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Agad Tantra Charak Samhita

Gara Visha | गर विष : Relation with Food Poisoning

गर विष/ Gara Visha ” दो शब्दों से मिलकर बना है। ‘गर‘- अर्थात् निगलना; ‘विष‘- अर्थात् छा जाना था व्यापत होना ।

→ अर्थात् वह विष जो आसानी से निगला जा सके और शीघ्रता से रसादि धातुओं में फैल जाए, उसे गर विष कहते हैं।

• ‘गर‘ शब्द का दूसरा अर्थ है- एक ऐसा मिश्रण जो विषैला होता है।

विष की परिभाषा :

  • देहं प्रविश्य यद् द्रव्यं दुष्यित्वा रसादिकान् । स्वास्थ्य प्राणहरं च स्यात् तद् द्रव्यं विषमुच्यते ॥ (शा. सं. 4/22)

अर्थात् शरीर में प्रवेश करके जो दव्य रस आदि धातुओं को दूषित करते हुए स्वस्थ व्यक्ति के प्राणों को हर ले, उसे विष संज्ञा दी जाती है।

• जो द्रव्य प्राणियों के आभ्यंतर एवं बाहरी तंत्र के संपर्क में आकार शरीर में शीघ्रता से प्रवेश करके विवाद (दुख) पैदा करता है या प्राणो का नाश करता है, उसे विष कहते हैं।

आचार्य सुश्रुत के अनुसार, जिसे देखकर देवताओं में विषाद उत्पन्न हो जाता है, उसे विष कहते हैं।

→ विष के सभी गुण, उसमें तीक्ष्ण रूप से विद्यमान रहते हैं। यह त्रिदोष प्रकोपक होते हैं।

विष के 10 गुण:-

रूक्ष, उष्ण, सूक्ष्म, आशु, व्यवायी, तीक्ष्ण, विकासी, लघु, विषद, आनिर्देश्य रस ।

→आयुर्वेद की आठ अंगों में से एक अगद तन्त्र भी है। अगदतन्त्र में गर विष का वर्णन कृत्रिम विष (Artificial poison) के अन्तर्गत किया है।

विष के भेद:-

Vish ke types
Types of Visha

गर विष / Concocted Poison :

निरुक्ति –

गर‘ शब्द – गृ धातु में ‘अच्’ प्रत्यय लगने से बना है, जिसका अर्थ है निगलना। शब्द कोष में इसका एक अर्थ विष भी बताया है ।

परिभाषा –

गर संयोगजं चान्यद्गरसञ्ज्ञं गद प्रदम्। कालान्तर विपाकित्वान्न तदाशु हरत्यसून् ॥ (च.चि. 23/14)

अर्थात स्थावर और जांगम के अतिरिक्त एक संयोगज विष और होता है जिसे गर विष के नाम से जाना जाता है। यह भी कई प्रकार के रोगों को उत्पन्न करता है । इसका विपाक शरीर में काफी देर से होता है इसलिए यह शीघ्र प्राणघातक नहीं होता ।

• एक से अधिक द्रव्यों के संयोग से बने विष को गर विष चाहते हैं। विष रहित द्रव्यों के संयोग से जैसे मधु एवं घृत का सम मात्रा में प्रयोग या दो या दो से अधिक सविष पदार्थों के संयोग से गर विष बनता है।

स्वरूप –

नाना प्राण्यंगशमलविरुदौषध्धि भस्मनाम् । विषाणां चाल्पवीर्याणां योगो गर स्मृतः ॥ (अ.हृ.उ. 35/48)

अर्थात आचार्य वाग्भट के अनुसार गर विष कई प्रकार के प्राणियों के अवयवों के मलों का, विरुद्ध वीर्य वाले द्रव्यों की भस्म का, मन्द वीर्य वाले विषों का मेल है।

प्रयोग विधि =

आचार्य चरक ने चिकित्सा स्थान के 23 अध्याय में वर्णिन किया है कि:

  1. स्त्रियाँ कभी-कभी अपने पति या प्रेमी को अपने काबू में रखने के लिए, भोजन के साथ-साथ अपने पसीने, मासिक धर्म, रक्त और उनके शरीर के विभिन्न प्रकार के उपशिष्ट पदार्थों का प्रबंधन कर भोजन में मिला कर देती है।
  2. कई बार स्त्रियाँ दुश्मनों से प्रेरित होकर या वशीभूत होकर, कभी-कभी भोजन के साथ गर (कृत्रिम विष) मिला कर खिला देती।

गर विष के लक्षण /Clinical features –

(च० चि० 23/234-234)

  1. गर विष खाने से मनुष्य का शरीर पाण्डु वर्ण और कृश हो जाता है।
  2. जठराग्नि मन्द पड़ जाती है।
  3. हृदय की धड़कन बढ़ जाती है ।
  4. उदर में आध्मान/ पेट फूलने लगता है।
  5. हाथ-पैरों में शोथ (सूजन) हो जाता है।
  6. रोगी उदर विकारों से ग्रस्त हो जाता है।
  7. ग्रहणी दोष, राजयक्ष्मा, गुल्म, ज्वर तथा अनेक व्याधियों के लक्षण से पीड़ित हो जाता है।
  8. यकृत और प्लीहा बढ़ जाते हैं।
  9. रोगी अपने स्वप्न में गीदड़, बिल्ली, नेवला और सूखे वृक्षों व जलाशय देखता है।
  10. रोगी अपने रंग को बदलता हुआ देखता है। जैसे काला शरीर वाला अपने को गोरा समझता है और गोरे शरीर वाला अपने को काला समझता है।
  11. उसका शरीर और मन दोनों विकृत हो जाते हैं अथोत् प्रत्यक्ष रूप में उसकी इन्द्रियाँ अपने विषयों को ग्रहण करने में पूर्ण रूप से असमर्थ होती है।
  12. रोगी अपने आप को स्वप्न में बिना कान और नाक के देखता है।
  13. वह अपने आपको आलसी और वाणी विहीन समझता है)

