ज्वर रोग : व्याधि परिचय आयुर्वेद के आचार्यों ने ज्वर (Jwar) को सबसे महत्त्वपूर्ण तथा प्रधान व्याधि माना ज्वर शब्द का प्रयोग रोग के पर्याय के अर्थ में भी किया गया है। ज्वर के प्रधान होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि सभी प्राणियों में ज्वर जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक कभी न […]
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रसं विषं चाभ्रगन्धं तालकं हिंगुलं विषम् शुल्बभस्मसमं तुल्यं मर्दितं भृङ्गवारिणा।।काचकुप्यां विनिक्षिप्य मृत्तिका लेपयेद्वहिः। वालुकायन्त्रके पाच्यं दिनैकं मन्द वन्हिना ॥साङ्गशीतलमुद्धृत्य दातव्यं चणमात्रकम्। अनुपानविशेषेण चातुर्थिकज्वरं हरेत्॥सन्निपातं निहन्त्याशु सर्वज्वरहरं परम्। महदग्निकुमारोऽय सर्वव्याधि विदारण ॥ Ingredients :- पारद, वत्सनाभ, अभ्रक, गंधक, हरताल, हिंगुल, ताम्र सभी द्रव्य एक समान मात्रा में। Bhawana Dravya :- भृंग राज स्वरस Vidhi :- मिश्रण […]
रसकेन समं शंख शिखिग्रीवं च पादिकम्। गोजिह्वया जयन्त्या च तुण्डुलीयैश्च भावयेत्॥प्रत्येकं सप्तसप्ताथ शुष्कं गुञ्जाचतुष्टयम्। जरणेन घृतेनाद्यात्त्र्याहिकज्वरशान्तये॥ Ingredients :- रसक, शंख ( दोनों की समान मात्रा ) Bhawna Dravaya :- शिखि ग्रीव, पादिक, गोजिह्वा, तंदुलिया प्रत्येक की 7-7 भावना देते है Vidhi :- भावना देने के बाद में औषधि को सुखाकर चूर्ण करले Dossage :- 4 […]
पारदं गन्धकं तानं हिंगुलं तालमेव च| लौहं व माक्षिकं च खर्परं च मनश्शिला॥मृताभ्रकं गैरिकं च टङ्कणं दन्तिबीजकम्। सर्वाण्येतानि तुल्यानि चूर्णयित्वा विभावयेत्॥जम्बीरतुलसीचित्रविजयातिंतिडीरसैः। एभिर्दिनत्रयं रौद्रे निर्जने खल्बगहवरे ।।चणमात्रां वटीं कृत्वा छायाशुष्कां च कारयेत्। महाग्निजननी चैषा सर्वज्वरविनाशिनी।।एकजं द्वन्द्वजं चैव चिरकालसमुद्भवम्। ऐकाहिक द्व्याहिकं च तथा त्रिदिवसज्वरम्।।चातुर्थिकं तथात्युग्रं जलदोषसमुद्भवम्। सर्वान्ज्वरान्निहन्त्याशु भास्करस्तिमिरं यथा॥नातः परं किञ्चिदस्ति ज्वरनाशनभेषजम्। महाज्वरांकुशो नाम रसोऽयं मुनिभाषितः॥ Ingredients […]
रसहिंगुलनेपालं पृथ्वीदन्त्यम्बुमर्दितम्। दिनार्धेन ज्चरं हन्याद्गुडेन सितया सह ॥चतुर्वल्लमिदं खादेत्सर्वज्वरप्रशान्तये। Ingredients :- रस ( पारद ), हिंगुल, नेपाल ( मन: शिला ), पृथ्वी व दंती सभी सम भाग में लेले। Bhawna Dravya :- अंबू ( जल ) अथवा दंती स्वरस या क्वाथ Yantra :- खलव Vidhi :- आधा दिन (4 घंटे ) सभी द्रवयो को मर्दन […]
Logic behind naming :- सब प्रकार के ज्वर पर अंकुश ( दमन या नाश ) करता है इसलिए इसे ज्वर अंकुश कहा जाता है। सूतं गन्धं विषं तुल्यं धूर्तबीजं त्रिभिः समम्। चतुर्णा द्विगुणं व्योषं चूर्णयेद्दिनमात्रकम्॥जम्बीरस्य रसैर्मर्धमाकस्य द्रवेन च। गुञ्जाद्वयं प्रदातव्यं वातज्वरहरं परम्॥इदं ज्वरांकुशं नाम्ना सर्वज्वरविनाशनम्। ऐकाहिकं व्याहिकं च व्याहिकं वा चतुर्थकम्।विषमं वा त्रिदोष वा हन्ति […]
द्विभागं श्वेतपाषाणं रसं नेपालम्लेच्छकम्। प्रत्येकमेकभागं तु खल्वमध्ये विनिक्षिपेत्॥कृष्णभनरतोयेन मर्दितं याममात्रकम्। मुद्गप्रमाणमात्रेण त्वार्द्रकं चानुपानकम्॥ऐकाहिकं व्याहिकं च त्र्याहिकं नाशयेज्ज्वरम्। Ingredients :- श्वेत पाषाण ( 2 भाग ), पारद ( 1 भाग ) , मन: शिला ( 1 भाग ), ताम्र ( 1 भाग) Bhawna Dravya :- कृष्ण धतुर स्वरस Yantra :- तप्त खलव Dosage :- 1 गोली […]
पारदम्लेच्छ स्मार्च गन्धकं च मनश्शिला। पाषाणद्वितयं चाथ भूङ्गीनीरेण मर्दयेत्॥ द्विदिनं वालुकायन्त्रे चण्डाग्नौ च द्वियामकम्। द्विगुञ्जं भक्षयेक्रित्यमार्द्रकं चानुपानकम् ॥पाशुपतास्त्रनामायं सार्वाहिकंज्वरं हरेत्। Ingredients :- पारद, ताम्र, गंधक, मन: शिला, पाषण द्वितीय ( सभी सम भाग ) Bhawna Dravya :- भृंगराज स्वरस Yatra :- बालुका यंत्र Dose :- 250 mg ( 2 रती ) आद्रक स्वरस के साथ […]