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Drishtigata Roga | दृष्टिगत रोग -With easy trick to learn

Acharya Sushruta mentioned 12 disorders of Drishtigata (vision and lens) Roga, Main cause being is Abhishyanda. Which are as follows:-

Trick to learn Drishtigata Roga :-

दूरदर्शी नकुल की ह्रस्व व गंभीर दृष्टि थी।

  • दूरदर्शी – धूमदर्शी
  • नकुल – नकुलांध्य
  • ह्रस्व – हस्वजाडय
  • गंभीर – गंभारीका
  • दृष्टि – पित्त व कफ विद्ध दृष्टि (2)
  • 6 प्रकार के तिमिर

Trespassers do not disturb (DND) homes in Gurgaon

  • Trespassers – 6 types of Timira/ Linga nasha
  • Do – Dhumadarshi
  • Not – Nakulandhya
  • Disturb – 2 types of Drishti
  • Homes – Hriswajadya
  • Gurgaon – Gambhirika

Quick Revision तिमिर :-

प्रथम पटलगत तिमिर सिरा अवस्थित, सभी वस्तु अस्पष्ट और कभी बिना कारण ही स्पष्ट देखता है साध्य
राग होने पर सिरामोक्ष नहीं, जलौका प्रयोग
Refractive errors
द्वितीय पटल तिमिर न स्थित वस्तु को देखता है। पास की वस्तु भी प्रयत्न से देखता है, सुक्ष्म वस्तु नहीं दिखती, वस्तुओं को गोल देखता है। एक वस्तु को दो देखना, छोटे को बडा़, बडे़ को छोटा, नीचे होने पर समीप की चीजें नहीं दिखती, ऊपर होने पर दूर की नहीं देख पाता, पार्श्व में होने पर पार्श्व की वस्तु नहीं देख पाता। वाग्भट्ट ने इसे तिमिर संज्ञा दी है।कृच्छ्र साध्य त्रिफला घृत, पुराण घृत, पटोल, मूंग, आंवला Initial stage of Cataract
तृतीय पटलगत तिमिर ऊपर की वस्तु को देखता है, नीचे की नहीं देखता, बडी़ वस्तुओं को कपड़े से आच्छादित देखता है, नासा, कर्ण, अक्षि विपरीत रुप से देखता है। वाग्भट ने इसे कांच संज्ञा दी है, वर्ण परिवर्तण होने से कम देखता है।याप्यMature cataract
चतुर्थ पटल गत तिमिर लिंङ्ग नाश, दृष्टि पूर्ण अवरुद्ध, अंधकार नातिवृद्ध हो तो चमकीले चीजें देखता है, इसे नीलीका, कांच भी कहते है।वेधन कर्मMature cataract
वातज तिमिर टेडी मेडी देखता है। घूमती हुई, मलिन, अरुण दृष्टि। जाला, बाल मच्छर फिरते देखता है, मुख नासिका रहित, चांद, दीपक बहुत रुप से देखता। धूल से आवृत, सीधे को टेडा व टेडे को सीधा देखने में असमर्थ
पित्तज तिमिर सूर्य, जुगनू, इंद्रधनुष, मयुर पंख समान, नील, कृष्ण वस्तुऐं देखना, दृष्टि तेजरहित व स्निग्ध
कफज तिमिर चमकती हुई व श्वेत देखता है, शंख, चंद्र, कुंद के फूल व कमल से व्याप्त देखना, दृष्टि रोशनी में सिकुड जाती है
रक्तज तिमिर हरीत, श्याम, कृष्ण देखना, लाल व अंधकार दिखना
सन्निपातजपीत या अधिक अंग युक्त देखना
संसर्गजपरिम्लायि रोग, पीत देखना, सूर्य उदय हो, घूरने के समान दिखता है, मोटे कांच समान दृष्टि
कांचदृष्टि का वर्ण
वात= लाल वर्ण पित्त= पीत वर्ण
कफ= श्वेत वर्ण
रक्त= लाल वर्ण
त्रिदोषज= चित्र-विचित्र वर्ण
लिङ्गनाशदृष्टि मण्डल
वात= अरुण, चंचल, रुक्ष
पित्तज= नील, कांसे समान, पीत
कफज= स्थूल, चिकना, शंख, कुंद पुष्प, चंद्रमा समान पाण्डु वर्ण, आंख दबाने से दृष्टि मण्डल इधर उधर हो जाती है
रक्तज= कमल पुष्प समान आभा, प्रवाल पुष्प समान लाल वर्ण
त्रिदोषज= अनेक वर्ण

