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Praval Panchamrit Ras ( प्रवालपञ्चामृत रस ) with Trick to Learn

प्रवालमुक्ताफलशंखशुक्ति कपर्दिकानां च समांशभागम् ।
प्रवालमात्र द्विगुणं प्रयोज्यं सर्वैः समांशं रविद्ग्धमेय।।
एकीकृतं तत्खलु भाण्डमध्ये क्षिप्त्या मुखे बन्धनमत्र योज्यम्।
पुटं विदध्यादतिशीतले च उद्धृत्य तद्भस्म क्षिपेत्करण्डे।।
नित्यं द्विवारं प्रतिपाकयुक्तं वल्लप्रमाणं हि नरेण सेव्यम्।
आनाहगुल्मोदर प्लीहकासश्वासाग्निमान्द्यान्कफमारुत्तोत्थान्।।
अजीर्णमुद्गार हृदामयध्नं ग्रहण्यतीसार विकारनाशनम्।
मेहामयं मूत्ररोगं मूत्रकृच्छू तथाश्मरीम्।।
नाशयेन्नात्र सन्देहः सत्यं गुरुवाचो यथा।
पथ्याश्रितं भोजनमादरेण समाचरेन्निर्मलचित्तवृत्त्या।।
प्रवालपञ्चामृतनामधेयो योगोत्तमः सर्वगदापहारी।।
(भै. र. गुल्म 32/116-120)

घटक द्रव्य :-

  1. प्रवाल भस्म – 2 भाग
  2. शंख भस्म – 1 भाग
  3. कपर्द भस्म -1 भाग
  4. मुक्ता भस्म – 1 भाग
  5. मुक्ताशुक्ति भस्म -1 भाग

भावना द्रव्यः– अर्क दुग्ध- 6 भाग

Trick to Learn :-

हे पार्थ! मर्द द्वारा अपनी शक्ति से शंख बजाकर मुक्ति पाई जा सकती है।

  • पार्थ – प्रवाल भस्म
  • मर्द – कपर्द भस्म
  • शक्ति – मुक्ता शुक्ति भस्म
  • शंख – शंख भस्म
  • मुक्ति – मुक्ति भस्म

केवल प्रवाल 2 भाग बाकी सब 1 भाग ( सम मात्रा )

उपयोग, निर्माण विधि व मात्रा :-

निर्माण विधि:- अर्ध 6 भाग तो खर्च में डालकर प्रथम मुक्ताफल के चूर्ण को मिलाकर तीन प्रहर तक खल्व कर पिष्टि बनने पर उसमें शेष भस्मों को मिलाकर मर्दन करें। फिर टिकिया बना सुखा कर शराब सम्पुट कर पुटपाक करें। इस प्रकार दो पुट देकर खल्व में महीन पीसकर काँच की शीशी में सुरक्षित रखें। मुक्ताफल के स्थान पर मुक्ता भस्म का भी प्रयोग कर सकते हैं।

मात्रा:- 250 मि. ग्राम से 375 मि. ग्राम

अनुपान:- मधु, क्षीर मुख्य

उपयोग:- गुल्म, उदर रोग, प्लीहा रोग, कास, श्वास, अग्निमांद्य, अजीर्ण, ग्रहणी, अतिसार, हृद्रोग

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