वैरोधिक आहार (Virodhik Ahaar) आचार्य चरक ने सूत्र स्थान के 25वे अध्याय (यज्ज: पुरूषीय अध्याय) में संभाशा परिषद् में 18 प्रकार का बताया है। इनके विरूद्ध होने पर खाना, शरीर के लिए अहितकर होता है ।
पथ्य पथोऽनपेत यद्यच्चोक्तं मनसः प्रियम् । यच्चाप्रियमपथ्यं च नियतं तत्र लक्षयेत् ॥ ४५ ॥
मात्राकालक्रियाभूमिदेहदोषगुणान्तरम् । प्राप्य तत्तद्धि दृश्यन्ते ते ते भावास्तया तया॥४६॥
तस्मात् स्वभावो निर्दिष्टस्तथा मात्रादिराश्रयः । तदपेक्ष्योभयं कर्म प्रयोज्य सिद्धिमिच्छता ।। (चरक सुत्रस्थान 26/45-46)
सातम्य पुरुष देश काल कि अवस्था के अनुसार हृद्या को प्रिय लगने वाली संस्कारी परि के साथ विधि अनुसार मात्रा में दोष ( दूषित) वीर्य का संयोग करता है फिर उसकी पाक कोष्ठ अग्नि का कर्मानुसार उपचार करके कार्य संपन करता है ।
सातम्य – सातम्य
देश – देश
काल – काल
अवस्था – अवस्था
हृद्या – हृद्या विरूद्ध
संस्कारी – संस्कार
परि – परिहार
विधि – विधि विरूद्ध
मात्रा – मात्रा
दोष ( दूषित) – वायु आदि दोष
वीर्य – वीर्य
संयोग – संयोग विरूद्ध
पाक – पाक
कोष्ठ – कोष्ठ
अग्नि – अग्नि
कर्मानुसार – कर्म
उपचार – उपचार
संपन – संपद विरूद्ध
4 replies on “Virodhik Ahaar ( वैरोधिक आहार ) with Trick to Learn”
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