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Kumar Bhritya

Dhoopan Karma ( धूपन कर्म) – Ayurvedic Air Disinfectant

धूप की उत्पति :-

जब उत्पन्न हुए ऋषियों के पुत्रों को राक्षसों ने सताना प्रारंभ किया तब होम, जाप एवं तप से युक्त हुए सब महर्षि अग्नि देवता के शरण में पहुंचे। इससे प्रसन्न होकर अग्नि ने कहा- मेरे द्वारा अर्पित किये गये इन धूपों का तुम ग्रहण करो तथा प्रयोग करो । इससे तुम्हें राक्षस, भूत, पिशाच, आदि किसी का भय नहीं रहेगा। उत्पत्र हुए बालकों में बढ़ते हुए रोगों में धात्री को इन धूपों का प्रयोग कराना चाहिये। उपर्युक्त धूप को ग्रहण (Dhoopan karma) करने के लिए भगवान काश्यप को अपना प्रतिनिधि बनाकर अग्नि देवता से धूप ग्रहण (करने भेजा ओर इस प्रकार उन्होंने बालकों की रक्षा सब भूतो से करी, व उन्हें बढ़ाया और रोग मुक्त किया।

धूप के भेद :-

आश्रय भेद से 2 प्रकार की होती है –

  1. स्थावर
  2. जांगाम

कर्म भेद से –

  1. धूप
  2. अनुधूप
  3. प्रतुधूप
Dhoopan karm

धूपन द्रव्य लाने की विधि :-

सर्वप्रथम वैद्य को चाहिये कि वह अच्छे प्रकार उपवास कर स्नान से पवित्र होकर मैत्र, आग्नेय तथा उत्तर दिशा में से पुष्य नक्षत्र में धूप के द्रव्यों को उखाड़ कर लाये। तथा स्वस्तिवाचन, एवं बलिकर्म करके और मन के अनुकूल शब्दों को सुनकर पवित्र हुई चार कन्याएँ प्रमादरहित होकर उस धूप को कूटकर नवीन पात्र में डालकर अच्छे प्रकार ढककर सुरक्षित स्थान पर रख दे तथा आवश्यकता होने पर इसका प्रयोग करें। यदि उसी समय उसका (Dhoopan karma) प्रयोग करना हो तो भी अच्छी तरह संभालकर उसका शीघ्र ही प्रयोग किया जा सकता है । इस पूर्वकल्पित (पहले से तैयार किये हुए) धूप से निश्चित रूप से सिद्धि होती है ।

धूपन विधि :-

धूप जलाकर निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए –

अग्निस्त्वा घूपयतु, ब्रह्मा त्वा घूपयतु, शिवस्त्वा घूपयतु, वसवस्त्वा धूपयन्तु, रुद्रम्त्वा घूपयतु, देत्यस्त्वा धूपयतु, मरुतस्त्वा धूपयन्तु, साध्यस्त्वा घूपयतु, देवा ऋभवस्त्वा घूपयन्तु, विश्वे त्वा देवा धूपयन्तु, सर्वे त्वा देवा धूपयन्तु, छन्दांसि त्वा घूपयन्तु, पृथिवी त्वा धूपयतु, अन्तरिक्षं त्वा धूपयतु, द्यौस्त्वा यूपयतु, दिशस्त्वा धूपयन्तु, दिशां त्वा पतयो धूपयन्तु, देवीरापस्त्वा घूपयन्तु, शिवस्त्वा पवमानो घूपयतु, मित्रस्त्वा सविता सूर्यो घूपयतु, चन्द्रस्त्वा सोमो धूपयतु, नक्षत्राणि त्वा सुप्रजात्वाय धूपयन्तु, नक्षत्राणां त्वा देवताः सुमनसे धूपयन्तु, अहोरात्राणि त्वा शान्तये धूपयन्तु, ऋभवस्त्वा पुण्याय कर्मणे धूपयन्तु, संवत्सरास्त्वाऽऽयुषे ब्रह्मवर्चसे बलाय धूपयन्तु, प्रजापतिस्त्वा सुप्रजात्वाय धूपयतु, अश्विनौ त्वाऽऽरोग्याय दीर्घायुष्ट्वाय सहसे शेव(श्रेय)से घूपयताम्, मातरस्त्वा स्निहा धूपयन्तु, पितरस्त्वा तनोरच्छेदाय स्वधायै पूपयन्तु, कुमारस्त्वा कौमाराय वसवे धूपयतु, शाखस्त्वा यौवनाय धूपयतु, विशाखस्त्वा मध्याय वयसे यूपयतु, नैगमेषस्त्वा जरसे धूपयतु, सर्वे त्वा देवा दिव्याय धाम्ने धूपय तु, सर्वे त्वा ऋषयो ब्रह्मवर्चसाय यूपयन्तु, सर्वास्त्वा नद्यः सुपीताय धूपयन्तु, सर्वे त्वा पर्वताः स्थैर्याय धूपयन्तु, सर्वास्त्या ओषधोऽन्नाद्याय यूपयन्तु, सर्वे त्वा वनस्पतयः सुव्रतानां श्रेष्ठ्याय धूपयन्तु, सर्वे त्वा पशवः शक्त्यै शान्त्यै धूपयन्तु, सत्येन त्वा धूपयाम्यूतेन त्वा धूपयाम्यृतसत्याध्यां त्वा धूपयामि, नमो देवेभ्य इति जपेत् ।

