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वैज्ञानिक नाम – Acorus calamus कुल नाम – Araceae
Classic Mentions :-
Ved :- अथर्व वेद ४/७/४-६,६/२६/२,६/१६/१-२
Bhavprakash :- हरितयादि वर्ग ( 3 भेद)
Dhanvantri :- —–
Madanpaal :- शुण्ठयादि वर्ग
Raj :- पिप्पल्यादि वर्ग
Kaidev :- ओष्धि वर्ग
Chandu :- मदनादि गण (2 भेद)
Comparative review Name :-
Name | भाव प्रकाश | मदनपाल | राज | कैदेव | चंदु | वेद |
वचा | * | * | * | * | * | |
अग्रगंधा | * | * | * | * | * | |
षड्गंधा | * | * | * | |||
गोलोमी | * | * | * | * | ||
शतपर्विका | * | |||||
क्षुद्रपत्री | * | |||||
मङ्गल्या | * | |||||
जटिया | * | * | ||||
उग्रा | * | * | ||||
लोमशा | * | * | * | |||
शतपर्वा | * | |||||
परासणा | * | |||||
धीररक्ता | * | |||||
योगवती | * | |||||
कर्षणी | * | |||||
शुभा | * | |||||
जटिला | * | * | ||||
हेमवती | * | |||||
वच | * | |||||
विजया | * | |||||
भद्रा | * | |||||
षड्ग्रन्था | * | |||||
मदावती | * | |||||
प्रक्री | * | |||||
वचसा | * | |||||
अभ्रिखाते | * |
अन्य जातियां :- 2
Name | Bhav Parkash | Chandu | Karm | Bhav Parkash |
पारसीक वचा | * | वातनाशक | * | |
शुक्लवचा | * | |||
हेमवती | * | * | ||
शुक्ला | * | * | ||
तीक्ष्णगंधा | * | * | ||
उष्ण | * | * | ||
रक्षोहणी | * | * | ||
लोमशाह्वाया | * | * |
Name | Bhav Parkash |
महामरीवचा | * |
कुलिंजन | * |
सुगंध | * |
बाह्य – स्वरूप :-
- घोड़ा वचा : 2-5 फीट ऊंचे कोमल क्षुप, जलाशय के आस-पास तथा दलदली ज़मीन पर उगते हैं। पत्तियां-इख़ की भांति अधिवत 2-4 फुट तक लंबी, आधा-एक इंच तक चौड़ी, तथा किनारे किंचित लहरदार। पुष्प= छोटे-छोटे, श्वेत, सघन स्थितफल- अनेक बीजों व छोटे-छोटे मांसल बेरी युक्त मूलस्तंभ- अदरक की भांति भूमि में फैलता है और मध्यमा अंगुली के समान स्थूल 5-6 पर्व वाला, खुरदरा, झुर्रिदार, सुगंधित, रोमश आदि भूरे वर्ण का;
- बाल वचा : कांड= एक से डेढ़ फुट तक ऊंचा, प्रायः शाखा रहित पत्तियां= 4-9 की संख्या में, लंबे नुकीले अग्र वाली, 6 इंच लंबी बीच में एकल पुष्प वाहक दंड।
Cultivation :-
Vacha is found in Himalayas at a height of 6000 feet. Found in hills of Manipur and Nagaland.
Chemical Constituents :-
Volatile oil containing Pinin and caffeine. Also contains Calamane, calamanol, asoron and asorin (glycoside), tanin mucilage starch and calcium oxalate etc.
