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मञ्जिष्ठा मधुकं लाक्षा मातुलुङ्गश्च यष्टिका। कर्षप्रमाणैरेतैस्तु तैलस्य कुडवं तथा।।आज पयस्तु द्विगुणं शनैर्मद्ग्निना पचेत्। नीलिकापिटिकाव्यङ्गानभ्यङ्गादेव नाशयेत्॥ मुखं प्रसादोपचितं वलीपलितवर्जितम्। सप्तरात्रप्रयोगेण भवेत्कनकसन्निभम्।।
Ingredients :- मांजिष्ठा, मुलेठी, मातुलुङ्ग, यष्टिका (प्रत्येक द्रव्य एक कलक)
द्रव द्रव्य :- तिल का तैल ( 1 कुडव ), बकरी का दूध 2 कुडव
Vidhi :- उपयुक्त द्रव्यो को लेकर तैल कल्पना विधि से सिद्ध तैल बनाएं और फिर उपयोग में लेे।
उपयोग / Upyog :-
- नीलिका, पिटिका, व्यंङ्ग, न्यच्छ, विभिन्न तव्चा विकार में लेप कर उपयोग।
- इसको मुख पर लगाने से मुख प्रसादोपचित सिद्ध होता है, निरंतर बालों पर लगने से वली, पलित में लाभ होता है।
- एक सप्ताह उपयोग करने से देह को स्वर्ण के सामन आभा, कांति वाला कर देता है।
न्यच्छ के लक्ष्ण :- मनुष्य के शरीर में बड़े या छोटे, श्याम या कृष्ण वर्ण के उत्पन्न पीड़ा रहित मंडल को न्याच्छ कहते है।
मञ्जिष्ठादि तैल ( द्वितीय ):-
न्यग्रोधोदुम्बराश्वत्थप्लक्षा: कपितनस्तथा। त्वचानां षोडशपलं मूलचूर्णं प्रकल्पयेत्॥ द्विरष्टगुणितैस्तोयैः पाचयेत्पादशेषकम्। कषायांशं गवां क्षीरं क्षीरार्धं तिलतैलकम्॥ मञ्जिष्ठाद्विनिशालोधतुवरीतालकं शिला। लाक्षा गोरोचना कुष्ठं कुङ्कम रजनीद्वयम्॥ गैरिकं सिक्थकं तुत्थवटमर्जुनवृक्षकम्। नागकेसरकालीयपद्मबीजं च केसरम्॥ पारदं गन्धकं पत्रं त्वचं च प्रतिकार्षिकम्। सर्वं पाच्यं तैलशेषं म्रक्षणाद्वयङ्गकापहम्। ( सिद्धरसार्णवे )
Ingredients :-
पञ्चवल्कल का चूर्ण 24 पल, गोदुध ( कवाथ के बराबर ), तिल तैल ( कवाथ से आधा ), मंजिस्था, हरिद्रा, दारू हरिद्रा, लोध्र, तुवरी, हरिताल, मन: शिला, लाक्षा, गरोचन, कुष्ठ, कुमकुम, रजनी दोनों, तुत्थ, वट, अर्जुन, सिकथक, गेरीक, नाग केसर, कालीयक, पद्मबीज, केसर, पारद, गंधक, तेजपत्र, त्वच ( दारुसिता ) प्रत्येक द्रव्य एक कर्ष
Vidhi :-
- पञ्चवल्कल वृक्ष की तवाचा का चूर्ण 16 पल को 24 गुणा जल में क्वाथ बना ले।
- उसके बाद में तैल कलपना के अनुसार तैल बनाएं और तैल को सिद्ध करके उपयोग में ले।
उपयोग :- मुख की कांति बढ़ता है, एक सप्ताह उपयोग करने से मुख को चन्द्र के समान बना देता है।
Reference :- बसवराजीयम् 22 प्रकरणम्