विभिन्न धूप, द्रव्य व उपयोग :-

Dhoopan karm
नामधूप के द्रव्यउपयोग
कुमार धूपघी, राल, कृष्ण अंजन, भिलवा, सिलारस, दोनों हल्दी, लाक्षा, खस, सरसो, तुलसी के फूल, विडंग, तगार, वच, हिंग, नेत्र बालाइसके प्रयोग से बालको की वृद्धि होती है।
गण धूपघृत, चावल, चमेली के फूल, मधु, श्वेत सरसो, वचाभूतो के रोग को दूर करता है
घृत, नीम, तुलसी, कनेर के पत्ते, गो भेद व बकरी के बालसर्व रोग नाशक
अरिष्ट धूपनीम के पत्र, मूल, पुष्प, फल, तव्चासर्व रोग नाशक वो भी मात्र शन भर में
ब्रह्मा धूपघृत, श्वेत सरसो, लाजा, कुशसर्व रोगों को शीघ्र नष्ट कर देता है, वैद्य को सर्वदा हर रोग में इसका प्रयोग करना चाहिए
शिशुक धूपघृत, भतेउर, जटामासी, तगर, जल मुस्ता, हाउबेर, सॉफ, हर ताल, मन: शिला, नागर मोथा, हरेणुबीज, छोटी इलायचीसर्व रोग व ग्रह रोग नाशक रोग
पुण्यकारक धूपघृत, हाथी दांत, बकरी तथा भेड के बाल, गो के सींगपुण्य जनक के लिए उपयोग
आग्नेय धूपगो के बाल में घी मिलाकर जलानासब रोग में प्रशस्त है
महेश्वर धूपघी, गूगल, बिल्व, देवदारू, सरल देवदारु, जोग्रह रोगों को नष्ट करता है
रक्षोह्न धूपघी, श्वेत सरसो, हींग, देव निमल्या, चावल, साप की तव्चा, बौद्ध भिक्षुओं का प्राचीन वस्त्रराक्षस को नष्ट करने वाला
दशाङ्ग धूपघी, श्वेत सरसो, कुठ, भिल्वा, बच, बकरे का लोम, तगर, भोज पत्र, गूगलअपस्मार, ग्रह व उपग्रह रोगों में प्रयुक्त
वरुण धूपसरल निर्यास, लाक्षा, पद्मक, चंदन, देवदार, तुलसी, शालशकुनि, पुंडरीक, रेवती व श्लेष्मक रोगों में उपयोगी
चतुरङ्गिक धूपघृत, मज्जा,वसा, लाक्षाअल्प दोष वाले व्यक्ति, क्रिश, बालक व ग्रह विकारों में प्रयोग करना चाहिए
नंदक धूपघी, बच, भालू की विष्ता, लॉम्, प्रसह पक्षियों का पुरिष
कर्ण धूपघी, पीपली, चावल के छिलके, बंदर के बाल व त्वचा, बच, सरसो, कुष्ठ, एलाग्रह रोग नाशक
घी धूपघी, साप की त्वचा, बिल्व, सर, श्वेत सरसो, लाक्षाएश्वर्य वर्धक धूप
कुत्ते की विष्ठा तथा मूत्र, मोर के बाल, बच, घृत व सरसोग्रह रोग को नष्ट करने वाला
घी, साप की तव्चा, गिद्ध व उल्लू की विष्ठा, बच, हींगअपस्मार व ग्रह रोगों को दूर करने वाला
घी, भेड़ की सींग, घोड़े व हाथी की खुर, बंदर, शल्यक, नेवलाउत्तम धूप
घी, घोड़े गधे व ऊठ के बाल एवम् रोम, ऋषबक, 2 चतुष्पाद के नखपिशाच, यक्ष, गंधर्व, भूत, स्कन्द व कफ रोग से पीड़ित शीघ्र ही इसके उपयोग से रोग मुक्त होते है
घी, श्वेत सरसो, चोरक, गूगल, वराही कंद व जटामासीसबको मोहित करने वाला है
घी, श्वेत सरसो, मधु, भेड़ के सींग, बकरी का दूध, गधे के मूत्र तथा बाल, कपूर या रक्त चंदनअपस्मार, ग्रह व उपग्रह नाशक है
घी, गोखुरू, वसुका, दोनों हल्दी, जल मुस्था, बच, भारंगीसुख व स्वास्थ्य वर्धक है
प्रति धूप- 2घी, बंदर के बाल, मुर्गी का अंडा, बच, जो, श्वेत सरसोमहान उदय वाला
प्रति धूप -1घी, नील कमल, खस, बालक, नाग केसर, रस
प्रति धूप -3घी, नीम के पत्र, गधे का मूत्र,बच, लाक्षा, सरसो
घी, नीम के पत्र, लाक्षा, राल, चावल, भास, उल्लू की विष्ठाअपस्मार नाशक
स्वस्तिक धूपघी, शल्लकी, चमेली तथा शिरीष के फूल , सरल निर्यास
घी, गुगल
घी, देवदार
कृष्ण अग्रू, घी
घी, सरसो
घी, पंच तृणमूल के पत्र, पुष्प, फल, तवाचा
ग्रह धूपगुगल + दशाङ्ग धूपयह कभी भी खराब नहीं होता

Reference :- का. संहिता कल्प स्थान – 1

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