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Swasthavrit Yoga

Surya Namaskar (सूर्य नमस्कार) – Sun Salutation

“तं विद्यात् दुःख संयोगो वियोगं योग संजितम्। ” (भगवद्गीता) 6/23।। सभी प्रकार के (शारीरिक एवं मानसिक) वेदना के सम्बन्ध से विमुक्त होना ही योग कहलाता है। ◆ जब पुरुष अपने मन, बुद्धि , इन्द्रियों की चंचलता को स्थिर कर लेता है, तब वह व्यक्ति इस संसार के व्यामोह से उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार के […]

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Swasthavrit Yoga

Bhujangasana (भुजंगासन / सर्पासन ) -Cobra pose

फन उठाये हुए कृष्णसर्प के समान आकृति बनने से इसे भुजङ्गासन या सर्पासन कहा गया है। स्थिति- अधोमुख तानासन। विधि :– 1.पेट के बल लेट कर, हाथ और पैर लम्बे करके जमीन पर टिका हुये रहे। 2. पश्चात् दोनों हाथों की कुहनियाँ को मोड़कर अंगुलियों को कन्धे के पास रखें। 3 .धीरे-धीरे ठुड्डी को ऊपर उठाते […]

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Swasthavrit Yoga

Gomukhasana ( गोमुखासन )- Cow’s Face Pose

इस आसन में आसनाभ्यासी का शरीर गाय मुख सदृश लगने लगता है अत: इसको गोमुखासन (Cow’s face posture) कहते हैं। विधि :- ★दोनों पैरों को सामने की तरफ फैला कर बैठ जाते हैं फिर बायें पैर को मोड़कर इस प्रकार रखते हैं कि बायें पैर की ऐडी दायीं नितम्ब के नीचे आ जाय। ★ पुनः […]

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Swasthavrit Yoga

Matsyasna ( मतस्यासन् ) – Fish Pose, its indications

◆शरीर मछली की भाँति जल में तैरने से ही इसे मत्स्यासन कहा गया है। स्थिति – उत्तान तानासन। विधि ;– 1, उतान ताड़ासन की स्थिति से। 2. दाहिने पैर को बायीं जाँघ पर और बाएँ पैर को दाहिनी जाँघ पर रखें इस प्रकार यहाँ पद्मासन जैसी स्थिति बन जाती है। 3 .दोनों हाथों से सहारा […]

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Charak Samhita

जनपदोद्ध्वंसनीय / Janpadodvansniya Charak samhita – Viman sthan

जनपदोद्ध्वंसनीय अध्याय:- एक बार भगवान् पुनर्वसु शिष्यों सहित जनपद मण्डल के पाञ्चालक्षेत्र में श्रेष्ठ द्विजातियों (ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य) की आवासनगरी काम्पिल्य नामक राजधानी में गंगातटवर्ती वन्यप्रदेशों में घूमते हुए आषाढ़ मास में अपने शिष्य अग्निवेश से कहने लगे :- महामारी फैलने से पहले औषधियों का संग्रह करने का निर्देश :- अस्वाभाविक रूप में स्थित नक्षत्र, ग्रह, चंद्रमा, […]

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Yog ( Formulations )

Eladi Churna (एलादि चूर्ण) : Medicine, विधि व उपयोग

एलात्वक्पत्र नागामरिचमगधजानागरं कुन्दुरुष्कं तक्कोलं कोष्ठजातीफलममृतलतासारभूनिम्बवासाः। यष्टिद्राक्षाकचोरं मलयजखदिरं क्षीरवारं प्रियंगुः ह्रीबेरं धान्यजातीशतकुसुमवचाभाङ्गिमुस्ताश्च तिक्तम्॥ सर्वं सम्यक्सुचूर्णं समसितसहितं श्लेष्मपित्तज्वरनं पित्तं वै पाण्डुरोगान् क्षयमदगुदजारोचकागुल्मजीर्णम्। हन्तिश्वासादिहिक्काज्वरजठरमहाकासहद्रोगनाशं एलाद्यं योगराजं सकलजनहितं भाषितं पूज्यपादैः॥ ( बसवराजीयम् 1 प्रकरणम् ) द्रव्य :- एला, त्वक्, पत्र, नागकेशर, मरिच, पिप्पली,‌ शुण्ठी, कुंदरु, कङ्कोल, कुष्ठ, जातीजल, गुडूची सत्व, भूनिंब, वासा, मधुयष्टि, द्राक्षा, कर्चुर, श्वेत चंदन, खादिर, क्षीरवार, […]

