नाम:-
संस्कृत | माक्षिक (स्वर्णमाक्षिकम्, रजतमक्षिकम्) |
हिंदी | माक्षिक(सोनामाखी, रूपमाखी) |
English | Pyrite(copper pyrite and iron pyrite) |
पर्याय:-
सुवर्णमाक्षिक:- सुवर्णमाक्षिक,स्वर्णमाक्षिक,हेममाक्षिक,ताप्य, तापीज।
रजतमाक्षिक:- रौप्यमाक्षिक,तारज,तारमाक्षिक, विमल,श्वेतमक्षिक।
Habitat (प्राप्ति स्थान) – ताप्ती नदी,चीन,किरातदेश, भारत में झारखण्ड।
types:- 2
1.स्वर्णमाक्षिक-(cu2S,fe2S3) copper pyrite or chelcopyrite
2.रौप्यमाक्षिक(fe2S3) iron pyrite
On the basis of वर्ण —
- पीत वर्ण -(yellowish)- सुवर्णमाक्षिक
- शुक्लवर्ण- (whitish)रौप्यमाक्षिक
- रक्तवर्ण- (greyish)-कांस्यमाक्षिक
According to आचार्य यशोधरभट्ट-” नववर्णसुवर्णवत्”
According to आचार्य वाग्भट ने ” पंचवर्णसुवर्णवत्” माना है।
शुद्ध सुवर्ण षोडशवर्ण का होता है।
ग्राह्य सुवर्णमाक्षिक:-
जो सुवर्णमाक्षिक● स्पर्श में स्निग्ध,
●भार में गुरु, ●नीली-काली चमकयुक्त तथा ●कसौटी पर घिसने पर कुछ कुछ स्वर्ण जैसी रेखा खींचने वाला, ●कोण रहित,●सोने सदृश वर्ण वाला हो, वः स्वर्णमाक्षिक श्रेष्ठ होता है।
अग्राह्य सुवर्णमाक्षिक:-
जो स्वर्णमाक्षिक● स्पर्श में खर, ●अल्पभारयुक्त, ●कोणयुक्त तथा● खर लौहे की आभा वाला हो, वह औषधकार्य हेतु अग्राह्य होता है।
ग्राह्य रौप्यमाक्षिक:-
जो रौप्यमाक्षिक● स्निग्ध,● कोणयुक्त, ●भार में गुरु, ●वर्तुल,●रजत के समान उज्जवल एवं चमकीला हो ,वह रौप्यमाक्षिक श्रेष्ठ होता है
अग्राह्य रौप्यमाक्षिक :-
●मल युक्त,● भार में लघु,● रुक्ष, ●कसौटी पर घिसने से मलिन रेखा खींचने वाला, ●लंबे एवं विषम खण्डों वाला एवं ●विवर्ण हो ,वह औषध कार्य हेतु अग्राह्य होता है।
माक्षिक शोधन की आवश्यकता ::-
अशुद्ध या अपक्व माक्षिक का सेवन करने पर आँखों में विकृति ,मन्दाग्नि,कुष्ठ, कोष्ठ में वायु प्रकोप,निर्बलता, गण्डमाला,व्रण आदि रोग उतपन्न हो जाते हैं।
माक्षिक शोधन:-
एरण्ड तैल एवं मातुलूङ्ग निम्बू स्वरस या कदली कन्द स्वरस में डोला यन्त्र विधि से 6 घण्टे स्वेदन करने से माक्षिक शुद्ध हो जाता है।
माक्षिक मारण:-
माक्षिक में समान मात्रा में गन्धक मिलाकर मातुलुङ्ग निम्बू स्वरस की भावना देकर पिष्टी बनाकर सुखाएं
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इसे मूषा में रखकर 5 बार वराहपुट में पकाने पर माक्षिक भस्म तैयार हो जाती है।
माक्षिक भस्म का वर्ण-:
सिन्दूर के समान रक्तवर्ण या सुवर्णगैरिक सदृश या रक्तमल के समान वर्ण की होती है।
माक्षिक भस्म के गुण:-
स्वर्णमाक्षिक भस्म -रस तिक्त, मधुर,
गुण-लघु, वीर्य -शीत, विपाक – कटु हो जाता है।
रजतमाक्षिक का रस- अम्ल,किञ्चित् कषाय ,मधुर, गुण- लघु , वीर्य-शीत, विपाक- कटु होता है।
माक्षिक भस्म मात्रा:-
1/2रत्ती -2 रत्ती तक रोग एवं रोगी के बल, काल ,आयु, अदि आदि को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।
अनुपान:- त्रिफला, त्रिकटु, विडंग,घृत, तथा शहद।
अपक्व माक्षिक भस्म सेवंजन्य विकार शमनोपाय:-
उतपन्न विकारों को दूर करने के लिए कुलथ क्वाथ एवं दाडिमत्वक क्वाथ पीना चाइए।
स्तवपातन
– सुवर्णमाक्षिक में चतुर्थांश टंकण मिलाकर निम्बू स्वरस में मर्दन क्र सुखाएं
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मुषा में रखकर तीव्राग्नि में धमन करने पर माक्षिक का सत्व निकल जाता है।
सत्व लक्षण—
गूंजा बीज के सदृश लोहितवर्ण, गर्म करने पर शीघ्र द्रवित होने वाला,शीतल,देहसिद्धि एवं लोहसिद्धि में श्रेष्ठ होता है।
योग :-
1.पंचामृत पर्पटी
2.चन्द्रप्रभा वटी
3.प्रभाकर वटी
7 replies on “Makshik (माक्षिक): Copper Pyrite and Iron pyrite”
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