Name :-
संस्कृत | मृगश्रृंङ्गम् |
हिन्दी | हरिण सींग |
English | Stag horn, Hart’s horn |
पर्याय :-
- मृगश्रृंङ्ग
- विषाण
- हरिण श्रृंङ्ग
- मृगविषाण
- ऐणश्रृङ्ग
परिचय :-
- हरिण (बारहासिंघा) के शिर पर निकलने वाला सींग है।
- इसका सींग, मांस, चर्म प्राप्त करने के लिये शिकारी लोग शिकार कर या स्वयं मरने पर इसका सींग प्राप्त करते हैं।
ग्राह्य मृगश्रृंङ्ग :-
- घुणरहित
- लम्बा छोटे छोटे श्रृंङ्ग से युक्त
- भार युक्त, दृढ श्रृंङ्ग भस्म निर्माण के लिए ग्रहण करना चाहिए।
अग्राह्य मृगश्रृंङ्ग:-
- खोखला एवं कीटविद्ध अग्राह्य होता है
मारण :-
- मृगश्रृंङ्ग (Mrigshringa) के आरी से छोटे टुकड़े काटकर आग में जलाएं ➡अच्छे से जलने पर खल्व में डालकर ➡सूक्ष्म चूर्ण ➡ अर्कक्षीर की भावना देकर टिकिया बनाकर सुखा दे ➡ शराव सम्पुट कर गजपुट में पाक करें ➡ 3 पुट में मृगश्रृंङ्ग की कृष्ण वर्ण भस्म तैयार।
- खुली हवा में अच्छी तरह जलाकर घृतकुमारी स्वरस की भावना देते ➡ 4 – 5 गजपुट में पकाने पर ➡ श्वेतवर्ण की भस्म हो जाती है।
भस्म मात्रा :-
1 -2 रत्ती।
अनुपान :-
मधु, घृत, दूध।
भस्म के गुण :-
- पार्श्वशूल, कास, श्वास , प्रतिश्याय को दूर करता है।
- गोघृत के साथ हृच्छुल (हृदय में वेदना) में अधिक लाभ करता है।
प्रमुख योग:-
- गढ़निवज्रकपाट रस
- जवाहरमोहरा वटी
- कन्दर्प सुन्दर रस
- ज्वराङ्कुश रस
- बालार्क रस
- मृगश्रृंङ्ग भस्म