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Yog ( Formulations )

Jawar Bhairav Churna (ज्वरभैरव चूर्ण) : Medicine

नागरं त्रायमाणा च पिचुमन्दं दुरालभा। पथ्या मुस्ता वचा दारु व्याघ्री शृङ्गी शतावरी। पर्पटं पिप्पलीमूलं विशाला पुष्करं शटी। मूर्वा कृष्णा हरिद्रे द्वे लोने चन्दनमुत्पलम्। कुटजस्य परं वल्कं यष्टीमधुकचित्रकम्। शोभाञ्जनं बलाचातिविषा च कटुरोहिणी। मुसली पद्मकाष्ठं च यवानी शालपर्णिका। मरिचं चामृता बिल्वं बालं पङ्कस्य पर्पटी। तेज:पत्रं त्वचं धात्री पृश्निपर्णी पटोलकम्। गन्धकं पारदं लोहमभ्रकं च मनश्शिला। एतेषां समभागेन चूर्णमेवं […]

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Yog ( Formulations )

Raktvatari Leh (रक्तवातारी लेह) : Medicine

रक्तवातारिमूलत्वक्सहस्त्रपलमानकम्। कुण्डलीदहनं व्योषा करञ्जमरिमेदकम् खट्ववृक्षकणामूलं वारुणं जलवृक्षकम्। तापनं ध्रुवमूलं च द्रव्याण्येतानि निक्षिपेत्। द्रोणे चतुष्टके तोये पाचयेगाढवह्निना। तस्मिन्मधुगुलैस्तुल्यैः पचेत्सूक्ष्माग्निना पुनः। कणमूलमजामोदं पिप्पलीचव्यनागरम्। दीप्यचित्रककुष्टं च नागरं गजपिप्पली। व्रणदारुविडङ्गानिचूर्णमेषां समांशकम्। दीपाग्निना पचेत्तस्मिन् क्षिप्त्वा मधुसमन्वितम्। पूर्ववद्धान्यमध्ये तु पुटं दद्याथ भक्षयेत्। कर्षमात्र प्रमाणेन ज्वरं सर्वाणि दाहजित्। गार्गेयनिर्मितं वालावडः स्याल्लेह्यमुत्तमम्॥ ( बसवरजीयम् 1 ) Ingredients :- रक्तवातारि त्वक ( 100 पल […]

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Astang Hridya Charak Samhita Sushrut Samhita Swasthavrit

Ritucharya / ऋतुचर्या : Science of Seasonal Habits for Well Being

प्रस्तुति : कालो हि नाम भगवान् स्वयम् भूरनादिमध्यनिधनोऽत्र।।। काल को भगवान कहा जाता है, जो किसी से उत्पन्न ना हो। काल आदि, मध्य और अंत रहित है।  काल विभाजन  काल विभाग इस प्रकार है- अक्षिनिमेष-1 मात्रा 15 मात्रा-1 काष्ठा 30 काष्ठा-1 कला 2 नाड़ीका-1 मुहूर्त 4 याम-1 दिन 4 याम-1 रात 15 दिन रात-1 पक्ष […]

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Swasthavrit

Madhay, Sandhya, Ratri Charya ( मध्य, संध्या, रात्रि चर्या )

मध्याह्न चर्या इष्ट प्रियजनों , शिष्ट, सभ्य जनों के साथ, त्रिगुन युक्त कथाओं, जिसमें धर्म, अर्थ एवं काम का वर्णन किया गया है उन ग्रन्थों को पढ़ते दिन के मध्याहन को व्यतीत करना चाहिए। इसके साथ सद्वृत के साथ  वर्णन किया गया कि सामाजिक एवं व्यवहारिक नियमों का श्रद्धापूर्वक पालन करना चाहिए। हिंसा, चोरी, अन्यथा […]