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रसेन्द्रगन्यं सहटङ्कणेन समं विषं योज्यमिदं त्रिभागम्।
कपर्दिशकावपि च त्रिभागौ मरीचचूर्णाष्टगुणं विदध्यात्॥
सुपक्वजम्बीररसन घृष्टः शुद्धो भवेदग्निकुमार एषः।
विषूचिकारोचकसन्निपाते देयं द्धिगुझं यदिवाप्यजीर्णे॥
श्रीपर्णखण्डेन यथाबल च शीतं जलं चानु पिबेत्परन्तु॥
Ingredients :-
- पारद ( 1 भाग )
- गंधक ( 1 भाग )
- टंकण भस्म ( 1 भाग )
- वत्सनाभ ( 3 भाग )
- कपर्द भस्म ( 1 भाग )
- शंख ( 8 भाग )
- मरिच ( 8 भाग )
भावना द्रव्य / Bhawna dravya :-
जम्बीर स्वरस
विधि / Vidhi :-
सभी द्रव्यों को लेकर चूर्ण करके, उसके बाद में भावना द्रव्य देकर मर्दन करें।
मात्रा / Dosage :-
2 गूंजा (250 mg) पान के बीच में रखकर सेवन करें। उसके बाद में शीतल जल ( रोगी के बल का विचार करके उपयोग करें )।
उपयोग / Usage :-
विसूचिका, अरोचक, अजीर्ण, सन्निपातज रोग
Reference :-
बसवराजीयम् ( प्रथम प्रकरणम् ), भेष्जय रत्नावली अग्निमंद (10-115/116), रसेंद्र सारसंग्रह