प्राणवह स्त्रोतस की व्याधि:-
राजा की क्षत पर वार होने से शोष रोग हुआ और प्राण निकल गए।
(हिक्का ,कास, श्वास)
राजा – रज्यक्षमा
क्षत – क्षतक्षीण
शोष – शोष रोग
प्राण – प्राणवह स्त्रोतस
उदकवह स्त्रोतस की व्याधि:-
उदर जाकर कृष्णा ने सूचिका पत्र में लिखे सार को प्रवाहित कर दिया।
उदर – उदकवह स्त्रोतस
कृष्णा – तृष्णा
सूचिका – विसुचिका
सार – अतिसार
प्रवाहित – प्रवाहिका
अन्नवह स्त्रोतस की व्याधि :-
अग्निमंद और अजीर्णता के कारण रुचि नाह होते हुए भी अमल गुड को उदर में ग्रहण किरके परिमाण वश अन्न की उलटी हुई।
अग्निमंद – अग्निमंद
अजीर्णता – अजीर्ण
रुचि – अरुचि
नाह – अनाह,अध्यमान,आटोप
अमल – अम्लपित्त
गुड – गुल्म रोग
उदर – उदर रोग
ग्रहण – ग्रहणी
परिमाण – परिमाणशूल
अन्न – अन्नवह स्त्रोतस
उलटी – वमन
रसवह स्त्रोतस की व्याधि :-
रसीली मत्यसिका ने अपने शोक के लिए हृदय को प्रिय लगने वाले पांडु के मन में आम लोगो के लिए ज्वलन पैदा करदी।
रसीली – रसवह स्त्रोतस
मत्यसिका – मदात्यय
शोक – शोथ रोग
हृदय – हृदय रोग
पांडु – पांडु रोग
आम – आमवात
ज्वलन – ज्वर
रक्तवह स्रोतस की व्याधि :-
कुंभ के मेले में सर्प को कुथ कर उनका रक्त बहाकर उनकी लाशे सर्वत्र ( सारी जगह) बिछा कर उनकी दाह पर शीत चिकित्सा दी।
कुंभ – कामला ( हलीमक)
सर्प – विसर्प
कुथ – कुष्ठ
रक्त – रक्तपित्त व वातरक्त
सर्वत्र ( सारी जगह) – शिवत्र (किलास)
दाह – दाह रोग
शीत – शीतपित्त
मांसवह स्त्रोतस की व्याधि :-
अब ग्रंथि ( गाठ) मास में बनती है।
अब – अर्बूद्ध रोग
ग्रंथि – ग्रंथि रोग
मास – मांसवह स्त्रोतस
मेदोवह स्त्रोतस की व्याधि :-
परंतु सथोल्यता ( मोटापा) व कृष्ता ( कमजोरी) मेद की वजह से होते है।
परंतु – प्रमेह
स्थोल्यथा – स्थोल्य
कृष्ता – कृष्ता
मेद – मेदोवह स्त्रोतस
शुक्रवह स्त्रोतस की व्याधि :-
कल ध्वज फहराकर फिरंगियों को बंधन से मुक्त कर देंगे।
कल – कलैब्य
ध्वज – ध्वजभंग ( उपदंश )
फिरंगियों – फिरंग रोग
बंधन – बंहयता
मूत्रवह स्त्रोतस की व्याधि :-
मूत्रवह स्त्रोतस में आघात होने से कृच्छता हुई ।
मुत्रवह – मूत्रवह स्त्रोतस
आघात – मुत्राघात
कृच्छाता – मुत्रकृच्छ
पुरीषवह स्त्रोतस की व्याधि :-
अर्शकल्प से करो पुरीष के कृमि को अलविदा।
अर्श – अर्श रोग
पुरीष – पुरीषवह स्त्रोतस
कृमि – कृमि रोग
अलविदा – अलसक व विलंबिका
स्वेदवह स्त्रोतस की व्याधि :-
खाली – पीली पसीने आरहे है।
खाली – खालित्य
पीली – पलित्य
पसीने – स्वेदवह स्त्रोतस
मनोवह स्त्रोतस की व्याधि :-
ऊपर जाकर विषैले मद का सेवन करने से भ्रम और मूर्च्छा हुई फिर निद्रा में भूत को देखकर वह पागल ( उन्माद) सन्यासी बन गया।
ऊपर – अपस्मार
विषैले – विषाद रोग
मद – मद रोग
भ्रम – भ्रम रोग
मूर्च्छा – मूर्च्छा रोग
निद्रा – अनिद्रा रोग
भूत – भूतोउन्माद
उन्माद – उन्माद
सन्यासी – सन्यास ( अतत्वाभिनीवेश)
उपसर्गजन्य व्याधि :-
स्नायु की शाली के रोम – रोम में मस्से है।
स्नायु – स्नायुक
शाली – श्लीपद
रोम – रोमान्तिका
मस्से – मसुरिका
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