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Suchikabharan Ras | सूचिकाभरण रस : Ayurvedic Injection

जब सत्रिपात का रोगी बेहोश हो, नाड़ी क्षीण हो, रुक-रुक कर नाड़ी चलती हो, देह ठण्डा हो, पसीना आता हो, हाथ-पैर शिथिल एवं ठण्डे हो, श्वास क्षीण हो, हृदय की गति निर्बल हो, मृतसञ्जीवनी सुरा, बृहद कस्तूरी भैरव आदि औषधों का कोई भी प्रभाव नहीं हो अर्थात् अन्तिम दशा है ऐसा समझकर इस सूचिकाभरण रस (Suchikabharan Ras) का प्रयोग करना चाहिए।

प्रथम सूचिकाभरण रस/ Suchikabharan Ras:

रसगन्धकनागञ्च विषं स्थावरजङ्गमम् ।मात्स्यवाराहमायूरच्छागपित्तैश्च भावयेत् ॥६४२॥सूचिकाभरणो नाम भैरवेण प्रकीर्तितः सूचिकाग्रेण दातव्यः सन्निपातकुलान्तकः ॥६४३॥ (र.सा.सं.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. शुद्ध पारद/ Purified and processed Mercury = 10 gram
  2. शुद्ध गन्धक/ Purified and processed Sulphur = 10 gram
  3. नाग भस्म/ Bhasma of Tin = 10 gram
  4. शुद्ध वत्सनाभविष/ Aconitum ferox = 10 gram
  5. कृष्णसर्पविष/ Snake poison = 10 gram

निर्माण विधि/ Procedure:-

  1. सर्वप्रथम पत्थर के एक खरल में पारद एवं गन्धक की कज्जली बनावे।
  2. तत: अन्य द्रव्यों को भी उसी कज्जली के साथ मिलाकर मर्दन करें।
  3. इसके बाद रोहू (रोहित) मछली, सूअर, मोर एवं बकरे के पित्त से 3-3 बार प्रत्येक पित्त से भावना दें।
  4. फिर औषधि को छाया में सुखाकर शीशी में सावधानी से सुरक्षित रख लें।

मात्रा/ Dosage:-

5 mg (मि.ग्रा.)

अनुपान:- केवल सूई की नोक से दवा ब्रह्मरन्ध्र (शिर में मध्य) लगना। गन्ध/ Smell:- विस्रगन्धी। वर्ण/ Appearance:- कृष्ण। स्वाद/ Taste:- स्वाद नहीं लेना चाहिए।

प्रयोग-विधि/ How to use:-

  1. भयंकर असाध्य सन्निपातज्वर के रोगी के शिर (ब्रह्मरन्ध्र) के बीच के बाल अस्तुरा से बनाकर उसी अस्तुरा से क्रास (×) के चिह्न से क्षत करे और पानी में सूई भिगाकर उसी सूई को दवा में डालकर क्रास के क्षत में औषधि भर दे।
  2. दाह-प्यास अधिक होने पर रोगी को अलग स्थान पर बैठाकर शताधिक घड़ा शीतल जल से स्नान करावे।
  3. पुन: चैतन्य (होश) में आने पर कपड़े बदलकर चादर से ढक कर निर्वात स्थान पर रोगी को लेटावें।
Suchikabharan

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

भयंकर सन्निपातज्वर में केवल बाह्य प्रयोगार्थ।

औषधि-निर्माण में सावधानी/ Precautions to be taken while Making the medicine:-

  • इसमें सर्प का विष पड़ा है। अतः औषधि-निर्माता के हाथ में कहीं भी क्षत (कटा-फटा) एवं व्रण नहीं हो।
  • औषध-निर्माणकर्ता के नखों को काटे रखना चाहिए।
  • साथ ही साबुन या ब्रश से अंगुली के नखों को साफ रखना चाहिए।
  • अंगुलियों को मुख में नहीं लगावें।

द्वितीय सूचिकाभरण रस:

अमृतं गरलं दारु सर्वतुल्यञ्च हिङ्गुलम् । पञ्चपित्तेन सम्मर्द्य सर्षपाभां वटीं चरेत् ॥६४४॥ वटिका सूचिकाऽग्रेण सन्निपातकुलान्तकृत् । तिलञ्च तिलतैलञ्च भोजनं दधिभक्तकम् ॥६४५॥

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. शुद्ध वत्सनाभविष/ Aconitum ferox = 10 gram
  2. कृष्णसर्प का विष/ Snake poison = 10 gram
  3. शुद्ध शंखिया / White Arsenic = 10 gram
  4. शुद्ध हिंगुल /Cinnabar = gram

निर्माण विधि/ Procedure:-

  1. सर्वप्रथम पत्थर के एक खरल में हिंगुल और शंखिया को मर्दन करें।
  2. ततः सर्पविष मिलावें, उसके बाद वत्सनाभ चूर्ण मिलाकर मर्दन करें।
  3. और पञ्च पित्त – सूअर के पित्त, बकरे के पित्त, भैंस के पित्त, रोहू मछली के पित्त और मयूर के पित्त से 1-1 बार भावना देनी चाहिए तथा अच्छी तरह सुखाकर चूर्ण रूप में शीशी में सुरक्षित रख लेना चाहिए।

मात्रा/ Dosage:-

5 mg (मि.ग्रा.)

