Tantrayuktiya is present in Astanga Hridya’s Maulik Siddhant portion, Charak Uttarardh as well as sushrut samhita. Not only their is Change in number of tantrayuktiya of various Acharyas. But why to wait when one can learn them in 1st year itself. I know it’s tough to learn 40 Names all together but today we provide you with trick to learn and after learning it you won’t forget once and for all.
ट्रिक पर जाने से पहले हम यह समझते है आखिर क्या है तंत्र युक्तियां :-
तंत्र शास्त्र का ही पर्याय है जो कि ज्ञान के अर्थ में प्रयोग किया जाता है, युक्ति का अर्थ होता है योजना, हम अब इन दोनों शब्दों का साथ में अर्थ देखते है :- शास्त्र की योजना।
प्रयोजन :-
वाक्य का सही अर्थ बोध के लिए तंत्र युक्तियों का प्रयोग किया जाता है। तन्त्रयुक्ति द्वारा असद्वादि प्रयुक्त वाक्यों का प्रतिषेध एवं स्ववाक्य की सिद्धि भी की जाती है अर्थात् :- जैसे कमल से युक्त वन में दीपक से अर्थ सूर्य से होगा और उसी प्रकार घर में दीपक कहने से अर्थ दिया होगा इस योजना को आचार्यों ने तंत्र युक्ति नाम दिया है। यहाँ एक भी शास्त्र का जिसका परिज्ञान बुद्धि को हो गया है, वह युक्ति ज्ञान के आधार पर अन्य शास्त्रों का भी शीघ्र ज्ञान प्राप्त कर लेता है। बैध (वैद्य) तन्त्रयुक्ति बिना शास्त्र-अध्ययन करता हुआ भी शास्त्र के अर्थ को ठीक उसी प्रकार नहीं ग्रहण कर पाता है।
भेद :-
- वाक्य योजना
- योगोनिर्देश आदि
- अर्थ योजना
- पदार्थ आदि
संख्या :-
- तंत्र युक्ति की संख्या आचार्य सुश्रुत ने 32 बताई है
- आचार्य चरक के द्वारा 36 बताई गई है
- चरक टीकाकर भट्टारहरिशचन्द्र ने चरक के आलावा 4 और तंत्र युक्तियों का वर्णन किया है।
Trick to Learn :-
अतीत समय में देश का उद्धार और दोषों के प्रश्नो की व्याख्या हेतु अधिक संख्या में संज्ञावन अर्धापतियों ने समुचित होकर अपने से बड़े पद के लोगो की अनुमति से अहम निर्णय लेकर प्रयोजन दिए । संभवत: अधिक वर्ग के लोग उनके दर्शन और वचनों से गलत प्रभावित होकर एकांत में पूर्व की तरह विधि विधान से योग की विपरीत कल्पना करने लगे।
- अतीत – अतीतावेक्षण, अनागतावेक्षण
- समय – संशय
- देश – PNA²U²
- प्रदेश
- निर्देश
- उपदेश
- उद्देश
- अपदेश
- अतिदेश
- उद्धार – उद्धार
- दोषों – वाक्य दोष
- प्रश्नो – प्रसंङ्ग
- व्याख्या – व्याख्यान
- हेतु – हेत्वर्थ
- अधिक – अधिकरण
- संख्या में संज्ञावान – स्वसंज्ञा
- अर्थापतियों – अर्थापति
- समुचित – समुच्य
- पद – पदार्थ
- अनुमति – अनुमत
- अहम – ऊहा
- निर्णय – निर्णय
- प्रयोजन – प्रयोजन
- संभवत: – संभव
- वर्गो – उपवर्ग
- दर्शन – निर्देशन
- वचनों – निर्वाचन
- प्रभावित – प्रस्तुतसार
- एकांत – एकांत, नैकंत
- पूर्व – पूर्वपक्ष
- विधान – विधान
- योग – योग, सन्नियोग
- विपरीत – विपर्यय
- कल्पना – विकलपन
Detailed aspect of तंत्र युक्तियां :-
- अधिकरण ( Main Topic ) :- जिस मुुुख्य विषय को लेकर बाकी सब बाते कही जा रही है। For ex :- As we see Chapter name in our books that’s the main topic and below all mentioned topics that come in chapter are either to explain main topic or have relationship with it indirectly.
- योग ( Correlation ) :- पहले वाक्य में कहे हुए शब्द से दूसरे वाक्य में कहे गए शब्द से परस्पर संबंध होना, अलग अलग कहे शब्दों का आपस में एकत्र होना योग है। Example:- if we are reading a paragraph and their is no relationship between words and sentences like one sentence explaines about India and next explains about a person. Making correlation between is known as yog.
- पदार्थ :- किसी सूत्र में या किसी पद में कहा गया विषय पदार्थ है।
- हेत्वर्थ :- जो अन्यत्र कहा हुआ अन्य विषय का साधक होता है, वह हेत्वर्थ है। For ex :- if a chapter is named as Kamla then one can also related in chapter with Jaundice, Liver disorders etc.
- उद्देश्य :- संक्षेप में कहा गया विषय।
- निर्देश :- विस्तार से कहा जाना निर्देश है।
- अपदेश :- कार्य के प्रति कारण का कहा जाना अपदेश कहा जाता है। जैसे :- मधुर रस सेवन से कफ की वृद्धि होती है क्योंकि दोनों के गुण समान है।
- प्रदेश:- अतीत अर्थ से साधन प्रदेश कहा जाता है। For example :- Treatment of any disease remains for everyone.