गुण :-
धर्मउग्र गंध, चरपरी- कटु, वामक व अग्निवर्धक है। मलमूत्र का शोधन करने वाली और मलबंधक है। अफारा, शूल, अपस्मार, कफ, उन्माद, भूत, जंतु, तथा वात को हरने वाली औषधि है। यह ज्वर घन, हृदयोत्तेजक, कंठ्य, श्वास-कास हर है। वातानुलोमक है।
Comparative review Gunn :-
Karm | भाव प्रकाश | मदनपाल | राज | कैदेव | चंदु |
तिक्त कटु | * | * | |||
उष्ण | * | * | * | * | |
कफशामक | * | ||||
वातशामक | * | ||||
कटु विपाक | * | * | |||
वातकफशामक | * | ||||
तिक्त | * | ||||
तीक्ष्ण | * | ||||
कटु | * |
औषधीय प्रयोग :-
- सुर्यावर्त = वचा (Vacha) और पीपल के चूर्ण को सुंघाने से सुर्यावर्त मिटता है। शिरशूल में पंचांग का लेप मस्तिष्क व वेदना वाले स्थान पर करने से लाभ होता है। वचा को जल में पीसकर मस्तक पर लेप करने से पीड़ा मिटती है।
- मेधा = घी या दूध या जल के साथ इसके कांड का चूर्ण का सेवन 250 मिलीग्राम की मात्रा में दिन में 2 बार 1 वर्ष तक या कम से कम 1मास तक सेवन करने से मनुष्य की स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
- गले का दर्द = इसके 500 मिलीग्राम चूर्ण को थोड़े गरम दूध में डालकर, दिन में तीन बार पिलाने से जमा हुआ कफ ढीला पड़कर निकल जाता है और गले का दर्द दूर हो जाता है।
- गलगण्ड = वचा व पीपल के चूर्ण को मधु मिलाकर सूंघने से गलगण्ड आदि रोग मिटते है।
- अपस्मार = इसका कपड़छन चूर्ण 500 मिलीग्राम से 1 ग्राम तक की मात्रा में शहद के साथ प्रातः सायं चटाने से उन्माद और अपस्मार में बहुत लाभ होता है।
• दमा = खांसी
- बच्चो की खांसी में वचा (Vacha) को दूध में पीसकर पिलाने से लाभ होता है।
- वचा (Vacha) के चूर्ण को कपड़े में रखकर सूंघने से प्रतिश्याय मिटता है।
- दमे के रोगी को पहले वचा की 2 ग्राम की मात्रा देनी चाहिए। इसके पश्चात् हर तीसरे घंटे बाद 625 ग्राम की मात्रा देनी चाहिए।
- अतिसार = इसकी जड़ को जौ में कूटकर क्वाथ बनाकर 25-35 ग्राम की मात्रा में पिलाने से आम अतिसार मिटता है।
- कृमि = इसके 2 ग्राम चूर्ण को सेकी हुई हींग में 125 मिलीग्राम के साथ खिलाने से पेट के कीड़े मर जाते है।
- अर्श = वचा, भांग और अजवायन; इन तीनों को बराबर लेकर, इनकी धूनी देने से अर्श की पीड़ा मिटती है।
- सुख प्रसव = इसको जल में घिसकर उसमें एरंड का तेल मिलाकर नाभि पर लेप करने से बच्चा सुख से उत्पन्न होता है।
- मुंह का लकवा = वचा (Vacha) का चूर्ण 625 मिलीग्राम, शुंठी चूर्ण 625 मिलीग्राम, दोनों को शहद में मिलाकर दिन में 2-3 बार चाटने से अर्दित रोग, योनि मुंह का लकवा मिटता है।
- जयपाल का विष = इसके कोयलों की 1 ग्राम भस्म को पानी में घोलकर पिलाने से जयपाल का विष शान्त हो जाता है और उपद्रव भी शान्त हो जाते है।
• ज्वर =
- वचा, हरड़ और घी का धुआं देने से विषम ज्वर में लाभ होता है।
- इसको पानी में पीसकर नाक पर लेप करने से जुखाम, खांसी और उससे पैदा होने वाला तीव्र ज्वर रुक जाता है।
# विशेष : व्यवहार में, बाह्य प्रयोग के लिए घोड़ा वच आभयंतर प्रयोग के लिए बाल वच का प्रयोग हानि – उष्ण प्रकृति वालो के लिए हानिकारक है।सिर दर्द हो जाता है।
Comparative review karm :-
Karm | भाव प्रकाश | मदनपाल | राज | कैदेव | चंदु | वेद |
वात ज्वर | * | |||||
उग्रगन्ध | * | |||||
वमनकारक | * | * | * | * | ||
अग्निजनक | * | * | * | |||
विबंध | * | * | ||||
आध्मान | * | * | ||||
शूल | * | * | * | |||
मल शोधक | * | * | ||||
मूत्र शोधक | * | * | ||||
कफ उन्माद | * | |||||
भूतबाधा | * | * | * | |||
कृमि | * | * | ||||
आम | * | * | ||||
जीवनीय | * | |||||
मेध्य | * | * | ||||
वाणि हितकर | * | * | ||||
उन्माद | * | * | * | |||
अपस्मार | * | * | * | * | ||
राक्षस | * | * | ||||
विष नाशक | * | |||||
मद कारक | * |
6 replies on “Vacha / वचा -Acorus calamus Comparative Review”
[…] बचो – वचा […]
[…] वचा = 3-5 ग्राम […]
[…] बच, राल, कुठ व घी की धूनी […]
[…] बच, आमला, ब्राह्मी, जटामांसी, दूर्वा, कड़वी तुरई, हरीतकी, भूत केशी , हल्दी, त्रिवृत, सहदेवी गले में धारण करें। […]
[…] महुआ, चव, किंशुक, वाचा, हींग को भेड़ मूत्र के साथ […]
[…] वचा (Acorus calamus) […]