निरुक्ती :-
अधारणीय वातदोष के वेगों को धारण करने (रोकने) से जो उसका मार्ग-परिवर्तन हो गया है अर्थात् जो प्रतिकूल मार्ग की ओर प्रवृत्त हो गया है, उसी को उदावर्त (Udavart) कहते हैं।
निदान :-
अपान वायु, मल, मूत्र, उबासी, आंसू, छीक, डकार, वमन, इन्द्रिय, शुक्र, भूख, प्यास, श्वास, उच्छवास क्रिया, निद्रा आदि वेगों को रोकने से उदावर्त रोग उत्पन्न होता है।
रूखे, कसैले, कड़वे, तिक्त पदार्थो का अधिक सेवन करने से वात दोष प्रकुपिट होकर उदार्वत (Udavart) रोग उत्पन्न करता है।
भेद :-
चरक | माधव निदान | भाव प्रकाश | भैषज्यरत्नावली |
वात निरोधज | वात निरोधज | वात निरोधज | वात निरोधज |
मूत्र निरोधज | मूत्र निरोधज | मूत्र निरोधज | मूत्र निरोधज |
पुरीष निरोधज | मल निरोधज | मल निरोधज | मल निरोधज |
शुक्र निरोधज | शुक्र निरोधज | शुक्र निरोधज | — |
वमन निरोधज | छर्दि निरोधज | छर्दि निरोधज | — |
क्षवथू निरोधज | छिक्कोदावर्त | छिक्कोदावर्त | — |
— | जृम्भोपघातज | जृम्भोपघातज | — |
— | अश्रुदावर्त | अश्रुदावर्त | — |
— | उद्गार निरोधज | उद्गार निरोधज | — |
— | क्षुधानिरोधज | क्षुधानिरोधज | — |
— | तृष्णानिरोधज | तृष्णानिरोधज | — |
— | श्वास निरोधज | श्वास निरोधज | — |
— | निद्रा निरोधज | निद्रा निरोधज | — |
उदावर्त के लक्षण :-
जिस रोग में वायु का घुमाव नीचे से ऊपर की ओर को हो जाता है, उस रोग को चिकित्सक उदावर्त (Udavart) कहते हैं। इस रोग में वातदोष की प्रधानता होती है।
भेद लक्षण :-
भेद | लक्षण |
वात निरोधज | आपन वायु के वेग को रोकने से, मूत्र, पूरिष, आपन वायु सब रुक जाते है, अफरा, सुस्ती, पेट दर्द, वात विकार |
मलावरोधज | मल वेग को रोकने के कारण, पेट में गुड़गुड़ाहट, पेट में शूल, मल प्रवृति न होना, डकार का होना, अधिक प्रकोप होने से मुख से मल निकलना |
मूत्र निरोधज | मूत्राशय व मुत्रेन्द्रिय में पीड़ा, मूत्र कठिनता से निकलता है, सिर में पीड़ा, जकड़न |
जृम्भोपघातज | मान्या व ग्रीवा स्तम्भ, शिर विकार, वातज विकार, उधर्व जत्रूगत रोग उत्पन्न |
अश्रुदावर्त | सिर में भारीपन, जुखाम, कष्ट कारक नेत्र रोग |
छिक्कोदावर्त | मन्यास्तम्भ, शिर शूल, अर्दित, अर्धव भेदक व ज्ञान इन्द्रियों की कमज़री |
उद्गार निरोधज | कंठ व मुख में भारीपन, अधिक वेदना, श्वास गति में रुकावट, कष्ट कारक वात रोग |
छर्दि निरोधज | खुजली, शरीर पर चकटो का होना, अरुचि, व्यंग, सूजन, पांडु रोग, ज्वर, कुष्ठ, विसर्प, जी मचलना |
शुक्र निरोधज | मूत्राशय, गुद प्रदेश, अंडकोश में शोथ व पीड़ा, मूत्र में रुकावट, शुक्र संभधित रोग, शुक्र अश्मरी |
क्षुधानिरोधज | तंद्रा, अरुचि, अंगो में पीड़ा, दृष्टि मंद |
तृष्णानिरोधज | गला व मुख सुख जाता है, बहरा पन, हृदय में पीड़ा |
श्वास निरोधज | श्वास की गति बढ़ना, हृदय रोग, मूर्च्छा, गुल्म रोग |
निद्रा निरोधज | उबासी आना, अंगो में पीड़ा, नेत्रों तथा सिर में भारीपन, तंद्रा |
आसाध्य लक्षण :-
- तृष्णा
- कार्य करने में हमेशा असमर्थ
- बल व मांस से क्षीण
- मल से मुख का वमन करना
One reply on “Udavart Rog Nidan ( उदावर्त रोग निदान ) : भेद, लक्षण”
[…] दही, जल, काञ्जी- उदावर्त एवं मूत्रकृच्छ में हितकारी है। जौ के […]