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Agad Tantra

Vish/Poision Nashak Mantra ( विष नाशक मंत्र )

विष नाशक मंत्र व आयुर्वेद में वर्णन :-

चरक संहिता के 23 वे विष चिकित्सा अध्याय में 24 उपकर्म ( चिकित्सा के साधन ) का वर्णन करते वक्त आचार्य ने सर्व प्रथम मंत्र का उपदेश दिया है और बताया है कि मंत्र का प्रभाव अविचार्निय है और सबसे अच्छा है( मंत्र प्रभाव से काम करता है ) मंत्र की साधना के विषय में वर्णन किया है परंतु मंत्र का वर्णन प्राप्त नहीं होता। आज हम इसका वर्णन रावण संहिता के अनुसार करेगे क्योंकि उसमे मंत्र के विषय में वर्णन मिलता है।

देवब्रह्मर्षिभिः प्रोक्ता मन्त्राः सत्यतपोमयाः। भवन्ति नान्यथा क्षिप्रं विषं हन्युः शुदुस्तरम् |। ( Su. Kl. 5/1-10)

आचार्य सुश्रुत कहते हैं कि किसी सत्यवादी, तपस्वी, ज्ञानी, या ब्रह्मऋषि द्वारा कहे गये मन्त्र कभी व्यर्थ नहीं जाते। ये मन्त्र भयानक से भयानक विष को भी नष्ट कर देते हैं।

Mantra
मंत्र 1 :-

ॐ नमो भगवति वज्रमये हनहन ॐ भक्ष भक्ष ॐ खादय खादय ॐ अरिरक्तं पिब कपालेन रक्ताक्षि रक्तपटे भस्माङ्गि भस्मलिप्तशरीरे वद्रायुथे वज्रकराञ्चिते पूर्व दिशं बन्ध बन्थ ॐ दक्षिणां दिशं बन्धवन्य ॐ पश्चिमो दिशं बन्ध-बन्थ ॐ उत्तरा दिशं बन्धबन्ध ॐनागान् बन्धबन्ध्सॐ नागपतलीं बन्यबन्य ॐ असुरान् बन्धबन्ध ॐ यक्षराक्षसपिशाचान् बन्धबन्ध ॐ प्रेतभूतगन्यावदयो ये केचिदुपद्रवास्तेभ्यो रक्षरक्ष ॐ ऊर्ध्वं रक्षरक्ष ॐ अधो रक्षरक्ष ॐ क्षुरिके बन्धबन्ध ॐ ज्वल महाबले घटघट ॐ मोदिमोदि सटावलि वज्राङ्गि व्रप्रकारे हुं फट् ह्रीं ह्रीं श्रीं फूं फें फः सर्वग्रहेभ्यः सर्वव्याधिभ्यः सर्वदुष्टोपद्रवेभ्यो ह्रीं अशेषेभ्यो रक्षरक्ष विषं नाशय अमुकस्य सर्वाङ्गानि रक्षरक्ष हुं फट् स्वाहा। इति मन्त्रः ।

जल को 3 बार इस मंत्र से अभिमत्रित करके पिलाने से विष उतर जाता है।

– रावण संहिता

मंत्र 2 :-

ॐ हुं सूं ॐ नालकान्तिदंष्ट्रिणि भीमलोचने उग्ररूपे उग्रतारिणि छिलि किलि रक्त लोचने किलि किलि घोरनिःस्वने कुलु कुलु ॐ तडिज्जिह्वे निर्मासे जटामुण्डे कट कट हन महोज्ज्वले चिलिचिलि मुण्डमालाधारिणि स्फोटय मारय मारय स्थावरं विषं जङ्गमं विषं नाशय नाशय ॐ महारौद्रि पाषाणमयि विषनाशिनी वनवासिनी पर्वतविचारिणि कह कह ॐ हस नम नम दह दह क्रुध क्रुध ॐ नीलजीमूतवणे विस्फुर ॐ घण्टानादिनि ललज्जिह्वे महाकाये धुं हुं आकर्ष आकर्ष विषं धून धून हेहर यं ज्वालामुखि वज्रिणि महकाये अमुकस्य स्थावरजङ्गमविषं छिन्दि छिन्दि किटि किटि सर्वविषनिवानिणि हुं फट्।

पहाड़ के एक नीले रंग के पत्थर को लेकर उसे इस मंत्र से अभिमंत्रित करके काटे हुए स्थान पर चिपका दे और फिर से मंत्र पढ़े, जब तक विष का प्रभाव रहेगा तब तक यह पत्थर वहा पर चिपका रहेगा और एक बार प्रभाव खतम होजाएगा तब यह खुद बा खुद उतर जाएगा।

– रावण संहिता

मंत्र सिद्धि के विषय में विचार :-

मंत्रों के उपयोग से विष अन्य औषधियों की तुलना में बहुत जल्दी समाप्त हो जाता है। मंत्र चिकित्सा का अभ्यास उस व्यक्ति द्वारा किया जाना चाहिए जो महिलाओं, मांस और शराब से दूर रहता है। उस व्यक्ति को थोड़ा आहार लेना चाहिए, शरीर की स्वच्छता बनाए रखना चाहिए और कुसा घास से बने बिछौने पर सोना चाहिए। जप, होम एवं बलि दे कर मन्त्र सिद्ध करने चाहिए। अरिष्टा के साथ मंत्र का उपयोग करके विष का फैलाव अवरुद्ध हो जाता है और रोगी का जीवन बचाया जा सकता है।