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Dravya Guna

Mishrak Varghikaran ( मिश्रक वर्गीकरण ) औद्भीद, जांगम व पार्थिव गण

औद्भिद द्रव्य गण विवेचन –
(1) विविध पञ्चमूल – महर्षि सुश्रुत ने पञ्च (पांच) पञ्चमूलों का वर्णन किया है।इसके अंतर्गत लघु पञ्चमूल, बृहत् पञ्चमूल, वल्ली पञ्चमूल, कण्टक पञ्चमूल और तृण पञ्चमूल आते हैं।

(क) लघु पंचमूल
घटक द्रव्य – शालपर्णी, पृश्निपर्णी, वार्ता की ( बृहती), कंटकारी और गोक्षुर।

(ख) बृहत पंचमूल
घटक द्रव्य – बिल्व, सर्वतोभद्रा (गम्भारी), पाटला, गणिकारिका (अग्निमन्थ), श्योनाक।

(ग) दशमूल
घटक द्रव्य – लघु पञ्चमूल और बृहत् पञ्चमूल को एकत्र रूप में ग्रहण करने पर यह गण “दशमूल”
कहलाता है।

(घ) वल्ली पंचमूल
घटक दव्य – विदारी, सारिवा, रजनी (मंजिष्ठा), गुडूची और मेषश्रृंगी।

(च) कण्टक पंचमूल
घटक द्रव्य – करमर्द, गोक्षुर (त्रिकण्टक), सैरेयक, शतावरी एवं हिंस्त्रा (गृघ्रनख्य)।

(छ) तृणपंचमूल
घटक द्रव्य -कुश, काश, नल, दर्भ, काण्डेक्षु।

(ज) मध्यम पञ्चमूल
घटक द्रव्य-बला, पुनर्नवा, एरण्ड, मुद्गपर्णी, माषपर्णी।

(झ) जीवनीय पञ्चमूल
घटक द्रव्य -अभीरू, वीरा, जीवन्ती, जीवक और ऋषभक।

(2) पञ्चवल्कल
घटक द्रव्य – न्यग्रोध (वट), उदुम्बर, अश्वत्थ, पारीष (पारस पीपल),प्ललक्ष।

(3) पञ्चपल्लव
घटक द्रव्य -आम (आम्र), जामुन, कपित्थ (कैंथ), गाजीपुर (बिजौरा निम्बु), बिल्व।

(4)पञ्चतिक्त
घटक द्रव्य – गुडूची, निम्बमूलत्वक्, वासा, कण्टकारी और पटोलपत्र ।

(5) अम्ल पञ्चक

घटक द्रव्य-अमलवेतस, जम्बीर, मातुलुंग, निम्बू और नारङ्ग।

6)त्रिफला’
हरीतकी (हरड़), विभीतक (बहेड़ा) और आमलकी (आंवला)।

(ख) मधुर त्रिफला
घटक द्रव्य -द्राक्षा, काश्मर्य और खजूर।

(ख) स्वल्प त्रिफला
घटक द्रव्य – काश्मर्य (गम्भारी), खजूर और परूषक (फालसा)।

(घ) सुगन्धि त्रिफला
घटक द्रव्य – जातीफल, लवङ्गकलिका (फल) और पूगफल (सुपारी)।

(7) त्रिकटु
घटक द्रव्य – शुण्ठी (विश्वा), पिप्पली (उपकुल्या) और काली मरिच।

(8) चतुरूषण
घटक द्रव्य -त्रिकटु (सोंठ, मिर्च, पिप्पली) में पिप्पली मूल मिलाने पर इसे ‘चतुरूषण’कहते हैं।

