व्याधि परिचय
कास एक स्वतन्त्र व्याधि है तथा विभिन्न व्याधियों का लक्षण भी है। श्वास हिक्का तथा कास तीनों व्याधियों के निदान एक ही है परन्तु इनकी सम्प्राप्ति भिन्न है। कास अनेक व्याधियों में निदानार्थकर रोग भी है यथा प्रतिश्याय से कास तथा कास से राजयक्ष्मा की उत्पत्ति हो सकती है। कण्ठगत उदान वायु की विकृति के कारण कास रोग उत्पन्न होता है।
निरुक्ति
(1) कसनात् कास:
(2) कसति शिरः कण्ठादूर्ध्व गच्छति वायुरिति कास:। (3) कस गतौ इत्यस्मात् कसनात कास: । श्वसन प्रणाली में विजातीय पदार्थ के रुकने से कुपित वायु उस विजातीय पदार्थ को निकालने की चेष्टा करती है, जिसके फलस्वरूप श्वसन प्रणाली आदि अवयवों में शोथादि के कारण जो विकृत शब्द निकलता है, उसे कास कहते है।
निदान
I. सामान्य निदान-
- 1.धूम तथा रज के मुख, 2.नासिका तथा गले में प्रवेश करने से 3. व्यायाम तथा रुक्ष अन्न सेवन 4. वेगावरोध 5.भोजन का विमार्ग गमन 6. क्षवथु के वेगधारण से
II. विशिष्ट निदान–
आचार्य चरक ने कास के भेदानुसार निम्न निदानों का वर्णन किया है
1. वातिक कास के निदान – 1 रुक्ष, शीत, कषाय द्रव्य सेवन 2 अनशन/उपवास 3 वेगावरोध
2.पैत्तिक कास के निदान -1 कटु, उष्ण, विदाही, अम्ल तथा क्षार द्वव्यों का अतिसेवन 2.क्रोध
3. कफज कास के निदान- 1.गुरु, अभिष्यन्दी, मधुर, स्निग्ध आहार द्रव्यों का अतिसेवन 2.दिवास्वप्न
4.क्षतज कास के निदान-1. अतिव्यवाय 2.अधिक रास्ता चलना 3. अति युद्ध 4.अपने से अधिक शक्तिशाली व्यक्ति से युद्ध करना 5. घोड़े तथा हाथी से युद्ध करना
5. क्षयज कास के निदान – 1.विषम तथा असात्म्य भोजन 2. अतिव्यवाय 3.रूक्ष शरीर 4.घृणित वस्तुओं की सर्दी चिन्ता
सम्प्राप्ति
सामान्य सम्प्राप्ति आचार्य चरक मतानुसार अध:प्रतिशत वायु अर्थात । अपानवाय उर्ध्व स्रोतों में जाकर उर्ध्व गति वाली हो जाती है तथा वहां से कण्ठ तथा उर:प्रदेश में, शिरः प्रदेश के छिद्रों, स्रोतों तथा वाहिनियों में प्रविष्ट होकर उन सब स्थलों को पूर्ण करती हुई हनु, मन्या तथा नेत्रों को भग्न तथा आक्षेपयुक्तकर देती तत्पश्चात् नेत्र, पृष्ठ, छाती तथा को वक्र तथा स्तम्भित करती है जिसके फलस्वरूप शुष्क तथा सकफ दो प्रकार के कास की उत्पत्ति होती है।
आचार्य सुश्रुत मतानुसार निदान सेवन से दुष्ट प्राणवायु उदानवायु से मिलकर फूटे हुए कांस्य पात्र के शब्द के समान शब्द करता हुआ कफ तथा पित्त आदि दोष सहित मुख से सहसा निकलता है इसे कास कहते हैं।
सम्प्राप्ति चक्र
सम्प्राप्ति घटक
- दोष-वात तथा कफ
- दोष दूष्य-स्वर, रस तथा
- अन्न स्रोतस-रसवह तथा प्राणवह
- स्रोतोदुष्टि लक्षण-संग
- अधिष्ठान-प्राणवह स्रोतस, उरः प्रदेश, कण्ठ, आम-पक्वाशयोत्थ व्याधि
- स्वभाव-आशुकारी
- साध्यासाध्यता-नवीन, साध्य, जीर्णकास-कृच्छ्रसाध्य
- अग्नि दृष्टि-अग्निमांद्य
भेद
आचार्य चरक तथा सुश्रुत मतानुसार कास के पाँच भेद होते हैं :- 1. वातिक कास 2. पैत्तिक कास 3. कफज कास 4.क्षयज कास 5.क्षतज कास
पूर्वरूप
आचार्य चरक तथा आचार्य सुश्रुत ने कास के निम्न पूर्वरूप वर्णित किये हैं
- मुख तथा गले में शूक भर जाने सी प्रतीति होना
- कण्ठ कण्डू
- भोजन में अवरोध
- गले तथा तालु में लेप सी प्रतीति होना
- स्वर वैषम्य
- अरुचि
- अग्निमांद्य
लक्षण
आचार्य चरक तथा आचार्य सुश्रुत ने कास रोग के भेदानुसार निम्न लक्षण बताये
वातिक कास के लक्षण –
1. हृदय, शंख प्रदेश, मस्तिष्क, उदर तथा पावशूल (Chest pain.at abdominal pain, headache & costal pain)
- स्वर भेद (Hoarseness of voice)
- कांतिहीनता (Loss of lustre)
- वक्ष प्रदेश, कण्ठ, मुख का शुष्क होना (Dryness of chest region throat region & mouth)
- शुष्क कास (Dry cough)