अनुपान:- केवल बाह्य प्रयोगार्थ। गन्ध/ Smell:- विस्रगन्धी। वर्ण/ Appearance:- रक्ताभ। स्वाद/ Taste:- स्वाद नहीं लेना चाहिए भयंकर विष है।

प्रयोग-विधि/ How to use Suchikabharan Ras:-

  1. असाध्य एवं भयंकर सन्निपातज्वर से पीड़ित रोगी में पूर्ववत् शिर के ब्रह्मरन्ध्र में अस्तुरे से चीरा लगाकर (×) सूई से उसी क्षत स्थान में औषधि लगावें। यह सन्निपातकुल को नष्ट करता है।
  2. ज्वर उतरने पर तिल एवं तिलतैल तथा दही-भात का भोजन कराना चाहिए।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

भयंकर सन्निपात में।

तृतीय सूचिकाभरण रस बृहत् :

रसगन्धकनागाभ्रं विषं स्थावरजङ्गमम् । मात्स्यवाराहमायूरच्छागपित्तैर्विभावितम् ॥६४६॥ सूचिकाभरणो नाम भैरवेण प्रकीर्तितः। दातव्यः सूचिकाऽग्रेण पयःपेटीरसेन च ॥६४७॥ त्रयोदशसन्निपाते विसूच्यामतिसारके । त्रिदोषजे तथा कासे दापयेत् कुशलो भिषक् ॥६४८॥ पयःपेटीजलं दद्याद्धोजनं दधिभक्तकम्। तथा सुभर्जितं मांसं लेपनं तिलचन्दनैः । रोगिणो यत् प्रियं द्रव्यं तस्मै तच्च प्रदापयेत्॥६४९॥ (र.सा.सं.)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. शुद्ध पारद/ Purified and processed Mercury = 10 gram
  2. शुद्ध गन्धक/ Purified and processed Sulphur = 10 gram
  3. नाग भस्म/ Bhasma of Tin = 10 gram
  4. अभ्रक भस्म/ Bhasma of Mica = 10 gram
  5. शुद्ध वत्सनाभ/ Aconitum ferox = 10 gram
  6. कृष्णसर्पविष/ Snake poison = 10 gram

निर्माण विधि/ How to make Suchikabharan Ras:-

  1. सर्वप्रथम पत्थर के एक खरल में पारद एवं गन्धक की कज्जली बनावें।
  2. ततः अन्य सभी द्रव्यों को उस कज्जली में मिलाकर मर्दन करें और मछली, सूअर, बकरा तथा मयूर के पित्त से क्रमश: 1-1 भावना देकर औषधि को छाया में सुखाकर काच की शीशी में सुरक्षित रूप से रख ले।

मात्रा/ Dosage:-

5 mg (मि.ग्रा.)

अनुपान:- केवल बाह्य प्रयोगार्थ। गन्ध/ Smell:- विस्रगन्धी। वर्ण/ Appearance:- कृष्ण वर्ण। स्वाद/ Taste:- स्वाद नहीं लेना चाहिए। भयंकर विष है।

प्रयोग-विधि/ How to use:-

  1. सूचिकाभरण रस (Suchikabharan Ras) का अन्त: प्रयोग एवं बाह्य प्रयोग (Internal use and external use) दोनों सूई से ही करते हैं।
  2. बाह्य प्रयोग शिर के बीच ब्रह्मरन्ध्र पर बाल छिलकर क्रास (×) चीरा लगाकर उसी क्षत भाग में सूई से औषधि को लगाते हैं।
  3. और अन्त: प्रयोग उसी मात्रा में (सूई पर उठे जितना) नारियल के पानी में घोल कर पिलाना चाहिए।
  4. इसके प्रयोग के समय नारियल का पानी पिलाना चाहिए।
  5. ज्वर उतरने पर दही और भात खिलाना चाहिए।
  6. रोगी के शरीर में तिलतेल की मालिश तथा चन्दनादि का लेप करना चाहिए।
  7. घृत में भूना हुआ पक्व मांस का भोजन कराना चाहिए।
  8. इसके अतिरिक्त रोगी को जो भी प्रिय लगे उसे वैसा ही भोजन देना चाहिए।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

