इंद्रलुप्त (Indralupta), वह रोग जिसमें रोम की उत्पत्ति बंद हो जाती है। इसे Alopecia के नाम से भी जाना जाता है।
निदान व सम्प्राप्ति/ Cause and Pathogenesis:-
रोमकूपानुगं पित्तं वातेन सह मूर्च्छितम् । प्रच्यावयति रोमाणि ततः श्लेष्मा सशोणितः ।। रूणद्धि रोमकूपांस्तु ततोऽन्येषामसम्भवः । तदिन्द्रलुप्तं खालित्यं रुज्येति च विभाव्यते ।। (सु.नि. 13 / 32-33)
वात, पित्त दोष रोम कुपों में आश्रित होकर रोम कूपों को गिरा देते है।
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रक्त व कफ रोम कूपों के छिद्रों को बंद कर देते है।
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पुनः रोम उत्पन्न नहीं होते
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इसे इंद्रलुप्त (Indralupta)/ खालित्य, सज्जा कहते है।
विशेष :-
- एतच्च स्त्रीणां न भवतीति विदेहवचनाद्व्याख्यानयन्ति। (माधव निदान क्षुद्र रोग (55/ 28-29)
- आचार्य विदेह के अनुसार यह रोग स्त्रियों में नहीं होता, क्योंकि सुकुमार अंग वाली स्त्री दूषित रज का हर मास स्त्राव करती है व व्यायाम नहीं करती हैं। तो वात पित्त का प्रकोप नहीं होता व रज: स्त्राव से अवरोध भी नहीं होता।
- आचार्य कार्तिक के अनुसार शमश्रु में इंद्र लुप्त होता है, खालित्य शिर पर होता है और रुरहा सर्व शरीर पर होता है।
- खलतेरपि जन्मैव शातनं तत्र तु क्रमात् ।। (अ.हृ.उ. 23/ 26, सु. उ. 27/19)
- इन्द्रलुप्त (Indralupta) के समान ही खलित्य रोग होता है। परंतु इसमें रोम धीरे-धीरे झड़ते हैं।
चिकित्सा/ Treatment:-
- संशोधन – वमन, विरेचन, नस्य, सिर तैल
- समीप की सिरा का वेदन
- मुख प्रलेप
- विदारीगंधादि तैल
- स्नेहन, स्वेदन, शिर सिरा भेदन
- तगर व देवदारू का लेपन
- गहरा प्रच्छान कर गुंजा लेप
- बैंगन रस व मधु लेप
- जात्यादि तैल
- स्नूही दुधादी तैल
- हस्ति मस्सी तैल
- हस्तिदन्तमसीं कृत्वा मुख्यं चैव रसाञ्जनम । रोमाण्येतेन जायन्ते लेपात्पाणितलेष्वपि ।।” (सु.चि. 1 / 101)
- हाथी दांत को जलाकर मस्सी का निर्माण + रसाञ्जन (बकरी के दूध के साथ) मिलाकर -> लेपन। इस लेपन से हथेली व तलवों पर भी लोप उत्पन्न किये जा सकते हैं
- चतुष्पादानां त्वग्रोमखुरश्रृङ्गास्थि भस्मना ।तैलाक्ता चूर्णिता भूमिर्भवेद्रीगवती पुनः। (सु.चि. 1/102)
- चौपाए पशुओं की त्वचा, रोम, खुर, सींग व हड्डी को भस्म को रोम रहित स्थान पर तैल चुपड़कर बुरकना (छिड़कना)
- मधु, घृत, तिल पुष्प, गोखरू लेपन
- इंद्रलुप्त में यदि श्वेत रोम उत्पन्न हो तो – भेड़ की सिंग की राख तैल लेप और जब तक रोम उत्पन्न न हो तब तक जल परिषेक
- खालित्य रोग वर्णित चिकित्सा
- लघु पंचमूल व जीवनीय गण से सिद्ध तैल का नस्य
- ब्रह्मचर्य रहते हुए एक मास तक नीम तेल का नस्य
- वटावरोहकेशिन्योश्चूर्णेनादित्यपाचितम् । गुडूचीस्वरसे तैलमभ्यङ्गात् केशरोहणम् ।। (योग रत्न समुच्चय)
- बड व जटामांसी के चूर्ण के साथ गिलोय स्वरस सिद्ध तैल के अभ्यंग करने से गंजे व्यक्ति के भी सिर पर बाल उग जाते है।
- कड़वे परवाल के पत्ते का रस ( तीन दिन में ठीक हो जाता है।
- भिलवा रस व मधु लेप
- देवदारु, केवड़ी, मोथा लेप
- त्रिफलादि तैल
- जपा पुष्प तैल
- भृंगराज तैल
- इंद्रयव को पीसकर लेप
- धतुर पत्र स्वरस के साथ भिलवा मिश्रण लेप
विशेष :-
- तैलाक्ता हस्तिदन्तस्य मषी चाचौषधं परम् ।। (अष्टांग हृदय चिकित्सा 26/31)
- हाथी दाँत की मषी को इन्द्रलुप्त में लगाये, यह इस रोग की उत्तम औषध है ।
- वर्जयेद्वारणा सेकंयावद्रोमसमुद्भवः ।।
- इस रोग में जब तक पूर्ण रूप से बालों (रोमों) की उत्पत्ति न हो जाय, तब तक जल का सेचन न करें ।
Modern co-relation:-
It can be co-related with Medical condition of pattern hair loss called Alopecia.