ का सत्व ताम्र प्राप्त हो जाता है।

भूनाग सत्व :-

Earthworm (भुनाग) की मिट्टी को साफ़ पानी से कई बार धोकर सुखाएं।

फिर उसका चूर्ण करके क्रमशः 3 -3 दिन भृंगराज स्वरस, नींबू स्वरस और निर्गुण्डी स्वरस की भावना दें।

अब इसमें द्रावक गण की औषधियों को मिलाकर पानी से घोटकर बड़ी बड़ी गोलियां बनाकर सुखाएं।

इन गोलियों को दृढ़ मूषा में रखकर दो दण्ड (48 min) तक तीव्र धमन करें।

स्वांगशीत होने पर द्रव्य को बहार निकालकर पीसकर राई के समान सूक्ष्म टुकड़ों को पृथक कर लें।

इन टुकड़ों का 12 वां भाग शुद्ध ताम्र मिलाकर खूब धमन करें।

फिर स्वांगशीत करके बड़े बड़े सत्व के कणों को निकाल लें। यही भूनाग सत्व है।

तुत्थ के प्रमुख योग :-
  1. जात्यादि घृत
  2. जात्यादि तैल
  3. महामृत्युन्जय रस

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