AFTER READING VAIKRANT, READ PARAD.
नाम :-
संस्कृत =वैक्रान्त हिंदी =वैक्रान्त English =Tourmaline
●विशिष्ट गुरुत्व = 3-3.2
●काठिन्य = 7-7.5
Chemical formula = K2OAl2O3. 6SiO2
Synonyms / पर्याय :-
वैक्रान्त, विक्रांत, जीर्णवज्रक, कुवज्रक, क्षुद्रकुलिश एवं चूर्णवज्र।
इतिहास :-
सर्वप्रथम कौटिल्य अर्थशास्त्र में वैकृंतक धातु के नाम से इसका उल्लेख मिलता है। कौटिल्य अर्थशास्त्र के 33 वें अध्याय में सुवर्ण, रुप्य, ताम्र, सीस, त्रपु, तीक्षण एव वैकृन्तक इन सात लोहों के खनिजों का वर्णन किया गया है।
वैक्रान्त उत्पत्ति :–
रसरत्नसमुच्ययकर्ता रसवागभट्ट के अनुसार जब दुर्गा देवी ने त्रिशूल से दैतयराज महिषासुर का वध किया, तब पृथ्वी पर उसका रक्त जहां जहां पर गिरा, वहां वहां पर वैक्रान्त (Vaikrant) की उत्तपति हुई।
यह विंध्य पर्वत के दक्षिण एवं उत्तर में सर्वत्र मिलता है।
ग्राह्य वैक्रान्त का स्वरूप :-
“अष्टास्रश्चाष्टफलकः षट्कोणो मसृणो गुरुः। शदमिश्रितवर्णैश्च युक्तो वैक्रान्तमुच्यते।। (र. र. स. 2/52) “
वैक्रान्त आठ किनारे वाला, आठ फलक और छः कोणयुक्त, भारी, चिकना, शुद्ध एवं मिश्रित वर्ण से युक्त होना चाहिए।
वैक्रान्त भेद :-
S no. | रसार्णव एवं रसमञ्जरी ग्रन्थ | रसरत्नसमुच्चयकार |
1) | श्वेत | श्वेत |
2) | रक्त | रक्त |
3) | पीत | पीत |
4) | नील | नील |
5) | पारावतप्रभ | पारावतप्रभ |
6) | श्याम | श्याम |
7) | कृष्ण | कृष्ण |
8) | – | कर्बुर |
उपयोग :–
- ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए वैक्रान्त (Vaikrant) का धारण किया जाता है।
- औषधि रूप में हीरा के अभाव में वैक्रान्त का उपयोग बताया गया है।
- धातुयुक्त खनिज से धातुओं को पृथक् करने में वैक्रान्त का उपयोग किया जाता है।
वैक्रान्त शोधन की आवश्यकता :-
अशुद्ध वज्र एवं वैक्रान्त (Vaikrant) का सेवन करने पर किलास ,कुष्ठ, दाह, सन्ताप, पार्श्व पीड़ा एवं पाण्डु रोग को उत्पन्न करता है।
अतः शोधन करने के पश्चात् ही इसका मारण करना चाहिए।
वैक्रान्त शोधन :-
इसको प्रतप्त करके 21 बार अश्वमूत्र में बुझाने से वैक्रान्त शुद्ध हो जाता है।
वैक्रान्त मारण :-
शुद्ध वैक्रान्त व शुद्ध गन्धक दोनों को समान मात्रा में खल्व यन्त्र में डालकर नींबू स्वरस की भावना से घोटकर आठ गजपुट देने पर रक्ताभ भस्म हो जाती है।
शुद्ध वैक्रान्त को प्राप्त करके बार-बार अश्वमूत्र में बुझाये। तत्पश्चात् अश्वमूत्र की ही भावना देकर भस्म होने तक पुट देते रहें। इस भस्म को वज्रभस्म के अभाव में उपयोग करें।
वैक्रान्त भस्म के गुण :-
👉आयुबलवर्धक, 👉वर्णबुद्धिवर्धक, 👉अत्यन्त वृष्य, 👉 त्रिदोष से उत्पन्न सर्वव्याधिनाशक, 👉जठराग्निप्रदीपक, 👉हीरे के समान गुणवाली, तथा 👉शरीर को लौह के समान दृढ़ करने वाली होती है।
सभी रसायनों में अग्रणी, प्रभावशाली, सर्वदोषशामक, वज्र भस्म के स्थान पर प्रयोग करने योग्य होती है। यह सदृश देहसिद्धि एवं लौहसिद्धिदायक, विष, ज्वर, कुष्ठ, क्षयनाशक एवं सम्पूर्ण रसों में श्रेष्ठ है।
वैक्रान्त भस्म मात्रा :-
◆1/24 रत्ती (5mg) to 1/11 रत्ती (10mg) रोगी के बल एवं काल के अनुसार करना चाहिए।
वैक्रान्त सत्वपातन :-
★शुद्ध वैक्रान्त को गुड़, गुग्गुलु, गुञ्जा, घृत, मधु एवं टंकण (सत्वपात्तन वर्ग ) के साथ मर्दन करके टिकिया बना मूषा में रखकर तीन घण्टे तक धमन करने पर वैक्रान्त का सत्त्व निकल जाता है।
वैक्रान्त के प्रमुख योग :-
- रत्नगिरी रस
- सुचिकाभरण रस
- रत्नप्रभावटी
- नवरत्नराजमृगाङ्क रस
- अपूर्वमालिनी बसन्त
- काञ्चनाभ्र रस
5 replies on “Vaikrant / वैक्रान्त – Tourmaline : Maha Ras”
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