- अतिदेश :- प्रकृत विषय से उसके सदृश अनागत विषय का साधन अतिदेश कहा जाता है। जैसे :- आसमान नीला होता है अगर इसके अलावा कोई और होगा तो उसका साधन अतिदेश कहा जाएगा।
- उपवर्ग :- सामान्य वचन के कथन से किसी का ग्रहण और पुनः विशेष वचन से उसका कुछ निराकरण अपवर्ग है। For example :- Jesse bola jaye ki din meh nhi sona chahiye but baad meh usme exception bataye jaye ki yeh so sakte hai.
- वाक्य दोष :- जिस पद के कहे बिना ही वाक्य समाप्त हो जाता है, वह वाक्यदोष कहा जाता है, पर यह वाक्य दोष कार्य विषय का बोधक होता है । जैसे :- शरीर के अंगो के नाम के साथ पुरुष का प्रयोग शरीर को दर्शाता है वहीं केवल पुरुष का प्रयोग आत्मा का बोधक होता है।
- अर्थापत्ति :- एक विषय के प्रतिपादन से अन्य अप्रतिपादित विषय का स्वतः सिद्ध हो जाना अर्थात् ज्ञान हो जाना अर्थापति कहलाता है। For example:- Prooving something with reference of something else that’s proven.
- विपर्यय :- जो कहा जाये, उससे विपरीत ‘विपर्यय’ कहा जाता है। For example:- Irony or Sarcasm.
- प्रसङ्ग :- दूसरे प्रकरण से विषय की समाप्ति अथवा प्रथम कथित विषय के प्रकरण में आ जाने से उसे पुनः कहना प्रसंग कहा जाता है।
- एकान्त :- जो सर्वत्र एक समान कहीं गई बात है। जैसे मदन फल का वमन में उपयोग।
- अनेकान्त :- कहीं किसी का कुछ कहना कहीं कुछ। जहां पर आचार्यों के बीच में मतभेद हो। जैसे :- रस संख्या की संभाषा में अलग-अलग आचार्यों के रस की संख्या अलग-अलग थी।
- पूर्वपक्ष :- आक्षेप पूर्वक प्रश्न करना। जैसे :- क्यों वात जनित प्रमेह असाध्य होते हैं।
- निर्णय :- पूर्वपक्ष का जो उत्तर होता है वही निर्णय है।
- अनुमत-लक्षण :- दूसरे के मत का भिन्न होने पर प्रतिषेध न करना ‘अनुमत’ कहलाता है। जैसे कोई कहे रस की संख्या 7 है ( आचार्य हारित ने भी रस 7 माने है )।
- विधान :- प्रकरण के अनुपूर्वक्रम ( यथाक्रम ) से कहा गया विधान है। Chronological Order
- अनागतावेक्षण :- भविष्य में अर्थात् आगे कहा जाने वाला विषय। For example :- To read by topics visit :- https://vaidyanamah.com/blog/
- अतिक्रान्तावेक्षण :- जो विषय प्रथम कहा गया हो, उस पर पुनः विचार करना अतिक्रान्तावेक्षण कहा जाता है। For example :- You need to visit https://vaidyanamah.com/blog/ for our posted posts.
- संशय :- दोनों प्रकार के हेतुओं का दिखलायी देना संशय कहा जाता है। जैसे :- कोई ऐसा विषय जिसमें समझ में नहीं आए की यह करना है अपितु नहीं करना।
- व्याख्यान :- शास्त्र में विषय का अतिशय रूप से सम्यकृतया समझाकर वर्णन करना व्याख्यान कहा जाता है। जैसे :- आयुर्वेद संहिता में रोगों की चिकित्सा की व्याख्या की गई है।
- स्वसंज्ञा :- किसी की अन्य शास्त्रों से भिन्न जो अपनी संज्ञा दी जाती है। जैसे :- मिश्रक वर्गीकरण अलग अलग आचार्यों ने एक साथ योगों को अपने अपने नाम दिए है।
- निर्वचन :- निश्चित वचन कहना निर्वाचन कहा जाता है। जैसे रस की संख्या 6 है।
- निदर्शन :- जिस वाक्य में दृष्टान्त से विषय व्यक्त किया गया हो, वह निदर्शन है।
- नियोग :- यह ही करना है यह नियोग है। जैसे पथ्य का ही सेवन करना है।
- समुच्चय :- यह और यह इस प्रकार कहना समुच्चय है। जैसे :- सब बा तों को इकठ्ठा करके कहना।
- विकल्प :- यह अथवा यह–इस प्रकार का वाक्य अथवा कहकर कहा जाना ‘विकल्प’ कहलाता है। ( Options )
- ऊह्म :- शास्त्र में अनिर्दिष्ट विषय को बुद्धि से तर्क कर जो जाना जाता है। जैसे :- किसी रोग में उपद्रव होने का कारण जानना।
- प्रयोजन :- जिस विषय की कामना करते हुए उसकी सम्पन्नता में कर्ता प्रवृत्त होता है, वह प्रयोजन है। ( Reason for doing )
- प्रत्युत्सार :- प्रमाण एवं युक्ति द्वारा दूसरे के मत का निवारण करना ‘प्रत्युत्सार’ कहा जाता है। जैसे भगवान पुनर्वसु ने रस की संख्या निर्धारण से पहले सभी आचार्यों के प्रति उत्तर दिए थे।
- उद्धार :- दूसरे के पक्ष में दोष निकाल कर अपना पक्ष सिद्ध करना।
- सम्भव :- जो जिसमें उपपद्यमान होता है, वह उसका ‘सम्भव’ है।