वरानिम्बार्जुनाश्वत्थखदिरासनवासकैः । चूर्णितैर्गुग्गुलुसमैर्वटका अक्षसंमिताः ॥ कर्त्तव्या नाशयन्त्याशु सर्वाल्लिङ्गसमुत्थितान् । उपदंशानसृग्दोषांस्तथा दुष्टव्रणानपि।। ( भाव प्रकाश मध्यम उपदंश 41/36-37 )
सामग्री :-
- हरड़ (Terminalia chebula)
- बहेड़ा (Terminalia bellirica)
- आंवला (Phyllanthus emblica)
- नीम (Azadirachta indica)
- अर्जुन (Terminalia arjuna)
- खदिर (Acacia catechu)
- पीपल की छाल (Ficus religiosa)
- विजयसार (Pterocarpus marsupium)
- अडूसा/ वासा (Adhatoda vasica)
- शुद्ध गुग्गुलु (Commiphora wightii)
विधि-
हरड़, बहेड़ा, आंवला, नीम, अर्जुन, खदिर, पीपल की छाल, विजयसार, अडूसा- इन सभी द्रव्यों को सम भाग लेकर कपड़छन चूर्ण कर लें। अब इन सबके बराबर शुद्ध गुग्गुलु कूट लें व सबको मिश्रण कर लें। इस मिश्रण में थोड़ा-थोड़ा घी मिलाकर कूट लें व 8-8 रत्ती (1000 mg) की गोलियां बना लें।
◾मात्रा व अनुपान- 3-5 गोली सुबह-शाम घृत अथवा मधु के साथ लेें।
उपयोग-
- इस गुग्गुलु के सेवन से लिङ्ग (Penis) में उत्पन्न सभी प्रकार के उपदंश नष्ट हो जाते हैं।
- रक्त दोष व दुष्ट व्रणों में इसके सेवन से विशेष लाभ होता है।