- रोमाञ्च तथा शरीर में ग्लानि होना (Horripilation)
- शारीरिक दुर्बलता तथा ओजक्षय (Weakness)
- अन्नपाक होने पर कास में वृद्धि होना (Cough aggravates after diges tion of food)
वातिक कास की तुलना whooping cough तथा Tropical Eosinophilia रोग में उत्पन्न शुष्क कास (Dry cough) से की जा सकती है।
पैत्तिक कास के लक्षण
- पीतनिष्ठीवन (Expectoration of Yellow Sputum)
- पीतनेत्रता (Yellowish colour of eyes)
- तिक्तास्यता (Bitter taste of mouth)
- उरोदाह (burning sensation in chest Region)
- अरुचि (Anorexia)
- भ्रम (Vertigo)
- ज्वर(Fever)
- मुखशोष (Dryness of mouth) पैतिक कास की तुलना जीर्ण ज्वरों में पाये जाने वाली कास से कर सकते हैं।
पैतिक कास की तुलना जीर्ण ज्वरों में पाये जाने वाली कास से कर सकते हैं।
कफज कास के लक्षण –
- मुख का कफ से लिप्त होने सा प्रतीति (Feeling of mouth coa with mucous)
- मन्दाग्नि (Indigestion)
- अरुचि (Anorexia)
- वमन (Vomiting)
- उत्क्लेश (Nausea)
- गोरव (Heaviness of the body)
- रोमाञ्च (Horripilation)
- मुखमाधुर्य (Sweat taste of the mouth)
- अंगों में अवसाद (Looseness of the body )
- शिरःशूल (Headache)
- सान्द्र कफ का निकलना (Concentrated sputum)
- कफपूर्ण वक्ष होने की प्रतीति
- वेदनारहित कास प्रवृत्ति (Cough without pain)
कफज कास की तुलना Bronchitis में होने वाली Productive जा सकती है। IV. क्षतज कास के लक्षण – १. प्रारम्भ में शुष्क कास तथा बाद में रक्त मिश्रित कफ ष्ठीवन (Initially d cough then haemoptysis) उर:शूल तथा कण्ठशूल (Pain in chest and throat)
क्षतज कास के लक्षण –
- प्रारम्भ में शुष्क कास तथा बाद में रक्त मिश्रित कफ ष्ठीवन (Initially d cough then haemoptysis)
- उर:शूल तथा कण्ठशूल (Pain in chest and throat)
- भेदनवत् पीड़ा (Curting pain)
- पर्वभेद (Joint pain)
- ज्वर(Fever)
- श्वास (Dyspnoea)
- तृष्णा (Polydipsia)
- स्वरभेद (Hoarseness of voice) पारावत् कूजन क्षय कास उर:क्षत का ही लक्षण है। इसकी तुलना Bronchiectasis and Emphysema से कर सकते हैं।
पारावत् कूजन क्षय कास उर:क्षत का ही लक्षण है। इसकी तुलना Bronchiectasis and Emphysema से कर सकते हैं।
क्षयज कास के लक्षण
- अरुचि (Anorexia)
- कभी पतले तथा कभी सान्द्र मल की प्रवृत्ति (Irregular Bowel habbits)
- अति भोजन सेवन पर भी कृश होना (Loss of body weight)
- मुख, वर्ण तथा त्वक् स्निग्धता तथा स्वच्छता (clear and shiny skin of face)
- कान्तियुक्त नेत्र होना (Increased shining of eyes)
- पावशूल (costal pain)
- दुर्गन्धित, हरित तथा रक्तवर्णी कफष्ठीवन (Purulent blood mixed sputum)
सभी वस्तुओं के प्रति घृणा भाव इसकी तुलना Pulmonary Tuberculosis से की जा सकती है परन्तु सैद्धान्तिक दृष्टिकोण से राजयक्ष्मा एवं क्षयज कास भिन्न है।
साध्यासाध्यता
- वातिक, पैत्तिक तथा कफज कास साध्य होते हैं।
- क्षतज तथा क्षयज कास याप्य होते हैं।
- वृद्धावस्था में सभी कास याप्य होते हैं।
- क्षीण व्यक्तियों में क्षतज कास असाध्य होते हैं।
- चिकित्सा के चारों पदों की उत्तमता से नूतन क्षतज तथा क्षयज कास साध्य होते हैं।
चिकिसासूत्र
मानसिः स्नेहायेधूमेलेहेश्च युक्तितः। अभ्यडङगैः परिषेकैश्व स्निग्वेः स्वेदेश्व बुद्धिमान् ॥ तिभिर्बद्धविड्वातं, शुष्कोष्घ्वं चोध्ध्वभक्तिकेः। धृतेः सपित्तं सकर्फ जयेत् लेहविरेचनैः ।।
- कण्टकारी घृत
- पिप्पल्यादि घृत
- यूषणायघृत
- रास्ना घृत
- विडंगादिचूर्ण
- द्विक्षारादि चूर्ण
18 replies on “Kaas Rog ( कास रोग ) : Cough”
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