Quick Review of Drishti gata roga :-

पित्तविदग्ध दृष्टि मण्डल पीताभ, सब पीत देखना, तृतीय पटलगत= दिन मे न देखना पर रात मे दिखनासिरावेध नहीं करना चाहिए, पित्तज अभिष्यंद समान चिकित्सा, त्रिफला घृत, पुराण घृतDay blindness
श्लेष्मविदग्ध दृष्टिसब श्वेत वेदना, नक्तान्ध्य, तृतीय पटलगत= दिन में दिखता व रात में नहीं दिखतादोष अनुसार नस्य सेक, अंजन, त्रिवृत घृत, पुराण घृत Night blindness
धूमदर्शीशोक, ज्वर, परिश्रम, शिर शूल के कारण दृष्टि अभिहत। सभी पदार्थों को धुए से आच्छादित देखता है।पैतिक साध्य
घृत, रक्तपित्त नाशक चिकित्सा, विसर्प समान चिकित्सा
Blurred vision
ह्रस्वजाडयदिन में कठिनाई से व सब छोटा देखनापित्तजMicropia
नकुलांध्यनेवले समान चमकती दृष्टि मण्डल, नाना द्रव्यों को देखता है व रात को नहीं देख पाता त्रिदोष
असाध्य तिमिर समान चिकित्सा
Phthisis bulbi
गंplllaभारिकावायु आंख विकृत, संकुचित, नेत्र गोलक भीतर धस जाता है, तीव्र पीडाअसाध्य

श्लैष्मिक लिङ्गनाश का शस्त्रकर्म कर्म :-

पूर्वकर्म :-

  • दृष्टिमणि पर अर्धचंद्राकृति, पसीनेके जल बिंदू समान या मोती जैसा कोई चिंह्न तो नहीं अथवा स्थिर, विषम, पतला, बीच मे रेखा युक्त या अनेक प्रभा वाला, पीडा युक्त व लाल वर्ण का कोई दोष दृष्टि पर नहीं हो।
  • लिङ्गनाश जिसमें कुछ न‌ दिखे
  • आवर्तकी आदि उपद्रव रहित हो
    • शर्करा
    • राजिमति
    • छिन्नांशुका
    • चंद्रकी
    • छत्रकी
  • स्नेहन, मृदु स्वेदन कर्म फिर सिर को यंत्रित करके नासिका की तरफ देखने बोले।

प्रधान कर्म :-

कृष्ण मण्डल से 2 भाग छोडकर अपांग की ओर सिराओं से रहित दैवकृत छिद्र में मध्याङ्गुली, प्रदेशिनी व अंगुष्ट से यववक्र शलाका के द्वारा दक्षिण हस्त से वाम नेत्र व वामहस्त से दक्षिण नेत्र का वेधन कर्म करना चाहिए ,स्वेदन‌ करके भेदन‌ करना चाहिए , श्लाका के‌ अग्रभाग से दृष्टि मण्डल का लेखन करे

सम्यक लक्षण :-

विशिष्ट प्रकार की आवाज आती है व वेधन स्थान से जल के बिंदु के समान पदार्थ निकलता है। समयक न हो तो – रक्त निर्गमण होता है व सपष्ट आवाज नहीं आती। स्त्री दुग्ध से सिंचित करे।

पश्चयात कर्म:-

बहार की ओर से स्वेदन, दूसरी आंख जिसमें शस्त्र कर्म न हुआ हो उस तरफ की नासाछिद्र बंद करके छिके जिससे कफ का निर्हरण होता है, दोष न निकले तो स्नेहन स्वेदन व वेधन कर्म करे, ठिक से दिखने लगे तो धीरे धीरे शलाका निकाले, घृत पुरीत कर पट्टि बांधे, तीसरे वातह्न कषाय से प्रक्षालन। दस दिन तक नियम पालन बाद में अंजन, तर्पणादि व लंघन करे।

असाध्य नेत्र रोग :-

17 नेत्र रोग असाध्य बताए हैं जो की

  • 4 वातज रोग (हताधिमंथ, निमेष, गंभारिका, वातहत)
  • 2 पित्तज रोग (पित्तज स्त्राव, हृस्वजाडय)
  • 1 कफज रोग (कफज स्त्राव)
  • 4 त्रिदोषज रोग (पूय स्त्राव, अलजी, नकुलांध्य, अक्षिपाकात्य)
  • 4 रक्तज रोग (रक्तज स्त्राव, शोणितार्श, अजकाजात, सव्रण शुक्र)
  • 2 बाह्य रोग ( सनिमित, अनिमित्त लिङ्गनाश)