According to the National Cancer Registry Programme of the India Council of Medical Research (ICMR), more than 1300 Indians die every day due to cancer (tumours). Today we will let you know about Gulm rog- it’s causes, types and Diagnosis according to Ayurveda.
हृदय व नाभि के बीच में इधर – उधर हिलने डुलने वाली स्थिर, आकर में गोल, घटने बढ़ने वाली गांठ को गुल्म (Gulm) कहते है। गुल्म रोग विशेष तौर से वात कारण माना जाता है।
निदान :-
अहितकर आहार विहार के सेवन से प्रकुपित हुए वात आदि दोष 5 प्रकार के गुल्म (Gulm) रोग उत्पन्न करते है।
गुल्म नाम की उत्पत्ति :-
वात दोष के प्रकूपित, गुद्मूल से उत्पन्न होने, गुल्म के समान विशाल होने के करना इसका नाम ‘गुल्म’ (Gulm) पड़ा।
भेद :-
- स्थान भेद से 5 :-
- दोनों पसलियों के भीतर
- हृदय में
- नाभि में
- वस्ति में
- दोष भेद से :-
- वात
- पित्त
- कफ
- सन्निपात
- रक्तज
पूर्व रूप :-
- डाकार का बार-बार आना
- कब्ज
- बिना खाए, पेट भरा सा प्रतीत होना
- कार्य करने की शक्ति का ह्रास
- आंतों में गुड़गुड़ाहट
- आटोप
- आध्मान
- अग्निमंद
लक्षण :-
- अरुचि
- मल, मूत्र व आपान वायु का कष्ट से निकलना
- आनाह
- गुड़गुड़ की आवाज़ आंत से आना
- वात की गति ऊपर की ओर होना
भेद के लक्षण :-
भेद | निदान | लक्षण | स्थान |
वात | रूखा अन्न पान सेवन, अधिक कार्य करना, वेगो को रोकना, शोक, चोट | मल का अधिक क्षय होना, अनशन, अल्प मात्रा में भोजन करना, स्वरूप व पीड़ा में निरंतर परिवर्तन, गला व मुख सुखना, त्वचा का वर्ण लाल या काला होना, शीत ज्वर, हृदय, पेट, पसलियों, कंधो, सिर में पीड़ा | वस्ति, हृदय, पार्श्व |
पित्त | कड़वे, ख्ट्टे, तीक्ष्ण, उष्ण, विदाह कारक, रूखे पदार्थ सेवन, क्रोध, अधिक मद्यपान करना, अधिक धूप सेकना, आम दोष बनने से व रक्त धातु के दूषित होने से | ज्वर, तृष्णा, मुख का लाल होना, भोजन पच जाने के बाद शूल अधिक होना, पसीना, दाह, छूने पर वर्ण के समान पीड़ा | पित्ताशय |
कफ | शीतल, गुरु, स्निग्ध, भोज्य पदार्थो का सेवन, परिश्रम न करना, अधिक भोजन करना, दिन में सोना | गीलापन, शीत ज्वर, अंगो में शिथिलता, जी मिचलाना, कास, अरुचि, भारीपन, सर्दी लगना, पीड़ा कम होना, गुल्म में कड़ापन व उभरा होना | कफाशय |
सन्निपात | अत्यन्त पीड़ा, सम्पूर्ण शरीर में जलन, पथर के समान कठोर, ऊंचा, अधिक दाह युक्त, अत्यन्त भयानक | ||
रक्त | नवप्रसुता स्त्री जब अहितकर भोजन करती है, गर्भ स्त्राव होने के बाद, ऋतुकाल में अहितकर भोजन करती है तो वात दोष गुल्म उत्पन्न करता है | पित्त गुल्म के समान लक्षण, कभी कभी शूल होता है व बाकी सभी लक्षण गर्भ के समान, चिकित्सा दसवें महीने के बाद, रज का न दिखना, पीलापन आदि | गर्भाशय |
गर्भ व रक्त गुल्म में भेद :-
गर्भ | रक्त गुल्म |
स्पंदन अंग प्रति अंग के रूप में होता रहता है | पिंड के आकर का स्परदन कभी कभी होता है |
शूल नहीं होता | शूल होता है |
9-10 वे महीने में प्रसव | कोई प्रसव काल नहीं |
आसाध्य गुल्म के लक्षण :-
- जो धीरे-धीरे बड़ हो
- बहुत बड़े घेरे का हो
- जिसने अपनी जड़ जमा ली हो
- सिराओ से बंदा हुआ
- कछुए की पीठ के समान आकृति वाला
- रोगी दुर्बल, अरुचि
- जी मचलाना
- कास
- वमन
- बैचेनी
- ज्वर
- तृष्णा
- तंद्रा
- जुखाम
मारक गुल्म के लक्षण :-
गुल्म व विद्रधि में भेद :-
गुल्म | विद्रधि |
वात गुल्म कभी नहीं पकता | पक जाती है |
निबंधन नहीं होता | निबंधन हो जाता है |
दोष में स्थित होता है | अधिष्ठान विशेष होता है |
बिना आश्रय के होता है | रक्त व मास से आश्रित होता है |
गुल्म के अरिष्ट :-
- वायु से पेट का फूल जाना
- अधिक दुर्बलता
- आंतों से गुदगुदात
- मल, मूत्र का स्वाभाविक वर्ण न होना
- सपने में छाती के उपर कांटों वाली लता उत्पन्न होना
14 replies on “Gulm Rog Nidan ( गुल्म रोग निदान ) : भेद, लक्षण”
Super informative. Usually ppl think ayurveda doesn’t have treatment for tumors. Thank you for this!!!
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