(9) त्रिमद
घटक द्रव्य – विडंग, पुस्तक और चित्रक।

(10) त्रिजातक
घटक द्रव्य – त्वक् (दालचीनी), छोटी इलायची और तेजपत्ता ।

(11) चतुर्जात
घटक द्रव्य – त्रिजातक (त्वक्, एला,तेजपत्ता) +नागकेसर।

(12) कटुचतुर्जातक
घटक द्रव्य -त्रिजातक(छोटी एला, त्वक् और तेजपत्र) + मरिच।

(13) चतुर्बीज

घटक द्रव्य – मेथी, चन्द्रशूर, मंगरैल (कालाजाजी) तथा यवानी।

(14) पञ्चकोल

घटक द्रव्य -पिप्पली, पिप्पली भूल, चव्य, चित्रक और शुण्ठी।

(15) षडूषण
घटक द्रव्य – पञ्चकोल (पिप्पली, पिप्पली मूल, चव्य, चित्रक और शुण्ठी) +काली मरिच ।

(16) अष्टवर्ग

घटक द्रव्य -जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि और वृृद्धि।

(17) जीवनीय गण
घटक द्रव्य- अष्टवर्ग (मेदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, काकोली, क्षीरकाकोली, ऋद्धि, वृद्धि), मुद्गपर्णी,माषपर्णी, जीवन्ती और यष्टिमधु।

18 ) त्रिकार्षिक


नामकरण का आधार – इस मिश्रक वर्ग में तीन घटक द्रव्य हैं और तीनों को एक-एक कर््ष मात्रा.में
ग्रहण करते हैं ,इसलिए इस वर्ग को ‘त्रिकार्षिक’ कहते हैं।
घटक द्रव्य –शुण्ठी, अतिविषा और मुस्तक (तीनों एक-एक कर्ष मात्रा में)।

(19) चातुर्भद्र –

त्रिकार्षिक में गुडूची (1 कर्ष मात्रा में) मिला देने पर।

(20) महापञ्चविष:-

श्रृंगिक, कालकूट, पुस्तक, वत्सनाभ और सक्तुक।

(21) उपविष
राजनिघण्टु के अनुसार उपविष -अर्कक्षीर, स्नुहीक्षीर, जंगली, करवीर, गुञ्जा, अहिफेन और धतूरा।

जांगम गण विवेचन
(1) क्षीराष्टक

अविक्षीरं अजाक्षीरं गोक्षीरं माहिषञ्च यत्।
उष्टीणामथ नागीनां वडवायाः स्त्रियास्तथा।। (च०सू०अ० 1/107)
भेड़ी, बकरी, गाय, भैंस, ऊँटनी, हथिनी, घोड़ी और स्त्री- इन आठों प्राणियों के दूध को ‘ क्षीराष्टटक गण’ कहते हैं।

(2) मूत्राष्टक –

भेड़, बकरी, गाय, भैंस, हाथी, ऊँट, घोडा और गदहा – इन आठों के मूत्र को ‘मूत्राष्टक गण’ संज्ञा दी गई है।

3)पितपञ्चक-पित्तं पञ्चविध मत्स्यगवाश्वनरबर्हिजम्। (रसार्णव)

मछली, गाय, घोड़ा, मनुष्य और मयूर – इन पाँचों के पित्त को ‘पित्तपञ्चक गण’ संज्ञा दी है।

पार्थिव गण विवेचन

(1) एक-द्वि-त्रि-चतुः-पंच लवण-
एक लवण – सैन्धव।

द्वि लवण – सैंधव और सौवर्चल।
त्रि लवण – सैंधव, सौवर्चल और विड लवण।
चतुर्लवण – सैन्धव, सौवर्चल, विड और समुद्र लवण ।

पञ्च लवण या लवण पंचक- सैंधव, सौवर्चल, विड, समुद्र और सांभर लवण।

(2) क्षार द्रव्य
स्वर्जिका क्षार (सज्जीक्षार) और यवक्षार को क्षार द्रव्य गुण’ संज्ञा दी गई है।

3)क्षाराष्टक
घटक द्रव्य- पलाश, वज्र्री (स्नुही), शिखरी (अपामार्ग), चिञ्चा, अर्क और तिलनाल- इन सबका क्षार, यवक्षार और स्वर्जिका क्षार को ‘क्षाराष्टक गण’ कहते हैं।

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