  • भयंकर सत्रिपात रोग
  • विसूचिका
  • अतिसार
  • कास रोग

चतुर्थ सूचिकाभरण रस/ Suchikabharan Ras:

विषं पलमितं सूतः शाणिकश्चूर्णयेद् द्वयम् । तच्चूर्णं सम्पुटे क्षिप्त्वा काचलिप्तशरावयोः ॥७४६॥ मुद्रां दत्त्वा च संशोष्य ततश्चुल्ल्यां निवेशयेत् । वह्निं शनैः शनैः कुर्यात् प्रहरद्वयसंख्यया ॥७४७॥ तत उद्घाटयेन्मुद्रामुपरिस्थः शरावकात्। संलग्नो यो भवेत्सूतस्तं गृहीयाच्छनैः शनैः॥७४८॥ वायुस्पर्शो यथा न स्यात्तथा कूप्यां निवेशयेत् । यावत्सूच्या मुखे लग्नं कूप्या निर्याति भेषजम् ॥७४९॥ तावन्मात्रो रसो देयो मूर्च्छिते सन्निपातिनि । क्षुरेण प्रच्छिते मूर्ध्नि तत्राङ्गुल्या च घर्षयेत् ॥७५० ॥ रक्तभेषजसम्पर्कान्मूर्च्छितोऽपि हि जीवति। तथैव सर्पदष्टस्तु मृतावस्थोऽपि जीवति ।॥७५१॥ यदा तापो भवेत्तस्य मधुरं तत्र दीयते ॥७५२॥ (शार्ङ्गधर)

घटक द्रव्य/ Ingredients:-

  1. शुद्ध वत्सनाभविष चूर्ण/ Aconitum ferox = 46 gram
  2. शुद्ध पारद/ Purified and processed Mercury = 6 gram

निर्माण विधि/ Procedure:-

  1. सर्वप्रथम पत्थर के एक खरल में पारद तथा थोड़ा विषचूर्ण एक साथ मर्दन करे।
  2. थोड़ा-थोड़ा वत्सनाभ चूर्ण उसमें डालते रहे। कुछ देर में पारद चूर्ण होता जायेगा। सम्पूर्ण वत्सनाभ चूर्ण उसमे मिला दें। अब पारद निश्चन्द्र हो जायेगा।
  3. सात बार कपड़मिट्टी की हुई आतसी शीशी या हरे रंग की बोतल मे औषधि भरकर बालुका यन्त्र में धीरे-धीरे 2 प्रहर (6 hrs/ घण्टे) तक पाक करें।
  4. स्वाङ्गशीत होने पर सावधानीपूर्वक कूपी तोड़कर कूपी के ऊपरी भाग से धीरे-धीरे खुरच कर औषधि को तुरन्त चौड़े मुख की शीशी में सुरक्षित रख लें।
  5. ध्यान रहे कि ज्यादा देर तक उक्त औषधि को हवा का स्पर्श नहीं होने दें। एक शीशी Stoppard नाम की आती है जिसमें वायु नहीं प्रवेश करती है।

मात्रा/ Dosage:-

1 सरसो (One mustard seed) जितनी मात्रा।

अनुपान:- केवल बाह्य प्रयोगार्थ। गन्ध/ Smell:- निर्गन्ध। वर्ण/ Appearance:- श्वेत। स्वाद/ Taste:- स्वाद नहीं चखें।

प्रयोग-विधि/ How to use Suchikabharan Ras:-

  1. नि:संज्ञ सन्निपातज्वर के रोगी के ब्रह्मरन्ध्र (शिर के मध्य भाग) का बाल अस्तुरे से बनाकर वहाँ पर अस्तुरे से क्रास (×) कर दें।
  2. और उसी क्षत प्रदेश पर उक्त रसौषधि को सूई की नोक से निकाल कर लगा दें और अंगुली से औषधि का मर्दन करें, जिससे रक्त के साथ भलीभाँति औषधि का सम्पर्क हो जाय।
  3. रक्त से औषधि का सम्पर्क होते ही मूर्च्छित सन्निपातज्वरी शीघ्र ही होश में आ जाता है।
  4. इसी प्रकार की चिकित्सा से सर्पदष्ट रोगी भी बेहोशी त्याग देता है और स्वस्थ हो जाता है।
  5. इस औषधि-प्रयोग के बाद यदि शरीर में अधिक गर्मी मालूम पड़े तो पूर्ववर्णित सूचिकाभरण रस में कथित शीत एवं मधुरोपचार करना चाहिए।
  6. यहाँ भी मस्तक पर शीतल जलधारा, नारियल का जल-पान, मधुर चीनी का शर्बत, चन्दनादि का लेप करना चाहिए।

उपयोग/ Therapeutic Uses:-

भयंकर सन्निपातज्वर में।