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नीलीमूलकषाये तु बीजं खदिरसारजम्। नीलीमूलाञ्जनं कल्कं यष्टी मधुकमेव च॥ मार्कवस्वरसप्रस्थं तैलप्रस्थं विपाचयेत्। अनेन लिप्ता: केशा: स्युः मृदवः षट्पदैः समाः ॥ इन्द्रलुप्तहरं चैव पालित्यं चैव नाशयेत्। तैलं रहस्यं परमं वलीपलितनाशनम् (पून्यादीय बृहतीफलसंयुक्तं गुञ्जामूलफलं तथा तल्लेपे नश्यति क्षिप्रमिन्द्रलुप्तमनेकधा॥
Ingredients :- भृंगराज मूल, खदिर सारज बीज, भृंगराज अञ्ज्जन, मुलेठी।
Drav Dravaya :- भृंगराज स्वरस ( एक प्रस्थ ), तिल तैल ( एक प्रस्थ )।
Vidhi :- उपर्युक्त द्रव्यों को लेकर क्षीर तैल पाक विधि के अनुसार तैल बनाएं और सिद्ध करें, सिद्ध करने के पश्चात् उपयोग करें।
Upyog :- इस औषधीय तैल के उपयोग करने से बाल षटपद के समान मृदु हो जाते है। इन्द्र लुप्त व पालित्य में लाभ होता है। इस तैल का रहस्य से प्रभवक है, यह वली व पालित का विशेष तौर से परम गुणकारी है।
Upyog vidhi :- बालों पर मर्दन करें।
भृंगराज तैल ( द्वितीय ) :-
भृङ्गराजरसेनैव लोहकिट्टं फलत्रिकम्। शारिवां च पचेत्कल्के तैलं दारुणनाशनम्। अकालपलितं कण्डूमिन्द्रलुप्तं च नाशयति। ॥
भृंगराज स्वरस में मंडूर, त्रिफला, शारिवा का कल्क तिल तैल में यथा विधि पाक करे।
उपयोग :- बालों पर लगाने से पालित, कण्डु, इन्द्रलुप्त का नाश होता है।
Reference :- बसवराजीयम् 22 प्रकरणम्, माधव निदान
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