चिकित्सा सुत्र/ Line of treatment:-

  • उपर्युक्त लक्षणों से पीड़ित मनुष्यों को देखकर बुद्धिमान वैद्यों को यह पूछना चाहिए कि तुमने किसके साथ, कब, किस वस्तु का सेवन किया है।
  • इस प्रकार जब उसको भोजन आदि का परिज्ञान करने पर यह निश्चित हो जाय कि उसने गए विष का सेवन किया है, तब निश्चय होने पर शीघ्र ही उसे वमन कराना चाहिए।
  • गर विष कृत्रिम विष है तथा यह असावधानी पूर्वक या धोखे से दिया जाता है। यह तुरन्त प्राणघाटक नहीं होता है इसलिए इसका पता नहीं चलता है। इसलिए थोड़ा सा भी संशय होने पर इसकी तुरन्त चिकित्सा करनी चाहिए।

चिकित्सा / Treatment :

  1. ताम्र भस्म की थोड़ी मात्रा, मधु के साथ मिलाकर देना चाहिए। इससे वमन होकर रोगी के हृदय की शुद्धि हो जाती है।
  2. इसके बाद रोगी को एक शाण (25gm) मात्रा में स्वर्ण भस्म तथा स्वर्णमाक्षिक भस्म को मधु मिलाकर चटाना चाहिए। (जिस प्रकार कमल की पत्तियों पर जल ठहर नहीं पाता है, उसी प्रकार स्वर्ण का सेवन करने वाले व्यक्ति के शरीर में विष का प्रभाव नहीं ठहर पाता है।)
  3. नागदन्त्यादि घृत
  4. गर विष में दूध और घृत का प्रयोग हितकर होता है।

गर विष से उत्पन्न व्याधियाँ /complications :-

Treatment of Complications =

  • घी व त्रिफला में भुना मकोय का शाक देना चाहिए।
  • त्वचा के विकारों में रेणूका, चन्दन, प्रियंगु, खस; इनको पीसकर लेप करना चाहिए।

Relation of Gara Visha with Food Poisoning :

Gara visha

In Ayurveda, Gara Visha is considered to be as one of the forms of Kritim visha (Artificial poison).

It is formed by the combination of two or more than two poisonous or non-poisonous drugs, which ultimately affects the whole body by vitiating all the doshas, dhatus and srotas in the body.

On the other hand, Food poisoning is the resulting from ingestion of contaminated bacterial and non- bacterial products; can be correlated with gara visha….

It is caused due to bacterial infection of food or drinks. The non-bacterial products includes poisons like plants, animal derivatives, chemical reaction of food from packing material etc.

Gara visha is nothing but Samyogaj visha, when two compounds react with each other and it may form toxins which leads to Food poisoning. Poison may be synthetic, mineral, vegetable or of animal origin, gara visha is one of them.

Gara Visha may be given by food, drinks, anulepana (application), ustadana (massage), pariseka (bath), anjana (eye lid application) etc; several methods are mentioned in the Ayurvedic text.

Out of these above methods, food (anna) is is very easily adulterated with non-poisonous or poisonous substances and produces hazard effects.

In today’s era, there are so many food additives such as coloring agents, preservatives, sweeteners, soft drinks, additives milk adulterant etc., has being continuously used in form of junk foods since many years.

There are so many toxic substances, has being taken by human beings which act equally as gara visha, along with foods and drinks as additives or adulterant which causes food poisoning.

Prolong use of Gara visha for a long period also induces food poisoning.

Food poisoning :

Administration of toxic substance in body with food because of improper handling, cooking and packing of food articles.

Also known as “food borne illness” caused by eating contaminated food.

Causes =

  • Bacterial = Salmonella, Shigella, Staphylococcal aureus, Clostridium, E. coli etc.
  • Viral = Rotavirus, Adenovirus
  • Protozoal = Giardia lamblia
  • Chemicals = Flavouring agents, colouring agents, preservatives.

Common Symptoms =

(Symptoms may differ depending on the causative & agent.)

  • Abdominal cramps
  • Diarrhoea
  • Nausea, vomiting
  • Loss of appetite
  • Mild fever
  • Headache
Gara visha and food poisoning
Symptoms of Food Poisoning

Conclusion :

आचार्य चरक के अनुसार, गर विष (Gara visha) को “कालान्तर अविपाकी” कहा है, which means delayed absorption of digestive substances; and produces toxicity.

The toxicogenesis of food, milk and drink additives are similar to gara visha, as they reduces digestion and absorption in the gastrointestinal tract.

In today’s changing lifestyle, the exposure of toxins due to using various food preservatives, chemical agents are nothing but Gara visha.

If this type of toxication of food increases, it may lead to Food poisoning and can also cause serious health hazards such as Asthma, allergy, skin disorders, carcinogenic changes etc.